गुरुवार, अप्रैल 22, 2010

आईपीएल: विवादों की क्रीज पर ललित मोदी

वर्तनी जाँचे
कमाई का गठजोड़ बन चुके आईपीए में हो रही अनिमितता को आयकर के छापे राज खोल रहे हैं।


आ ईपीएल क्रिकेट ग्लैमर और सनसनी का ऐसा उत्सव बन गया था, जिसमें असीम पैसा, अनंत भ्रष्टाचार और बहुत सारा सट्टा था, बल्कि कहें है यह ग्लैमर, काले धन और क्रिकेट का आधुनिक काकटेल है। आईपीएल जब प्रारंभ हुआ था तब इसका आइडिया ललित मोदी ने कहां से लिया था, यह अलग मुद्दा है लेकिन जिस तरह से मोदी प्रभावित आईपीएल ने प्रचार, मीडिया और देश के युवाओं को खेल और ग्लैमर की मादकता परोसी उसमें देश का धनी वर्ग, जो करोड़ों से कम का टर्नओवर स्वीकार ही नहीं करता, अपने कालेधन पर खेल और ग्लैमर की सफेदी चढ़ाकर खातों को जायज बना रहा था। ललित मोदी इस गेम के सबसे बड़े बेस्टमेन बन कर उभर आए हैं, अभी वे इस्तीफा न देकर, मीटिंग में न आकर क्रीज से हटने से ही इंकार कर रहे हैं। आईपीएल पर प्रवर्तन निदेशालय ने विदेशी मुद्रा विनिमय प्रबंधन (फेमा) के तहत मामला दर्ज कर लिया है। अब आईपीएल-एक की नीलामियों की मूल कापियों की आवश्यता महसूस हो रही है। यह काम तीन साल पहले किया जाना चाहिए था, जिसे अब अंजाम दिया जा रहा है। लगता है देश के हुक्मरान विवादों के बीच में अपने कतर्व्य याद करते हैं। वरना आईपीएल के करोड़ों रूपए देख कर आयकर विभाग हाथ पर हाथ रखे क्यों बैठा रहा- क्या इससे यह नहीं झलकता कि तुम भी शांति से भोजन करो और हमें भी करने दो। और तीन साल से चल रहे इस हाई प्रोफाइल गेम में अब तक न जाने कितने करोड़ का सौदा-सट्टा हो चुका है। वह किसी को दिखाई देगा? काफी समय गुजर चुका है और सबूतों को कोई भी धनकुबेर इतने दिनों तक खुली लापरवाही में रहने देगा? आयकर विभाग आईपीएल से जुड़ी फ्रेंचाइजियों के आॅफिसों में छापे मार कर दस्तावेजों की पड़ताल कर रहा है। यह आयकर विभाग बता पाएगा कि उसे काम के कितने कागजात क्या मिल रहे हैं। वरना तो उम्मीद ही नहीं है कि वहां वह रद्दी को ही खंगाल रहा होगा। इतने दिनों से चल रहे विवाद और छापों की आमद के बाद ये आर्थिक उच्चवर्ग अपने घोटालों को दफन करने की पूरी रणनीति तैयार कर चुका होगा। मामले में आज भी रफादफा के स्वर बुलंद हैं और हल की उम्मीद अभी नहीं है।


भाजपा मुद्दों की ओर


म हंगाई पर भारतीय जनता पार्टी की रैली का क्या असर हो सकता है? शायद ही इसे को कोई अर्थशास्त्री बता पाए, लेकिन इस समय कोई भी नेता इस रैली और महंगाई का बयान कर सकता है। नेता और अंधभक्त कार्यकताओं के बयानों का मतलब है कि विपक्ष ही सारी समस्याओं का एकमात्र कारण है। एक जटिल लोकतंत्र के नेता जिस तरह चीजों का सरलीकरण करते रहे हैं, अगर उनके कार्यकर्ताओं को छोड़ दें, तो कोई उनकी बातों पर ज्यादा यकीन नहीं करता। लेकिन यह अच्छी बात है कि भारतीय जनता पार्टी ने मंदिर या उस जैसे किसी मुद्दे की जगह व्यापक जनाधार वाले मुद्दे मंहगाई को चुना। महंगाई एक सरकार की असफलता हो सकती है और विपक्ष का कर्तव्य बनता है कि वह उसे उसके कर्तव्यों की याद दिलाए। भारतीय जनता पार्टी ने जिस प्रकार महंगाई के खिलाफ जिस प्रकार गांव गांव और गलीकूचों तक इस आंदोलन को पहुंचाने की अपील की है उसमें भारतीय जनता पार्टी के अंदर हो रहे परिवर्तनों की एक झलक भी मिलती है। लोकतंत्र में देश की जनता की आवाज बनना विपक्ष की आकांक्षा हो सकती है, लेकिन इसके लिए आवश्यक है कि उसे अपनी राजनीतिक विचारधारा के तहत जनता के स्वरों को पहचानना आना चाहिए। भाजपा का कुछ कुछ युवा हुआ नेतृत्व अगर देश की आवाज को पहचानने की कोश्शि कर रहा है तो यह देश के लोकतंत्र और उसकी सेहत के लिए अच्छा टानिक हो सकता है। यह भाारतीय जनता पार्टी के लिए भी ताजगी भरी हवा की तरह महसूस होगा।

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