सोमवार, जनवरी 17, 2011

एक पत्र
जब में कुछ नहीं था तब तू आई .........तू मुझ में मिल गई .... तू हवा थी ... और
 एक दिन तुने मुझे बादल  बना दिया .... सच सा  बादल .... हम दोनों अब इस आसमान के
एक हिस्से की तरह है ....
वक्त के साथ चल रहे है .........तू कुछ कहती है और मै सुनता रहता हूँ

मुझे तेरा कुछ कहना अच्छ लगता है .... कभी  कभी तू दोनों हो जाती है कभी में दोनों हो के
 बोल उठता हूँ .... हम दोना कभी कभी एक दुसरे से भागते है
फिर कभी में तेरी गोद में सिर रख देता हूँ कभी तू मेरे सीने में दुबक जाती है
कुछ देर ठहरती है तू हवा है
तू मुझे आसमान बना कर उड़ने लगती है.....जाने कहाँ कहाँ ...........

मैं बादल हूँ ........... तू हवा ...........
चल अपने ही शहर पर उड़ते हैं

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