बुधवार, नवंबर 28, 2012

 
रिहाई की राजनीति

अपराध को नियंत्रित करना और समाप्त करना शासन की प्राथमिकता होती है। लेकिन कई फैसले जब शासन लेता है तो उसके राजनीतिक प्रभावों को नकारा  नहीं जा सकता।

मध्यप्रदेश सरकार ने तीन साल से कम साजा पाने वाले अपराधियों को रिहा करने का निर्णय लिया है। गृह मंत्रालय ने जिलों के लिए इस आशय का परिपत्र जारी कर दिया है। सरकार के इस फैसले का स्वागत किया जा सकता है, बशर्ते कि इसका दुरुपयोग न हो। हर ऐसे फैसले के साथ कुछ आशंकाएं जुड़ी होती हैं। सरकार जिन लोगों को विमुक्त करेगी जो सामान्य धाराओं के तहत जेल में हैं। जैसे आदिवासियों को 49 लीटर शराब जप्ती के प्रकरण हैं इससे कई आदिवासी रिहा होंगे क्योंकि आदिवासी समाज में शराब सामान्य पेय है जिसे वे सदियों से बनाते और पीते आ रहे हैं, उन पर नागर समाज के फैसलों को थोपना उचित की श्रेणी में नहीं कहा जा सकता। यहां सबसे बड़ी बात यह होगी जब सरकार रिहा किए गए अपराधियों में यह भाव पैदा करे कि वे पुन: अपराध के लिए नहीं छोड़े गए हैं। उन्हें मेहनती जीवन जीने के लिए रिहा किया गया है। चाहे तो सरकार इसके लिए उनको सामान्य प्रशिक्षण दिलवा सकती है। सामान्य: अपराध मनोविज्ञान और सामाजिक मान्यता है कि कोई भी व्यक्ति जन्म से अपराधी नहीं होता बल्कि कई बार हालात और कई बार अनजाने में लोग अपराध की राह पर चले जाते हैं। लेकिन यहां मामला दूसरा है। सामान्यतौर पर ये अपराध के गंभीर मामले नहीं हैं। अपराध की परिभाषा भिन्न-भिन्न रूपों में की गई है, जैसे- समाज द्वारा निर्धारित आचरण का उल्लंघन या उसकी अवहेलना अपराध है या किसी व्यक्ति की क्रिया या क्रिया में त्रुटि है, जिसके लिए दोषी को कानून द्वारा निर्धारित दंड दिया जाता है। अपराध करना एक सामाजिक समस्या है। इस पर कानूनी नियंत्रण तब होता है जब वह हो जाता है लेकिन पहले अपराध का जन्म मन-मष्तिस्क में  होता है।
जाने-अनजाने में अपराध करने वालों से नफरत करने के बजाए उनकी मूल समस्या का अध्ययन करके उसके समाधान का प्रयास किया जाना चाहिए और सही मार्गदर्शन से इस तरह के लोग आसानी से मुख्य धारा में शामिल होते रहे हैं। अपराध की परिभाषाओं के अनुसार किसी व्यवस्था के बनाए नियमों का उल्लंघन कर यदि कोई रात में बिना बत्ती जलाए मोटर साइकिल पर नगर की सड़क पर चले अथवा बिना पर्याप्त कारण के ट्रेन की जंजीर खींचकर गाड़ी खड़ी कर दे, तो वह भी उसी प्रकार दोषी माना जाएगा, जिस तरह किसी की हत्या करने पर। किंतु साधारण अर्थ में लोग दंडाभियोग को हत्या, डकैती आदि गंभीर अपराधों के पर्याय के रूप में ही लेते हैं। लेकिन सरकार के इस फैसले को सामान्य नहीं कहा जा सकता। इसमें सामाजिक कल्याण की भावना निहित है तो दूसरी तरफ यह चुनावों में मतदाताओं को रिझाने का उपक्रम भी माना जा सकता है। ये सारे निर्णय सरकार की राजनीतिक दूरदर्शिता का परिणाम हो सकते हैं। लेकिन उद्देश्य का पवित्र होना ही महत्वपूर्ण होता है। इससे सरकार में विश्वास कायम होगा और छोटे मोटे अपराधी भी एक सामान्य जीवन जीने की कोशिश करेंगे। लेकिन सरकार को रिहा किए जा लोगों से यह विश्वास हासिल करना होगा।

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