सोमवार, अगस्त 27, 2012

ए के हंगल का जाना...

 
एके हंगल का जीवन दो धु्रवों तक फैला था। वह सांप्रदायिक ताकतों से लड़ते थे तो दूसरी तरफ इप्टा जैसे सांस्कृतिक संगठनों को संभालते थे। ए के हंगल होना कठिन और संघर्षमय का जीवन का नाम है।


क ऐसा महान कलाकार हमने खो दिया जिसका इतिहास अब एक मिसाल की तरह जगमगाता रहेगा। वयोवृद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और भारतीय रंगमंच के शिखर पुरूष एवं अभिनेता अवतार कृष्ण हंगल का रविवार को 98 वर्ष की उम्र में देहावसान हो गया। वह काफी समय से बीमार थे। उन्हें13 अगस्त से आशा पारेख अस्पताल में भर्ती थे।
एके हंगल भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और कई सांस्कृति राजनीतिक संगठनों से जुड़े थे। संकीर्णता और भेदभाव के खिलाफ एक योद्धा की भूमिका में उन्होंने खुद को  भूखा रहना पसन्द किया परन्तु समर्पण नहीं किया था। वे जुझारू थे। वे अपनी प्रतिवद्धताओं से कोई समझोता नहीं करते थे। उन्होंने मुंबई में कई राजनीतिक पार्टियों के सांप्रदायिक पूर्वाग्रहों के कारण फिल्मों में काम मिलना बन्द हो गया था। परन्तु साम्प्रदायिकता के खिलाफ उनके संघर्ष में कभी कोई कमी नहीं आई। 15 अगस्त 1917 को पाकिस्तान के सियालकोट में उनका जन्म हुआ था और भारत विभाजन के दर्द के साथ वे मुम्बई पहुंचे थे। उनका बचपन पेशावर में गुजरा था। ए के हंगल को अभिनय का शौक भी उन्हें बचपन से ही था लेकिन शुरुआत में उन्होंने इसे कभी गम्भीरता से नहीं लिया। हंगल ने अपने अभिनय के सफर की शुरुआत उम्र के 50वें पड़ाव पर की। वर्ष 1966 में बनी बासु भट्टाचार्य की फिल्म तीसरी कसम में वह पहली बार रूपहले पर्दे पर नजर आए। उसके बाद वह जाने-माने चरित्र अभिनेता के रूप में पहचाने जाने लगे। वह कभी रामू काका के रूप में नजर आए तो कभी इमाम साहब के रूप में। खुद हंगल को फिल्म शोले में इमाम साहब तथा शौकीन में इंदरसेन उर्फ एंडरसन की भूमिकाएं बहुत पसंद थीं। करीब 200 फिल्मों में अभिनय कर चुके हंगल को भारतीय सिनेमा में योगदान के लिए वर्ष 2006 में पद्म भूषण से नवाजा गया। हंगल आॅस्कर के लिए नामित फिल्म लगान में शंभू काका के रूप में थे। फिल्मों में आखिरी बार उन्होंने दिल मांगे मोर में अभिनय किया। सात साल के बाद हाल ही में वह एक टीवी सीरियल ‘मधुबाला’ के एक दृश्य में नजर आए थे। शोले में एक अंधे बुजुर्ग मुस्लिम की भूमिका में उनका एक डॉयलाग ‘इतना सन्नाटा को है भाई’   आज तक लोकप्रिय है। एक समय था जब शायद ही कोई फिल्म उनकी मौजूदगी के बिना बनाई जाती हो. नमक हराम, शोले, शौकीन, आइना, बावर्ची उनकी सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से हैं. 1940 के दशक उन्होंने इप्टा में रहते हुए खासा काम किया और इस दौरान बलराज साहनी और कैफÞी आजÞमी से जुड़े। हंगल एक बेहतरीन अभिनेता के साथ-साथ अच्छे टेलर भी थे। जिंदगी के 50 वसंत देखने के बाद फिल्मों का रुख करने वाले हंगल ने अपनी आत्मकथा ‘लाइफ एण्ड टाइम्स आॅफ ए के हंगल’ में लिखा है कि उनके पिता के एक मित्र ने उन्हें दर्जी बनने का सुझाव देते हुए कहा था कि इससे वह स्वतंत्र रूप से अपनी आजीविका चला सकते हैं। लेकिन उन्होंने अपने जीवन को अपनी तरह से जिया और उस मुकाम पर पहुंचे जहां से इंसान को अपनी जिंदगी  के सदियों तक कई अर्थ मिलते हैं।





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