सोमवार, जुलाई 30, 2012

बता मैं सड़क की तरफ क्यों देखती हूं

      वह कली और फूल के बीच में कहीं रहती थी। उसका चेहरा फूलों और कलियों के बीच की सुंदरता में कहीं महकता था। जैसे ईश्वर ने उसे बनाते हुए यथार्थ के साथ थोड़ी सी कल्पना डाल दी थी। आंखों ओठों और गालों पर वैसी ही सुख फैला रहता जैसा फूलों से भरी शाख के चारों तरफ होता। उसे मैं तो मित्रो कहता था। मगर मेरे दोस्त- ‘यार क्या कली है!’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते थे। उनके संबोधन से मैं अंदर से ंिचंतित हो जाता था मगर शिकायत नहीं करता था। हमारी तिकड़ी चौकड़ी में मनोज भी था। उसका विचार अलग था। वह कहता था कि यह लड़की मेंटली रिटार्टिड है। क्योंकि यह छत पर गमलों के बीच बिना हिले खड़ी रहती है। मनोज ने उसके बारे में एक गप भी सुना दी कि एक दिन मैंने उसे गमले में उगी हुई लड़की की तरह देखा। उसके बालों से पानी के मोती टपक रहे थे, जैसे उस पर किसी ने देवी समझ कर जल चढ़ाया हो...
हम तीनों चारों दोस्त अक्सर सुबह उठते और नौ बजे तक गली के मोड़ पर खड़े हो जाते थे।
करने को कुछ था नहीं। पढ़ाई सरकारी कामकाज की तरह चलती थी। सबको पता था कि कालेज द्वारा एवेलेबल नोट्स होने की शर्त पर परीक्षा की जंग जीत जाएंगे। हम पैरोडी भी बनाते थे-
जीत जाएंगे हम... जीत जाएंगे हम, नोट्स अगर संग हैं...
     दीपेश ने बीच में टांग अड़ा दी। यार पहले उस लड़की के बारे में कुछ बात करो। यार वह एकदम सनफ्लावर है। उसने बताया कि पिछले मंथ उसने सनफ्लावर के खेत देखे थे। उसने बताया कि वह सनफ्लावर की तरह है। उसे छत पर सुबह की धूप में चेहरा झुकाए, बालों को लहराकर सुखाते हुए देखा था। मैंने अपना गुस्सा उतारते हुए कई सारी कल्पनाएं उन पर डाल दीं। वह गुस्सा होती तो मई की धूप का टुकड़ा लगती। सुबह छत पर जाती तब दोनों ओर गमलों की बीच महकती तुलसी की तरह लगती। उदास होती तो शाम के धुंधलके में घिरा हुआ फूल हो जाती।
यह बहुत पुरानी बात है। जब हम पढ़ रहे थे और दुनिया के बारे में कुछ नहीं जानते थे। जो जानते थे वह इतना था कि हमें एक अच्छी दोस्ती की जिंदगीभर जरूरत रहेगी। यह दोस्ती एक लड़की से भी हो सकती है और लड़के से भी।
    अब मित्रो इस दुनिया में नहीं है। उसकी कहानी आज भी दुनिया में बह रही है। जब कोई इस दुनिया से कहीं चला जाता है तो उसकी कहानी खत्म नहीं हो जाती। क्योंकि इंसान चला जाता है लेकिन उसके बारे में सोचने वाले लोगों में उस आदमी की कहानी जिंदा रहती है। मित्रों की कहानी भी हमारे बारे बीच में जिंदा थी। 
    हम दोस्त उसके बारे में ऐसे बातें करते थे जैसे उसके बारे में सब कुछ जानते हैं। मित्रो कस्बे की लड़की थी। जैसे छोटे शहर होते हैं। छोटे शहर में एक मेन सड़क होती है। शहर की गलियां मेन सड़क को सहेलियों की तरह घेरे रहती हैं। छोटी गली के बाशिंदे बड़ी गली की उपमा देकर अपने आप पर ताना कसते हैं कि वो गली कितनी अच्छी है। बड़ी गली के लोग मुख्य सड़क के लिए कहते हैं सबकुछ उसी सड़क के किनारे है। छोटे शहर के लोग बड़े शहरों की सड़क़ों व भवनों की साफ सफाई और अपने शहर की नेतागिरी को तुच्छ ठहराते हुए जीते हैं।
    मित्रो यह सब कुछ नहीं करती थी लेकिन वह किताबों कहानियों ओर टीवी सीरियलों को देख कर अपने घर की तुलना करती थी। वह माता पिता घर कुटुम्ब गली और अपने आपको कम या ज्यादा ठहराती। उसका कुल मकसद यह था कि उसे और उसकी सहेलियों को कोई बड़े शहरों की लड़कियों से कम करके क्यों आंकता है। मित्रो नाराज होकर अपनी मम्मी से कहती-‘हओ ! तुम्हारे जैसो कोई नहीं करै मम्मी। तुम जरा जरा सी बातें लै कै..... अन्वि की मम्मी बिलकुल टोका टाकी नहीं करें।’ मम्मी दहाड़ती-‘देख तू मेरी सरीगत किसी अन्वि की मम्मी से मत करू कर। तू हमें तो पागल समझती है। हम तेरे भले के लिए टोकते हैं।’
