मंगलवार, अप्रैल 27, 2010

विकास के प्राधिकरण भष्टाचार के अभिकरण



यह कदम स्वागत योग्य है, पर बेहतर हो कि भ्रष्टाचार को पहले ही रोकने के उपाय किए जाएं।
्नरा ज्य सरकार ने प्रदेश के पांच नगर विकास प्राधिकरणों को भ्रष्टाचार की शिकायतों के चलते भंग कर दिया है। जिन प्राधिकरणों को भंग किया गया है, उनमें इंदौर, जबलपुर, देवास, उज्जैन और ग्वालियर शामिल हैं। इस मामले में भोपाल विकास प्राधिकरण सुरक्षित रहा, कह सकते हैं बच गया। खबरों के अनुसार उनमें अधिकतर के अध्यक्षों पर भूमि घोटालों, मिलीभगत से विभिन्न प्रकार से संपत्ति का निर्माण और राजनीतिक लाभ पहुंचाने के आरोप रहे हैं। विभिन्न राजनीतिक संगठनों और जनता द्वारा की गई शिकायतों के आधार पर इन प्राधिकरणों पर राज्य सरकार ने कार्यवाही की है। लेकिन इस कार्यवाही को पर्याप्त नहीं कहा जा सकता। प्राधिकरण भंग करने का मतलब महज इतना है कि राज्य सरकार जो हो चुका है उसे वहीं रोक कर नए अध्यक्ष नियुक्त करेगी। जिस तरह प्राधिकरणों के अध्यक्षों के खिलाफ दस्तावेजी सबूत सामने आ रहे हैं, उनके अनुसार तो उनके संपूर्ण कार्यकाल की जांच की जानी चाहिए और दोषी पाए जाने पर उन्हें न्यायालय के समक्ष न्यायिक कार्यवाही के लिए भी प्रस्तुत करना चाहिए। भ्रष्टाचार के इन मामलों में वास्तविकताएं राजनीति से सीधे प्रभावित होने के कारण ही देश के नागरिकों का पैसा और संसाधन भ्रष्टाचार की बलि चढ़ता रहता है। राजनीतिक नियुक्ति के रूप में पद पाए लोग अधिकतर मामलों में बेहद गैर जिम्मेदाराना तरीके से कार्य करते हैं। उनका उद्देश्य सेवा से अधिक लाभों पर आधारित काम करने की प्रवृत्ति होती है। राज्य सरकार द्वारा अपनी नाक को बचाने के लिए इस तरह की कार्यवाहियां करना आवश्यक है। पर जो भ्रष्टाचार हो चुका है उसकी भरपाई के लिए कोई कदम क्यों नहीं उठाया जाता। सरकारी प्राधिकरणों में जिस तरह से गैर जिम्मेदारी की भावना व्याप्त हो चुकी है और जनता भी उसको सहज भाव से ले रही है, वह लोकतंत्र के लिए एक घातक प्रवृति है। जनता द्वारा लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को जिस उपेक्षित दृष्टिकोण से देखा जा रहा है वह आगे जाकर इस व्यवस्था के प्रति विद्रोह के बीज बोने की तरह है।


किरण बेदी के मायने

अ गर महिला आरक्षण बिल लागू होता है तो मैं भी चुनाव लडूंगी। एक महिला के नाते किरण बेदी के ये विचार महिलाओं के प्रति बड़ी हार्दिकता और जीत की ओर इशारा करते हैं। कोई भी महिला अगर भारतीय लोकतंत्र में लाभ उठाने का प्रयास करती है तो यह उसका संवैधानिक अधिकार होता है। महिला आरक्षण से लाभ उठाने यानी चुनाव लड़ने की किरण बेदी की आकांक्षा एक शुभ संकेत है। महिलाओं के प्रति इस देश में सदियों से एक उपेक्षित समुदाय की तरह व्यवहार किया जाता रहा है। इसके पीछे पुरुषों के अपने कुछ ऐतिहासिक-सामाजिक-मानसिक कारण रहे होंगे लेकिन आज उनकी कोई आवश्यकता नहीं है। पुरुष मानसिकता महिलाओं के प्रति पूर्वाग्राही रही है। यह शिक्षा, धर्म और सामाजिक रूप से पिछड़ेपन का परिणाम रहा है। स्वस्थ मानसिकता मानवीय रूप में किसी भी प्रकार से महिलाओं को कमतर नहीं आंक सकती। किरण बेदी का चुनाव लड़ना एक संकेत ही नहीं है बल्कि यह एक मिशन बन बन सकता। उनका चुनाव लड़ना समाज और महिलाओं के प्रति किरण वेदी ने अपनी प्रतिबद्वता व्यक्त की है। भारतीय जनता की सामान्य सोच की बात की जाए तो किरण बेदी जैसी महिलाओं की आवश्यकता को पूरी गंभीरता से महसूस करती है। आज आवश्यकता है कि समाज को भारतीय लोकतंत्र की सफलता के लिए किरण बेदी जैसी महिलाओं को आगे लाना होगा। खुलाी बात है कि बेईमानों के बहुमत में ईमानदारों का बहुमत तो बड़ाना ही होगा। भारतीय लोकतंत्र को ऐसे ही महिला व्यक्तित्वों की आवश्यकता है। जहां कर्तव्य और ईमानदारी की कद्र होती है।


चुटकुला
स्वेटर में लगने वाला समय

महिलाओं की पार्टी हो रही थी। किसी ने मजाक-मजाक में सवाल पूछा कि - एक महिला को पूरी बांहों का स्वेटर तैयार करने में कितना समय लगेगा? उत्तर देने के लिए कई महिलाओं ने हाथ उठाए। सबके उत्तर अलग अलग थे। एक मजेदार उत्तर मिला, जो इस प्रकार है-
यदि स्वेटर प्रेमी का है, तो तीन दिन में।
यदि पड़ोसन के पति का है, तो तीन हफ्ते में।
यदि अपने पति का है, तो कम-से-कम तीन महीने या उससे भी ज्यादा लग सकते हैं।

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