मंगलवार, जून 11, 2013

रिपोर्ट न लिखने पर पुलिसकर्मी को जेल हो सकती है

 परंतु पुलिस के आचरण में आज भी कोई खास बदलाव नहीं दिखता है। गांवों से लेकर महानगरों तक में पुलिस सुधार की तमाम बातें अभी तक हवा-हवाई ही साबित हुई हैं। अहम सवाल यह है कि लोगों की रक्षा करने वाली पुलिस लोगों को परेशान करने वाली भूमिका में आखिर क्यों नजर आती है?


  रिपोर्ट न लिखने पर पुलिसकर्मी को जेल हो सकती है। यह अच्छी शुरुआत है जो पुलिस के रवैये को बदल सकती है। यानी एफआईआर को दर्ज करने से इंकार करने वाले पुलिसकर्मियों को जेल भेजा जाएगा। सामान्यत: कई पुलिस कर्मियों की आदत में शुमार हो चुका है कि वे प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखाने गए व्यक्ति को ही थाने में बिठा लेते हैं। रिपोर्ट लिखने में आनाकानी करते हैं। यह कहना कि यह हमारे थाना क्षेत्र का मामला नहीं है। कई बार प्रभावशाली व्यक्ति को पहले सूचित करना कि आपके खिलाफ हमारे यहां रिपोर्ट करवाने के लिए फलां व्यक्ति आया है। कानून और व्यवस्था के लिए जिम्मेदार पुलिस महकमे पर यह सबसे गैर जिम्मेदार होने वाले आरोप लगते रहे हैं। ये आरोप सिर्फ आरोप नहीं हैं। इन आरोपों के पीछे तथ्य भी हैं। यहां हम पूरे देश की पुलिस की बात कर रहे हैं लेकिन मध्यप्रदेश के संदर्भ में बात करें तो पुलिस के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने के मामले में मध्य प्रदेश देश में दूसरे पायदान पर है। उत्तर प्रदेश तीसरे, जबकि दिल्ली पहले स्थान पर है। देश में 2011 के दौरान पुलिसकर्मियों के खिलाफ शिकायतें मिलने के मामले में  केंद्र शासित प्रदेशों की फेहरिस्त में दिल्ली अव्वल रहा। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की सालाना रिपोर्ट ‘भारत में अपराध 2011’ के मुताबिक, दिल्ली में पुलिस कर्मियों के खिलाफ सर्वाधिक 12,805 शिकायतें मिलीं। उत्तर प्रदेश में पुलिस के खिलाफ मिली शिकायतों की संख्या 11,971 है, जबकि मध्यप्रदेश में पुलिस वालों के खिलाफ 10,683 शिकायतें मिलीं। इसमें एक तथ्य और है। देश में पुलिस के खिलाफ की गई शिकायतों में 47 प्रतिशत शिकायतें झूठी साबित हुई हैं या आरोप प्रमाणित नहीं हो सके। और 53 प्रतिशत में सत्यता पाई गई।शिकायत और अन्य अरोपों के अलावा जन सामान्य में पुलिस की छवि का महत्वपूर्ण स्थान है। सामान्य सत्य लंबे अनुभव और बार बार दोहराव से जन्म लेते हैं। इस प्रयास का प्रतिफल क्या मिलेगा यह बाद में पता चलेगा परंतु पुलिस के आचरण में आज भी कोई खास बदलाव नहीं दिखता है। गांवों से लेकर महानगरों तक में पुलिस सुधार की तमाम बातें अभी तक हवा-हवाई ही साबित हुई हैं। अहम सवाल यह है कि लोगों की रक्षा करने वाली पुलिस लोगों को परेशान करने वाली भूमिका में आखिर क्यों नजर आती है? इसके पीछे  अंग्रेजों के जमाने में बना पुलिस अधिनियम है। जब 1857 का विद्रोह को अंग्रजों ने दबा दिया तो यह बात उठी की भविष्य में ऐसे विद्रोह नहीं हो पाएं। इसी के परिणामस्वरूप 1861 का पुलिस अधिनियम बना। इसके जरिए अंग्रेजों की यह कोशिश थी कि कोई भी नागरिक सरकार के खिलाफ कहीं से भी कोई विरोध का स्वर नहीं उठ पाए। पुलिस अग्रेजों की इच्छा के अनुरुप परिणाम भी देती रही।1947 में कहने के लिए अपना संविधान बन गया। लेकिन नियम-कानून अंग्रेजों के जमाने वाले ही रहे। आज इसे बदलने के इस प्रयास को पुलिस की संवेदनशीलता और जिम्मेदारी से जोड़कर देखा जाना चाहिए।

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