गुरुवार, अगस्त 09, 2012

रोजगार की जगह मोबाइल

   गरीबों के लिए लोकतंत्र का मजाक बनाने में हमारी सरकारें पीछे नहीं हैं। रोजगार की जगह सरकारें चुनावों के समय मोबाइल बांटने लगती हैं, जबकि उन्हें रोजगार देना चाहिए।



 लो कतंत्र की राजनीति जब लोभ और लालच देने की राजनीति बन जाती है तो वह कहीं न कहीं लोकतंत्र का मजाक भी बन जाती है।  कांग्रेस पार्टी ने अपने पुराने रामबाण नुस्खे ‘गरीबी हटाओ’ को हाईटेक पैकिंग में पेश करने का फैसला किया है। सरकार गरीबी रेखा से नीचे के हर हाथ में मोबाइल देने जा रही है। यह एक सीधा गणित है-मोबाइल लो वोट दो। यह देश में बदलते लोकतांत्रिक मूल्यों को प्रदर्शित करने वाली घटना और योजना भी है। इस योजना का जब तक प्रचार प्रसार होगा तब तक 2014 के चुनाव सामने आ चुके होंगे। यह योजना लोककल्याणकारी दिख रही है लेकिन इसमें दूरदर्शिता का भारी अभाव है। हां, इसमें वोट कबाड़ने के दूरगामी तत्व निहित हैं। सरकार चाहती है कि सबके वोट उसके हाथ को ही मिलें। संभव है कि 15 अगस्त को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपने भाषण में इस योजना का एलान करेंगे और यूपीए सरकार इसे गरीबी हटाओ के अंदाज में एक बड़ा मुद्दा बनाकर पेश करने की तैयारी कर रही है।
यह सरकारी दूरगामी योजना है जिससे सरकार पर कुछ न करने या सरकार पर लगा पॉलिसी पैरालिसिस का दाग कुछ फीका पड़ सके। सरकार  इस योजना के तहत 6 करोड़ परिवारों को मोबाइल फोन बांटेगी। इससे जाहिर है कि सरकार का यह मिशन चुनाव जिताऊ भी हो सकता है। योग्य परिवारों की सूची राज्य सरकारें देंगी। मोबाइल पाने वालों में 50 फीसदी महिलाएं होंगी। मोबाइल स्कीम के लिए अप्रैल-मई 2013 में टेंडर जारी किया जाएगा। जुलाई 2013 तक मोबाइल बांट दिए जाएंगे। एक हजार का ये मोबाइल है लेकिन मोबाइल पाने वाले को 365 रुपए देने होंगे। मोबाइल में वॉयस, एसएमएस, टॉर्च और बैटरी होगी। 1 साल तक मोबाइल रीचार्ज फ्री मिलेगा। मोबाइल में 30 रुपए का रीचार्ज हर महीने की पहली तारीख को सरकार कराएगी। यानी फुल प्रूफ गारंटी का मामला बनता है।
हालांकि विपक्षी दलों ने गरीबी रेखा के नीचे जीवनव्यापन करने वाले परिवारों को मुफ्त मोबाइल देने की सरकारी योजना की दबे स्वरों से आलोचना की है। विपक्ष यह कहना सही है कि  सरकार की प्राथमिकता गरीबों को सस्ता अनाज देने की होनी चाहिए, मोबाइल की नहीं। टेलीकॉम कंपनियों को सरकार की इस स्कीम पर और जानकारी की जरूरत है। सीओएआई के डाइरेक्टर जनरल राजन मैयूज मानते हैं कि कंपनियों को मोबाइल स्कीम लागू करने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। इससे स्कीम लागू करने में देरी हो सकती है। राजन मैयूज का मानना है कि 40 फीसदी ग्रामीण बाजार में पहले ही मोबाइल सर्विस मौजूद है। वहीं बिना मोबाइल सर्विस वाले इलाके में स्कीम लागू करना मुश्किल होगा। मोबाइल कवरेज लाने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत होगी और इलाकों में बिजली, टॉवर होना जरूरी है। इन योजनाओं में भी भारी निवेश की जरूरत होगी। सरकार जो चाहे दे सकती है लेकिन देखना है कि यह कदम गरीब जनता कितना पसंद करती है?

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