बुधवार, जून 26, 2013

मादक पदार्थ तथा अपराध नियंत्रण

 भारत जैसे संस्कारिक देश के लिए यह बेहद दुर्भाग्य पूर्ण है। आज गली, मोहल्लों, कॉलोनियो तथा स्कूल एवं कॉलेज केम्पस में नशा करते युवक युवतियां सामान्य रूप से हैं। इतना ही नहीं 10 से 11 वर्ष की उम्र के बच्चे भी विभिन्न प्रकार के मादक पदार्थों  का सेवन करते देखे जाते हैं। नशा मुक्ति के सरकार के सारे प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। इस बात का पता अंतरराष्ट्रीय नारकोटिक्स नियंत्रण बोर्ड की वर्ष 2009 के अध्ययन की रिपोर्ट से ही चल जाता है। अंतरराष्ट्रीय नारकोटिक्स नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट को गंभीरता से लेते हुए इस दिशा में ठोस कदम उठाये जाने की आवश्यकता है। अन्यथा कल देश का भविष्य आज नशे की गिरफ्त में आ जाएगा।


   भारत में कम उम्र में ही बच्चे नशे की गिरफ्त में जा रहे हैं। पहली बार नशा करने वालों की उम्र महज 10 से 11 वर्ष होती है और नशा करने वाले 37 फीसदी स्कूली विद्यार्थियों को यह पता होता है कि वे कौन सा मादक पदार्थ ले रहे हैं। यह चौकाने वाला खुलासा संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय नारकोटिक्स नियंत्रण बोर्ड की एक अध्ययन की रिपोर्ट से हुआ है। भारत के सन्दर्भ में मादक पदार्थ तथा अपराध नियंत्रण (यूएनओडीसी) के संयुक्त राष्ट्र के दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय कार्यालय की प्रतिनिधि ने  कहा कि दक्षिण एशिया के छह देशों में हेरोइन और अफीम का सबसे ज्यादा सेवन हो रहा है। और इंटरनेट के जरिए भी फार्मा कम्पनियों की आड़ में मादक पदार्थों की तस्करी की जा रही है। भारत के संदर्भ में कहा कि  हमने हाल ही में भारत के 15 राज्यों में दो सर्वेक्षण किए। उनमें पाया गया कि देश में बच्चे सबसे पहले 10 से 11 वर्ष की उम्र में ही मादक पदार्थ का सेवन करने लगते हैं। मादक पदार्थों के आदी हो जाने वाले 37 फीसदी स्कूली विद्यार्थियों को यह भी पता होता है कि वे किस पदार्थ का सेवन कर रहे हैं।
साथ ही नहीं चौकाने वाला एक तय यह भी है कि भारत में महिलाओं में भी नशे करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। भारतीय महिलाओं में भी मादक पदार्थो के सेवन की प्रवृत्ति बढ़ रही है। यह प्रवृत्ती बेहद कम उम्र यानि औसतन 16 वर्ष की उम्र में ही किशोरियां नशे का शिकार हो रही हैं। भारत में औसतन 16 वर्ष की उम्र में ही किशोरियां घुलनशील मादक पदार्थ लेने लगती हैं, जबकि तंबाकू सेवन शुरू करने वाली किशोरियों की औसत उम्र करीब 18 वर्ष होती है। चिंताजनक यह है कि नशे की आदी भारतीय महिलाओं में से 80 फीसदी इलाज के लिए नहीं जातीं। भारत में जितने लोग मादक पदार्थो के आदी हैं, उनमें ‘ओपिएट्स’  अफीम मिली मादक दवा का इस्तेमाल करने वाले 73 फीसदी, ‘कैनेबिस’ भांग के पौधे से बने नशीला पदार्थ लेने वाले 19 फीसदी, ‘सेडेटिव्स’ दर्द निवारक या शामक दवाएं लेने वाले पांच फीसदी, एटीएस सिथेंटिक दवा लेने वाले दो फीसदी और ‘इनहेलेंट्स’ श्वांस के जरिए नशा करने वालों की संख्या एक फीसदी है। नारकोटिक्स नियंत्रण एक जटिल मुद्दा है और हम इससे जुड़े मुद्दों से अवगत हैं। वर्ष 1985 में सरकार ने नारकोटिक्स नियंत्रण के लिए विशिष्ट नीतियां बनाई थीं। इसके बाद वर्ष 2001-02 में हमने सर्वेक्षण कर पाया कि भारत में 7.32 करोड़ लोग अल्कोहल या अन्य तरह के नशे के आदी हैं।’
