गुरुवार, अगस्त 09, 2012

खिलाड़ियों का दर्द



लंदन ओलंपिक में रजत पदक विजेता सूबेदार वियज कुमार को एक ओलंपिक पदक विजेता जैसा सम्मान नहीं मिला है। इससे जाहिर है कि हम खिलाड़ियों की कितनी कद्र करते हैं?

क्या आलंपिक चंैपियन होना कोई बड़ी बात नहीं है! यह एक सामान्य घटना है! यह मायूसी भरे सवाल भारतीय सेना के सूबेदार विजय कुमार ने देश के मीडिया और देश की जनता से साझा किए हैं। उनको सेना और हिमाचल सरकार इसी तरह ट्रीट कर रही है जैसे कि ओलंपिक का रजत कुछ खास नहीं? यह सच है कि उनके बारे में देश की जनता अब तक बहुत अधिक नहीं जानती। एक चैंपियन की ये दर्द भरी शिकायत आहत करने वाली है। यह भी सच है कि निम्न मध्यम वर्गीय हिमाचल से आने वाले विजय कुमार को देश की सेना और मीडिया ने उतना कवरेज और सम्मान नहीं मिला है जितने के वे अधिकारी हैं। लगातार छह साल से राष्ट्रीय चैंपियन रहे विजय कुमार ने 25 मीटर रैपिड फायर में 130 के स्कोर के साथ रजत पदक जीता। इस मुकाबले में क्यूबा के ल्यूरिस प्यूपो 134 अंकों के साथ स्वर्ण पदक जीतने में कामयाब रहे। यह निराशाजनक है कि हमारे ही एक चैंपियन के बारे में  देशवासियों को बहुत कुछ मालूम नहीं है।
यह भी आश्चर्यजनक है कि एक राष्ट्रीय चैंपियन को छह साल से सेना मेंप्रमोशन नहीं मिला है। न सरकार से कोई सहायता मिली है। यह सरकार और सेना की उपेक्षा ही कही जा सकती है। लाइम लाइट में नहीं होना अभिशाप है? क्या मीडिया सुर्खियों में नहीं आने के कारण उन्हें सरकारी सहायता से वंचित रखा गया? आज पदक जीतने के बाद विजय के पास भारत से फोन जा रहे हैं। अब लोग उनके बारे में जानना चाहते हैं और कई सवाल पूछते हैं। विजय कहते हैं कि ‘यह सब देखकर मुझे बुरा भी लगता है, लेकिन यह जिंदगी का हिस्सा है।’
 आश्चर्यजनक  है कि जिस खिलाड़ी ने मेलबोर्न राष्ट्रमंडल खेलों में नए रिकार्ड के साथ दो स्वर्ण जीते, दोहा एशियाड में एक स्वर्ण और एक कांस्य, चीन में विश्व चैंपियनशिप में एक रजत, दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों में तीन स्वर्ण और एक रजत और ग्वांगझू एशियाड में दो कांस्य पदक जीते। इसके बाद अगर लंदन में वह पदक जीतते हैं तो लोगों को अचंभा होता है। इसमें विजय क्या कर सकते हैं? यह तो मीडिया और सेना से पूछा जाना चाहिए? मीडिया की बेरुखी से विजय कुमार आहत हैं। इस कारण ही लोग उनसे पूछ रहे हैं कि आप यह ओलंपिक रजत कैसे जीत गए? विजय को रिकार्ड देखा जाए तो वे पिछले आठ साल से परिणाम दे रहे हैं। उन्होंने अब तक 110 राष्ट्रीय और 45 अंतरराष्ट्रीय पदक जीते हैं।
किसी स्वाभिमानी खिलाड़ी का काम नहीं है कि वह अपनी सफलताओं को मीडिया में या लोगों को गिनाता फिरे? यह मीडिया, सरकार और समाज की स्वभाविक जिम्मेदारी है कि वह अपने चैंपियन का चैंपियन की तरह सम्मान करे। विजय की उपेक्षा एक उदारहण है। देश में ऐसे कई चैंपियन हैं जो ऐसी उपेक्षा का शिकार हैं। हमें अब उनको सम्मान देना ही होगा क्योंकि कोई भी स्वाभिमानी चैंपियन आपके सामने हाथ फैलाने नहीं आएगा।

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