शुक्रवार, मई 09, 2014

विजया सती ki ek achchi post

 कोरिया गणराज्य की राजधानी सिओल PDF Print E-mail >आपके विचार

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विजया सती
 कोरिया गणराज्य की राजधानी सिओल चारों ओर छोटे पर्वतों से घिरी है, बीच में हान नदी बहती है। यह शहर साठ के दशक के बाद तेजी से घनी आबादी वाले महानगर के रूप में विकसित हुआ। प्रोफेसर राय कई वर्षों से इस देश के दक्षिणी भाग में हिंदी शिक्षण कर रहे हैं। सर्दी के अंत में नया परिचय हुआ उनसे। आने वाले बसंत के लिए हमें आगाह किया उन्होंने- ‘यहां नंगे पेड़ों पर फूल पहले आते हैं और फिर हरियाली। बसंत यहां धमाके के साथ आता है।’ फिर जाना कि ‘चेरी-ब्लोसम’ बसंत के आरंभ का यही उत्सव है, जब सर्दी की ठंडी हवाएं और शून्य से नीचे पहुंचता तापमान विदा होता है और कतारबद्ध पेड़ चेरी के हल्के पीले और सफेद रंग के फूलों से लद जाते हैं। जरा ठंड कम होते ही ऐसे अनेक उत्सव आरंभ होते हैं, जब सैलानी इन खिले अद्भुत फूलों के बीच टहलते हुए शहर को इसके सुंदरतम रूप में देख सकते हैं। यह अच्छे मौसम, फूलों के सौंदर्य, बढ़िया भोजन और परंपरागत संस्कृति का आनंद लेने का अवसर होता है।
पहले-पहल जापानी शासन के समय यहां चेरी के खिलने के अवसर को उत्सव के रूप में परिचित कराया गया था। जापान द्वारा द्वितीय विश्वयुद्ध में समर्पण के बाद यह उत्सव आज भी मनाया तो जाता है, मगर इसके आरंभ के एक विवादास्पद पहलू को नजरअंदाज नहीं किया गया था और आधिपत्य के प्रतीक के रूप में देखे गए बहुत से चेरी के वृक्ष एक समय काट दिए गए थे। इस कटु सत्य के बावजूद देखने में यही आया कि शहर में प्रकृति को बचाए रखने की मुहिम तेज है। अगर पहाड़ के ऊपर घर बसे हैं तो सड़क सुरंग से होकर जा रही है। पेड़ों को काटे बिना पुल बनाए गए हैं। पत्थरों के बीच हरियाली समेटी गई है और फूल खिलाए गए हैं।
हान नदी के किनारे प्रकृति के साथ तकनीकी विकास का अनूठा संगम देखने को मिला। नदी के हर कोने से सिर ताने खड़ी इमारतें दिखाई देती हैं, जिनके नमूने अधुनातम तकनीक को प्रदर्शित करते हैं। नदी के तट की ओर जितना बढ़ते जाते हैं, आधुनिक जीवन की छवियां साकार होती जाती हैं। वर्जिश के लिए जुटे नवीनतम उपकरण, नदी किनारे लंबी सैर की खातिर अकेले या साथी के साथ मस्ती से चलाने के लिए नए नमूनों की साइकिलें, स्केटिंग करते बच्चे, हवा से बचने के लिए टेंट के भीतर लेटे-बैठे-सोए नगरवासी। नदी के चारों ओर दृष्टि दूर-दूर जहां तक जाती है, वहां तक दिखाई देता है बहुमंजिली इमारतों का जाल, जिनमें रिहाइश, दफ्तर और होटल हैं। लेकिन प्रकृति के बीच आना, उसके साथ घुल-मिल जाना भी यहां के वासी नहीं भूले हैं। इसलिए छुट्टी का दिन छोटे-छोटे पहाड़ों पर चढ़ने का दिन

है। सिर्फ बच्चे और युवाओं के लिए नहीं, बल्कि अधिकतर उम्रदराज लोगों के लिए भी! इन्हीं छोटे पहाड़ों में कुछ भीतर प्रविष्ट हो जाने पर घने पेड़ों के झुरमुटों के बीच स्वाभाविक रूप से टूटे पड़े लकड़ी-लट्ठों को यथावत संजो कर पर्वतारोहियों के बैठने-सुस्ता लेने के जो स्थान बनाए गए हैं, वे दूर-दूर तक रम्य दृश्य देखने के लिए भी उपयुक्त हैं। ठंडे प्रदेशों में धुपहला दिन जीवन का बड़ा उल्लास होता है। बच्चे-बूढ़ों सहित परिवार मौज के लिए बाहर निकल आते हैं। भारत में हम गरमी के सताए हुए लोग, जहां छाया भी छाया चाहती है, इस दृश्य को देख उल्लसित हो जाते हैं। धूप की मांग है, तरह-तरह के हैट लगाए धूप में टहलते तमाम लोग मगन हैं। भारी जनसमूह हान नदी के किनारे उमड़ पड़ा है, हरी-भरी घास का सुख लेने को। देश का यह सुप्रसिद्ध विश्वविद्यालय भी तकनीक के चरम विकास के साथ-साथ प्रकृति के नैसर्गिक सौंदर्य को अपने में समेटे खड़ा है। यह विदेशी भाषाओं के अध्ययन-शिक्षण का विशिष्ट केंद्र है। विश्व के अनेक भागों के शिक्षक अपनी मातृभाषा पढ़ाने यहां आए हैं। विश्वविद्यालय सही मायने में मुक्त है। इसकी कोई चारदिवारी नहीं है, बंद कर दिया जाने वाला कोई मुख्य द्वार नहीं है। आप किसी भी कोने से प्रविष्ट हो सकते हैं। भारतीय भाषा हिंदी के विभाग के अतिरिक्त यहां भारत अध्ययन संस्थान की दिशा भी भारत है।
भारत के साथ अपने सांस्कृतिक संबंध को यह देश इस रूप में याद करता है कि किसी समय अयोध्या की एक राजकुमारी का विवाह यहां के राजकुमार के साथ हुआ। भारत में भी इस तथ्य को मान्यता मिली और दोनों देशों ने पारस्परिक सहमति से राजकुमारी की स्मृति में एक स्मारक अयोध्या प्रशासन के सहयोग से मार्च 2001 अंकित किया। हरिऔध की एक बूंद सरीखी जब यहां पहुंच गई हूं तो इन दो समानताओं के अतिरिक्त कि दोनों देशों का स्वाधीनता दिवस एक ही तिथि को है और पराधीनता से मुक्ति के बाद दोनों देशों का विभाजन भी हुआ, कुछ अधिक की खोज में दत्तचित्त होना चाहती हूं!

1 टिप्पणी:

डॉ॰ विजया सती ने कहा…

धन्यवाद आपको मेरा लिखा (साझा करने लायक) पसंद आया