बहरहाल नशा मुक्ति के लिए बने तमाम कानून और सरकार के कई प्रयासों के बाद भी देश में नशे का प्रचलन तेजÞी से बढ़ रहा है। भारत जैसे संस्कारिक देश के लिए यह बेहद दुर्भाग्य पूर्ण है। आज गली, मोहल्लों, कॉलोनियो तथा स्कूल एवं कॉलेज केम्पस में नशा करते युवक युवतियां सामान्य रूप से हैं। इतना ही नहीं 10 से 11 वर्ष की उम्र के बच्चे भी विभिन्न प्रकार के मादक पदार्थों  का सेवन करते देखे जाते हैं। नशा मुक्ति के सरकार के सारे प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। इस बात का पता अंतरराष्ट्रीय नारकोटिक्स नियंत्रण बोर्ड की वर्ष 2009 के अध्ययन की रिपोर्ट से ही चल जाता है। अंतरराष्ट्रीय नारकोटिक्स नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट को गंभीरता से लेते हुए इस दिशा में ठोस कदम उठाये जाने की आवश्यकता है। अन्यथा कल देश का भविष्य आज नशे की गिरफ्त में आ जाएगा।
भारत का पड़ोसी चीन भी मादक पदार्थों की समस्या से ग्रस्त है।
चीन ने देश व क्षेत्र पारीय मादक पदार्थ तस्करी , नई किस्मों के मादक द्रव्य के उत्पादन व बिक्री तथा मादक पदार्थ से प्राप्त काले धन की धुलाई के खिलाफ सिलसिलेवार विशेष कार्यवाहियां की हैं, जिस से मादक पदार्थ से जुड़े अपराधियों के हौसले पर कारगर रूप से आघात पहुंचाया। एक वर्ष के अंदर चीन ने कुल 45 हजार अधिक मादक पदार्थ संबंधी मामलों का निपटारा किया और 58 हजार संदिग्ध अपराधियों को गिरफ्तार किया और विभिन्न किस्मों के साढे 17 टन मादक द्रव्य जब्त किया । इस तरह की त्वरित कार्यवाही से मादक पदार्थों के तस्करी और उपलब्धता प्रभावी तरीके से खंडित होती है।
वर्तमान में विश्व में मादक पदार्थाेंका बोलबाला हुआ, जिस से अनेक देश व क्षेत्र ग्रस्त हो गए और मादक पदार्थों की किस्में बढ़ीं और मादक सेवन वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है । इसलिए चीन में स्थिति भी गंभीर है । सूत्रों के अनुसार चीन की दक्षिण पश्चिम सीमा से सटा म्यांमार ,थाईलैंड व लाओस का गोल्डन ट्रिएंगल चीन को सब से ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाला मादक पदार्थ स्रोत हैं। चीन ने म्यांमार , लाओस , थाईलैंड , भारत और पाकिस्तान आदि देशों के साथ मादक पदार्थ नियंत्रण के लिए द्विपक्षीय सहयोग सम्मेलन बुलाए और संयुक्त राष्ट्र मादक पदार्थ पाबंदी व अपराध मामला कार्यालय तथा संबंधित देशों के साथ न्यायिक काम व सूचनाओं के आदान प्रदान पर सहयोग बढ़ाया। इसके बाद भी वर्तमान चीन में मादक सेवन वाले लोगों की संख्या सात लाख 80 हजार है। नई किस्मों के मादक द्रव्य भी पाए गए हैं और मादक पदार्थ से संबंधित अपराधों की समस्या भी सामाजिक सुरक्षा को नुकसान पहुंचाती है ।
वर्तमान समय में अफÞगÞानिस्तान में मादक पदार्थों की तैयारी के लिए पांच सौ कारख़ाने मौजूद हैं और वहां पर नाटो के नियंत्रण के बावजूद प्रतिवर्ष चार लाख टन हेरोइन का उत्पादन किया जाता है। इसको विश्व के लगभग एक करोड़ तीस लाख लोग प्रयोग करते हैं। उन्होंने कहा कि ईरान बहुत ही दूरदर्शिता के साथ मादक पदार्थों से संघर्ष कर रहा है और इस संबन्ध में   वह विश्व में पहले नंबर पर है। मादक पदार्थों के विरुद्ध संघर्ष में ईरान ने अब तक अपने सात सौ से अधिक सुरक्षाबलों की कÞुर्बानी दी है