रविवार, अप्रैल 18, 2010

आयकर अधिकारी और रिश्वत, क्या बचा अब!

दे श में समस्याएं और भी हैं लेकिन फिलहाल लगता है कि सिर्फ भ्रष्टाचार ही एक मात्र ऐसा शब्द है जो देश के हर मामले में फंसा मिलता है। आयकर विभाग भी इससे अछूता नहीं है। रिश्वत के मामले में मुंबई में सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा ने आयकर विभाग की महिला अधिकारी सुमित्रा बनर्जी और उसके पति को 1.5 करोड़ की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया है। सुमित्रा ने यह रिश्वत ठाणे के भवन निर्माता से उसके कर को कम करने के लिए मांगी गई रिश्वत चार करोड़ रिश्वत मांगी थी। लेकिन जिस धन पर काम करने की बात बनी थी, वह 1.5 करोड़ रुपए था। जिसे सीबीआई ने पकड़ा है। समाज में भ्रष्टाचार की व्यप्ति से इन मामलों पर सोच विचार करने वाला एक तबका चिंतित है। चाहे आईपीएल हो या फिर आयकर या दूसरी योजनाएं। भ्रष्टाचार शब्द अखबारों-टीवी में लोगों ने इतनी बार सुना है कि इसके प्रति एक राष्ट्रीय उपेक्षा भाव आ रहा है। जनसामान्य के विश्वास को इतनी बार छला जा चुका है कि अब उनका मन मानता ही नहीं है कि कोई चीज बिना घपले, भ्रष्ट आर्थिक लेनेदेन और दबावों के बिना अस्तित्व में आ भी सकती है? आखिर भ्रष्टाचार अब यदाकाद घटने वाली घटना नहीं रही यह रोजमर्रा का काम हो गया है। टीवी-अखबारों में कहीं न कहीं इस तरह की कोई खबर फंसी ही रहती है। लोगों को इस तरह की खबरों से चौंकना और चर्चा करना जैसे बंद कर दिया है। वे हजार दस हजार की रिश्वत की खबरें, गरीबों से लिए जाने वाले दो पांचा सौ रुपए कहीं गिनती में नहीं आते। अब लाखों अथवा करोड़ का मामला थोड़ी सनसनी देता है। हाल ही में मुंबई जो कुछ हुआ अब उसमें देश का हर इंसान शामिल हो गया महसूस होता है। मामला जब आयकर विभाग से जुड़ा हो तो और भी गंभीर हो जाता है। आयकर वैसे भी सबसे अधिक मलाई वाला विभाग माना जाता रहा है। यह करोड़ों की संपत्ति से सीधा जुड़ा है। ऐसा नहीं है कि यह महिला ही एक मात्र रिश्वत ले रही थी। वहां रोज ही कोई न कोई ले रहा होगा। शनिवार को महिला पकड़ा गई और बाकी नहीं पकड़ाए। भ्रष्टाचार का मामला इतना गंभीर हो चुका है कि अब इस पर बड़े पुनर्विचार की आवश्यकता है।

बाघों के 28 करोड़

प न्ना टाइगर रिजर्व में बाघों की जान बचाने के लिए वन विभाग ने 28 करोड़ रुपए फूंक दिए। जले पर नमक छिड़कने जैसा दूसरा काम वन विभाग ने यह किया है कि उसने बाघों की वह रिर्पोट भी गायब कर दी या करवा दी गई, जिसमें पन्ना टाइगर रिर्जव के बाघों की मौतों के कारणों का खुलास किया गया था। इस रिर्पोट के गायब होने की जानकारी सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी में वन विभाग ने दी। इस रिर्पोट के कारण कई बड़े अधिकारियों पर उंगली उठाई जाती। इन अधिकारियों ने पन्ना रिर्जव से गायब होते बाघों के बाद भी तीन साल से करोड़ों की भारीभरकम राशि की उपयोगिता रिर्पोट देते रहे। केंद्र से बजट बढ़वाते रहे। निश्चय ही यह गोलमाल का कारोबार रहा है, जिसमें कई बड़े अधिकारी और नेताओं की श्रृंखला काम कर रही होगी। पिछले तीन सालों में इन 28 करोड़ रुपयों का कोई सदुपयोग होता तो निश्चित रूप से ही बाघ और जंगल दोनों ही आबाद होते। सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी में वन विभाग 27.74 करोड़ की सूचना तो दे दी लेकिन वे जनवरी 04 के बाद बाघों के मरने, लुप्त होने और शिकार होने की जानकारी के सबंध में की गई जांच रिपोर्ट नहीं दे सका। इसके बाद एक गैर जिम्मेदारी भरा जबाव अवश्य वन विभाग ने दिया कि यह रिपोर्ट उसके पास नहीं है।
पन्ना रिर्जव में बाघों के गायब होने का अध्ययन कर रहे आर एस चुंडावत ने बाघों के गायब होने की जानकारी 2005 में ही दे थी। लेकिन भ्रष्टाचार में डूबे हुए अमला ऐसे आवाजें सुनने का आदी नहीं है। वह तो बाघ की दहाड़ तक गुम करने में मशगूल रहा तो फिर वह ये क्यों सुनने चला कि पन्ना रिर्जव में बाघ समाप्त हो चुके हैं। नोटों की फसल में इस देश प्रदेश का न जाने क्या क्या गुम हो चुका है।

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