        ‘हमें ऐसो भलो नहीं चाहिए। ‘मित्रो के चेहरे पर कड़वाहट की परत चढ़ जाती थी। मां बेटी दो दिशाओं की तरह एक घर में घूमने लगती थीं। कुछ देर में विभाजन स्वत: मिट जाता जैसे दो कमरों की हवा दरवाजा खुलने के बाद एक हो जाती है। शाम होते ही मित्रो छत पर आ जाती । कमरे की तरह दिन की घुटन को हटाने के लिए खुली छत पर गहरी सांसों को सीने में भरती। उसकी सहेली सिमी ने एक दिन टोका था-‘ऐसी सांसें लेती है जैसे दूसरे दिन के लिए भर रही है।’ मित्रो कहती-‘ताजी हवा है न।’ सिमी कहती ‘कल बंद थोड़ी हो जाएगी।’ मित्रो कोई उत्तर नहीं देती बल्कि सूरज को एक टक देखने लगती। ‘क्या हो गया।’ सिमी टोकती। मित्रो पूछती -‘बता मैं सड़क के तरफ क्यों देखती हूं।’ सिमी चैंक जाती। वह सम्हल कर बोली-ह्यह्यकिसी का इंतजार है।’ मित्रो सुनते ही हंसने लगी-‘तुम भी यार क्या.... प्यार प्यार मुझे चिढ़ होने लगी है। अच्छे कपड़े पहनो तो हर कोई यही कहता है-प्यार करने लगी होगी। कुछ नया करो तो लोगों का अन्दाज प्यार से बाहर निकलता ही नहीं।’
    ‘प्यार से बाहर कोई निकले कैसे, घर से बाहर निकलें और निकलने दें तब न। ज्यादा से ज्यादा यहीं छत पर आ सकते हो। मैं अपने घर से तेरे घर पर ही तो आ सकती हंू। मैं और तू यहां से बाहर कहीं गए हैं क्या। चाहे वो एन.सी.सी का कैंप हो पिकनिक हो या कहीं भी... देश दुनिया देखने को मिले तो प्यार की बातें छूटे। ‘रहने दे अब ज्यादा मत झाड़ ।  तू समझदार हो गई है।   मित्रो हंसी थी।  ‘हां एक दिन मैं सोच रही थी- अपने यहां के लोग कहीं घूमने नहीं जाते ओैर न जाने देते। ज्यादा से ज्यादा आसपास की शादियों में खाना खाने जरूर चले जाते हैं।’ मित्रो सड़क को देख रही थी। मित्रो सड़क देख रही थी। सिमी ने मित्रो को बीच में खींचा। ठोड़ी पकड़ कर पूछा-ह्यह्ययार ये क्या है। ये मैं आज ही नहीं कई बार देख चुकी हूं। तू बोलते हुए बात करते हुए सड़क ही क्यों देखती है। थोड़ी देर पहले तूने पूछा था अब मैं तुझसे पूछ रही हूं कि तू सड़क क्यों देखती है। ‘तुझे नीचे चलना है।’ मित्रो ने स्थिर स्वर में कहा। ‘मुझे नीचे नहीं चलना है लेकिन ये है  कि तू किसका इंतजार करती है। बताती भी नहीं।’
    ‘मैं इंतजार तो करती हूं लेकिन किसी प्यार करने वाले का नहीं। मैं जिसका इंजार करती हूं वह इस सड़क से कभी नहीं गुजरा। ज्यादा नहीे कुछ दिनों से उसकी याद ज्यादा आ रही है। इस छत पर आकर मुझे चैन मिलता हैं। सड़क को देखने से भरोसा आता है। जानती है क्यों, इसलिए कि सड़क पर हर चीज चलती हुई दिखती है।’  सिमी आंखें फाड़ कर उसे देखने लगी थी। उसकी आंखें सिकुड़ गईं।-‘तू पागल हो गई। क्या हो गया तुझे.. क्या अनजानी बातें करने लगी।’ सिमी दोनों हाथ उसके कंधों पर रख कर देर तक मि़त्रों की आंखों में ताकती रही। जैसे वह उसके इंतजार करने वाले की  शक्ल उसकी आंखों में खोजना चाहती थी। ‘तू समझी नहीं।’ मित्रो ने सिमी के हाथों को अपने कंधों से हटाया-‘एक बार और तुझे समझाती हूं- जब मैं छोटी थी...’ ‘अब क्या बड़ी हो गई...’ सिमी दादी की तरह बीच में बोली।
    ‘...अरे यार ... मेरा मतलब अब से छोटी थी... नानी ने इसी छत पर एक कहानी सुनाई थी। वह थी तो कुछ भी नहीं पर तू सुन ले कि हम दोनों यहां थें। सब लोग टीवी देख रहे थे। चांद खिला हुआ था। आसमान में इक्का दुक्का तारे बच्चों की तरह चमक रहे थे। उधमी बच्चों की तरह वे चांद से बहुत दूर थे। चांद के चारों तरफ धुधला सा एक घेरा था। मैंनें पूछा कि नानी चांद ऐसा क्यों है तो उसने बताया कि वह तुझे देख कर हंस रहा है। नानी ने एक कहानी सुनाई उसमें कुछ भी नहीं था- बस एक लड़का था। वो लड़का बहुत दूर से यहां आ रहा था। उसे हर इंसान प्यार करता था। वो एक राजकुमार था। वह यहां आएगा। इसी सड़क से गुजरेगा। तुझे प्यार करेगा और आसमानों में तुझे ले जाएगा।  मैने नानी से पूछा वह कब आएगा? नानी ने कहा- आता होगा एक दो दिन में...