और तस्करों से मुकÞाबले में एक हजÞार तीन सौ जवान घायल हुए हैं। इस्लामी गणतंत्र ईरान ने 2010 और 2011 के दौरान 500 टन मादक पदार्थ जÞब्त किये और मादक पदार्थों के तस्करों के विरुद्ध 1003 से अधिक कार्यवाहियां की हैं। इन कार्यवाहियों के दौरान ईरान के सुरक्षा बलों ने तस्करों के 400 गैंगों को नष्ट कर दिया। मादक पदार्थों को ख़रीदना-बेचना और इन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाना यह दोनों ही कार्य अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अपराध माने गए हैं। इस प्रकार के अपराध का मुकÞाबला करने के लिए वास्तव में स्थानीय एवं अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भरपूर सहयोग एवं सहकारिता की आवश्यकता है साथ ही इस कार्य के लिए संयुक्त योजनाबंदी भी आवश्यक है। क्योंकि प्रत्येक देश अपनी विशेष नीतियों और सीमित संसाधनों के साथ मादक पदार्थों से संघर्ष के लिए योजनाएं बनाता है अत: हर देश की कार्यवाहियां उसकी सीमाओं के भीतर ही सीमित रहती हैं। यही कारण है कि मादक पदार्थों से संघर्ष के अंतरराष्ट्रीय संगठनों की उपस्थिति के बावजूद अंतरराष्ट्रीय सहयोग बहुत अधिक प्रभावी सिद्ध नहीं रहा है। मादक पदार्थ का सेवन करने वालों की संख्या में तेजÞी से वृद्धि, इस वास्तविकता को दर्शाती है कि यह बुराई विश्व के विकासशील एवं विकसित दोनों प्रकार के देशों के लिए जटिल समस्या बनी हुई है।
 भारत में युवाओं की अधिक संख्या भी इसके लिए जिम्मेदार है। देश में बड़ी संख्या में बच्चे उत्तर पूर्व से मादक पदार्थ तस्करी कर उसे बिहार और उत्तर भारत के अन्य राज्यों में आपूर्ति करते हैं। दिल्ली में 50 हजार बच्चे सड़कों पर रहते हैं। इनमें से ज्यादातर नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं। उसकी तस्करी भी करते हैं। बच्चों को बाल मजदूरी और तस्करी के धंधे में धकेलने वाले लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं की जाती। इससे अपराधी बिना डर के इस तरह की गतिविधियों को अंजाम देते हैं।  कुछ आंकड़े इसकी भयावहता को दर्शाता है- यूएनओडीसी की रिपोर्ट-विश्वभर के 21 करोड़ लोग या 15 से 64 साल उम्र की 4.9 प्रतिशत जनसंख्या नशीले पदार्थों का इस्तेमाल करती है, प्रति वर्ष दो लाख लोग मादक पदार्थों के इस्तेमाल के कारण मारे जाते हैं, मादक पदार्थो की तस्करी दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा व्यवसाय है, वर्ष 2010 में विश्वभर में अफीम की खेती 1,95,700 हेक्टेयर में हुई, अफगानिस्तान में विश्वभर के कुल अफीम उत्पादन का करीब 74 प्रतिशत हिस्सा या 3,600 टन पैदा होता है।
वैश्विक स्तर पर नशीले पदार्थो के बढ़ते इस्तेमाल के खिलाफ दिसम्बर, 1987 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 26 जून के दिन को मादक पदार्थो की तस्करी एवं गैर कानूनी प्रयोग के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में घोषित किया, जिसे आज व्यापक जन समर्थन हासिल है। जब तक कि हम अवैध नशीले पदार्थों की मांग की कम नहीं करते हैं तब तक हम पूरी तरह से उनकी फसलों के उत्पादन या उनकी तस्करी को पूरी तरह से रोक नहीं सकते हैं। विभिन्न रिपोर्टों से स्पष्ट होता है कि यह समस्या वैश्विक है और उसी स्तर पर इससे मुकाबला किया जा सकता है।

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