रविवार, अक्टूबर 28, 2012

भुवनेश्वर
की सूक्तियाँ
ye suktiyan hindisamya se li gyi hain

स्त्री अपने रुचित पुरुषों को ही धोखा देती है, यह उसकी सहज प्रकृति है कि अपने प्रिय पुरुष को वह अपने एक अंश का ही स्वामी बनती है।
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स्त्री के प्रेम के चार वर्ष –
    (पहला) प्राणाधार!
    (दूसरा) प्यारे!
    (तीसरा) ओह, तुम हो?
    (चौथा) संसार का और कोई काम तुम्हें नहीं है?
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स्त्री तुम्हें घृणा करेगी, यदि तुम उसकी प्रकृति को समझने का दावा करते हो।
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उस स्त्री से सावधान रहो, जो तुम्हें प्रेम करती थी और अब दूसरे पुरुष की प्रेयसी या पत्नी है, क्योंकि उसका पुराना प्रेम कभी भी लौट सकता है और इससे बड़ी प्रवंचना संसार में नहीं है।
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नारी पुरुष से कहीं क्रूर है और इसलिए पुरुष से कहीं अधिक सहनशील होने का दावा कर सकती है।
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जब एक पुरुष एक स्त्री से प्रेम करता है, तो वह अपने समस्त पूर्व-प्रेमियों को अपने ध्यान में रखती है, यदि उसमें और किसी भी भूतपूर्व प्रेमी में कुछ भी समानता है, तब उसकी सफलता की बहुत कम आशा है।
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स्त्री एक पहेली है और उस पुरुष को घृणा करती है, जो वह पहेली बूझ सकता है।
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किसी भी स्त्री का तुम्हारा चुम्बन अस्वीकार देना ऐसा है जैसा तुम्हारे बैंक का तुम्हारा चेक् अस्वीकार कर देना।
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एक स्त्री से कहो, 'उसके पैर तुम्हारे पैरों से छोटे हैं', वह प्रसन्न हो जाएगी, पर यदि इससे भी पूर्ण सत्य यह कह दो कि 'उसका मस्तिष्क तुम्हारे मस्तिष्क से छोटा है, वह प्रलय कर देगी।
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एक स्त्री के लिए उसके प्रिय पुरुष को 'कोई' होना चाहिए। वह सरस हो या न हो या वह सरस ही हो, चाहे समाज में उसका कुछ स्थान हो या न हो।

एक महान् पुरुष यदि एक स्त्री के पीछे भागता है, तो इसमें स्त्री के लिए गर्व की कौन-सी बात है, जो सहस्रों अन्य स्त्रियाँ दे सकती हैं।

जब एक पत्नी की वासना अपने पति के लिए धीमी पड़ जाती है, वह एक वृद्ध और शिथिल बाघिनी के समान हो जाती है।

स्त्री के लिए प्रेम का अर्थ है कि कोई उसे प्रेम करे।

पुरुष स्त्री के लिए एक आवाहन है, निमंत्रण है, पर स्त्री पुरुष के लिए चैलेंज हैं, चुनौती है। 


संसार में 'प्रेम' कवियों और काहिलों के मस्तिष्क में ही मिल सकता है।

स्त्री फैशन की गुलाम है। जिस समाज में पति को प्रेम करना फैशन है, वहाँ वह सती भी हो सकती है।
- भुवनेश्वर के नाटक संकलन  
             'कारवाँ' से

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