     दो दिन बाद मैंने पूछा तो नानी ने कहा-‘अपन ने कल जो फिल्म देखी थी । वह तो उसमें मर गया। ‘मैंने नानी से कहा-ह्यपर नानी मुझे तो उसकी याद आने लगी है।’ नानी ने कहा यह तो बहुत अच्छा है। अब तू उसका इंतजार कर वह जरूर आएगा। नानी यहां से चली गई। मैंने उससे फोन पर कहा ह्यह्यआप तो मुझे वह लड़का दो आपने मुझे ऐसी कहानी क्यो सुनाई। वह लड़का फिल्म में क्यों मर गया। क्या अच्छे लड़के इस तरह क्यों मर जाते है। तो वो बोलीं-‘एक लड़का और है वह बिलकुल साधारण है लेकिन उसे पहचानना मुश्किल है। अब ये मैं उसके बारे में नहीं जानती कि कब वह इस सड़क पर से निकलता है। तुझे चाहिए तो तू रोज देख... कुछ दिनों में तुझे उसकी पहचान आ जाएगी।
    नानी को मैंने फिर फोन लगाया तो उन्होंने कहा कि उनको बुखार आ रहा है. जल्दी ही भगवान उनके लिए आसमान से सीढ़ियां भेज रहा है। एक दिन मम्मी खूब जोर से रोने लगीं। किसी ने मुझे बताया कि तेरी नानी उपर चली गई। मुझे उनकी सीढ़ियों की बात याद आने लगी। मैंने सपने में बहुत लम्मी सीढ़ी देखी जिस पर नानी उपर जा रही हैं। मैं उनको आवाज दे रही हूं लेकिन वे नहीं सुन रही हैं।
        ‘अरे तो पगलाती क्यों है। परीक्षा की तैयारी कर।’
        ‘लेकिन मुझे उसकी बहुत याद आती है।.. नानी ने कहा था जिस दिन वह लड़का तुझे मिल जाएगा। उस दिन से मम्मी तुझे डांटना बंद कर देंगी। खूब घूमने जाने देगीं। पापा की पे बढ़ जाएगी। घर के कोने रोशनी से भर जाएंगे। सड़कें और गलियां साफ सुन्दर हो जाएंगी। झुग्गियों की जगह महल बन जाएंगे। लोगों की गरीबी दूर हो जाएगी। आसमान सात रंगों का दिखने लगेगा। तू ओर तेरी सहेलियां और खूबसूरत हो जाएंगी। लेकिन नानी ने कहा था तू उससे प्यार नहीं कर सकती। मैं सच में उससे प्यार नहीं करूंगी।’ सिमी आंखें फाड़ कर उसका मुंह देखे जा रही थी। इससे पहले तो उसने मित्रो के बारे में इतना तो नहीं सोचा था। यह कैसी हो गई है। मित्रो बोल रही थी-‘सिमी वह मुझे नहीं दिखा तो मैं जल्दी ही नीचे गलियों और सड़कों पर खोजने उतर जाउंगी.....’
एक दिन ऐसा हुआ। मित्रोे बिना बताए कहीं चली गई.... उसके दोस्त और उसकी सहेलियां उसे आज भी उस कस्बे में इंतजार कर रहे हैं। 

समाप्त


रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति
टॉप 12, हाई लाइफ काम्पलेक्स, चर्चरोड, जहांगीराबाद भोपाल
२६ंस्रल्ल्र’.१ं५्र@ॅें्र’.ूङ्मे
9826782660