रविवार, अगस्त 14, 2011

राजमार्गों पर केंद्र और राज्य की खींचतान


राष्ट्रीय राजमार्गों की देखरेख के लिए 12 वें वित्त आयोग की राशि का हिसाब अब तक केंद्र को क्यों नहीं दिया?

मध्यप्रदेश से होकर18 राष्ट्रीय राजमार्ग गुजरते हैं। उनमें से अधिकांश की हालत खराब है। केंद्र की कांग्रेस सरकार और मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार के बीच राष्ट्रीय राजमार्गों को लेकर पिछले एक साल से विवाद चल रहा है। प्रदेश सरकार पर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया ने आरोप लगाया है कि प्रदेश की सड़कें बहुत खराब हैं। प्रदेश सरकार अपना काम नहीं कर रही, केवल ध्यान बांटने के लिए केंद्र पर दोषारोपण कर रही है। पूर्वमंत्री और विधायक डॉ. गोविन्द सिंह ने भी आरोप लगाया है कि राज्य सरकार राजमार्गों के लिए मिली राशि का हिसाब नहीं दे रही और केंद्र सरकार पर आरोप लगा रही है। केंद्र द्वारा जारी राष्ट्रीय राजमार्गों की देखरेख के लिए 12 वें वित्त आयोग की राशि का हिसाब अब तक नहीं दिया। केंद्र से पैसे लेने के लिए राज्य सरकार तैयार हैं लेकिन उसकी उपयोगिता को प्रमाणित नहीं कर रही। प्रदेश सरकार उपयोग किए गए धन का हिसाब क्यों नहीं दे रही।



राष्ट्रीय राजमार्ग चौबीस घंटे विकास को गति दे रहे हैं, उनकी उपेक्षा अत्यंत चिंताजनक है।

दूसरी तरफ मध्यप्रदेश सरकार का कहना है कि केंद्र सरकार की यह मनमानी है कि वह प्रदेश को सड़कों के लिए धन नहीं दे रही है। प्रदेश सरकार ने दी गई राशि खर्च नहीं की या दूसरी मदों में खर्च कर दी है तो इसका हिसाब बाद में हो सकता है। लेकिन जो राष्ट्रीय राजमार्ग चौबीस घंटे विकास को गति दे रहे हैं, उनकी उपेक्षा अत्यंत चिंताजनक है। अर्थशास्त्री कहते हैं कि सड़कें किसी भी देश की अर्थ व्यवस्था की रीढ़ होती हैं। उनकी स्थिति और विस्तार विकास के बड़े सूचकों में से एक है। सड़कों पर सफर कर ही विकास गति प्राप्त करता है। कस्बों और शहरों में रोजगार के नए अवसर पैदा होते हैं। कई उदारण हैं, राष्ट्रीय राजमार्ग का बाईपास के रूप में गुजरने पर उसके दोनों ओर आधारभूत सुविधाओं का विकास तेजी से होता है। इसलिए जरूरी है कि केंद्र जल्द से जल्द प्रदेश को धन उपलब्ध कराए ताकि सड़कों के हालात सुधरें और विकास जारी रहे।


राजमार्गों की स्थिति पर केंद्र और राज्य सरकार को राजनीतिक नेतृत्व आमने सामने हैं। जब सरकारें विकास को राजनीतिक लाभ हानि से आंकती हैं तो राजनीति वास्तविक उद्देश्य से भटक जाती है। हमारा मानना है कि राजनीतिक दांव-पेंचों के बीच विकास के कार्यक्रम स्थगित न हों। विकास पर आंच आने का मतलब राजनीति की दिशा ठीक नहीं है। प्रदेश और केंद्र की सरकारों को निरंतर विकास के मार्गों को दुरुस्त बनाए रखना जरूरी है।