बुधवार, मई 29, 2013

मोबाइल की रिंगटोन खतरे की घंटी हो सकती

  एक छोटे से कस्बे की खबर है कि बैरसिया में लोग मोबाइल टॉव के रेडिएशन से परेशान हैं। आबादी के बीचों बीच नियमों की अनदेखी करने का परिणाम आम जनता को उठाना पड़ रहा है। अत्यधिक आवृत्ति के मोबाइल टॉवर शहर के बीच स्थापित होना एक बड़ी उपेक्षा का परिणाम है। आने वाले समय में मोबाइल की रिंगटोन खतरे की घंटी हो सकती है। मोबाइल फोन और  टावर से निकलने वाला रेडिएशन सेहत के लिए खतरा साबित हो सकता है। टॉवरों की संख्या बढ़ने के साथ रेडिएशन का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। देश में लागू इंटरनेशनल कमिशन आॅन नॉन आयोनाइजिंग रेडिएशन के दिशा निर्देश के अनुसार, जीएसएम टावरों के लिए रेडिएशन लिमिट 4500 मिलीवॉट/मी. स्क्वेयर तय की गई थी। ये सीताएं शॉर्ट-टर्म एक्सपोजर के लिए थीं, जबकि मोबाइल टॉवर से लगातार रेडिएशन होता है। अब इस लिमिट को कम कर 450 मिलीवॉट/मी. स्क्वेयर करने की बात होने लगी है। जानकारों के अनुसार यह लिमिट भी बहुत ज्यादा है और सिर्फ 1 मिलीवॉट/मी. स्क्वेयर रेडिशन भी मनुष्य और पशुपक्षियों को नुकसान देता है। भारत की बात छोड़ें तो यही वजह है कि आॅस्ट्रिया में 1 मिलीवॉट/मी. स्क्वेयर और साउथ वेल्स, आॅस्ट्रेलिया में 0.01 मिलीवॉट/मी. स्क्वेयरकी सीमा तय की गई है। मोबाइल रेडिएशन पर कई रिसर्च पेपर तैयार कर चुके आईआईटी बॉम्बे में इलेक्ट्रिकल इंजिनियरों का कहना है कि मोबाइल रेडिएशन से तमाम दिक्कतें हो सकती हैं, जिनमें प्रमुख हैं सिरदर्द, सिर में झनझनाहट, लगातार थकान, चक्कर, डिप्रेशन, नींद न आना, आंखों में ड्राइनेस, काम में ध्यान न लगना, कानों का बजना, सुनने में कमी, याददाश्त में कमी, पाचन में गड़बड़ी, अनियमित धड़कन, जोड़ों में दर्द आदि। एक अन्य अध्ययन के अनुसार मोबाइल रेडिएशन से लंबे समय के बाद प्रजनन क्षमता में कमी, कैंसर, ब्रेन ट्यूमर और मिस-कैरेज की आशंका भी हो सकती है। इसका कारण है कि हमारे शरीर में 70 फीसदी पानी है। दिमाग में भी 90 फीसदी तक पानी होता है। यह पानी धीरे-धीरे बॉडी रेडिएशन को अब्जॉर्ब करता है और आगे जाकर सेहत के लिए काफी नुकसानदेह होता है। यहां तक कि बीते साल आई डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार मोबाइल रेडिएशन से कैंसर तक होने की आशंका हो सकती है। इंटरफोन स्टडी में कहा गया कि हर दिन आधे घंटे या उससे ज्यादा मोबाइल का इस्तेमाल करने पर 8-10 साल में ब्रेन ट्यूमर की आशंका 200-400 फीसदी बढ़ जाती है। ये माइक्रोवेव रेडिएशन उन इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स के कारण होता है, जिनकी आवृत्ति 1000 से 3000 मेगाहर्ट्ज होती है। माइक्रोेवेव अवन, एसी, वायरलेस कंप्यूटर, कॉर्डलेस और दूसरे वायरलेस डिवाइस भी रेडिएशन पैदा करते हैं। इस मामले में देश की सरकारें और नीति बनाने वाले लोग कंपनियों के दबाव में काम करते हैं। आज अवश्यकता है कि इस मामले को सार्वजनिक स्वास्थ्य से जोड़ कर व्यापक हित में देखा जाना चाहिए।

कोई टिप्पणी नहीं: