बुधवार, जनवरी 01, 2014

प्रताड़ना के आरोप :कई सवाल

  ज ब भी किसी बड़ सभ्रांत वर्ग के व्यक्ति पर रेप या यौन प्रताड़ना के आरोप लगते हैं तो कई सवाल भी सामने आ खड़े होते हैं। हाल ही में गिरीश वर्मा पर एक महिला ने रेप का आरोप लगाया है। ऐसे कई मामले वर्षों पुराने होते है तो कुछ एक नए। रेप और यौनप्रताड़ना को लेकर समाज में शिकायतों की संख्या बड़ी है अथवा रेप की संख्या बड़ी है। दोनों पक्ष गौर से देखने पर यह लगता है कि  महिलाओं ने रेप जैसे अपराध करने वाले अपराधी से प्रतिकार की क्षमता हासिल की है। इसमें कानून की सुरक्षा तो है ही त्वरित कार्यवाही से भी शिकायतों का प्रतिशत बढ़ा है। राजनीति और सामाजिक ताकत के गठजोड़ ने इस तरह के अपराधों का जन्म होता है। यह एक सामाजिक समस्या के साथ, ताकत के दुरुपयोग की समस्या है। स्त्रियों के प्रति दृष्टिकोण का भी मामला है। हालांकि रेप के लेकर कई तरह की रिसर्च भी हुए हैं जिनमें पाया गया है कि यह मात्र कानून से नियंत्रित की जाने वाली समस्या नहीं है। इसमें सामाजिक सोच और अनियंत्रित कामेच्छा दोनों शामिल हैं, जो किसी पल विशेष में इंसान के दिमाग पर जबर्दस्त तरीके से हावी हो जाती है। इसी अनियंत्रित कामेच्छा को संतुष्ट करने के लिए वह रेप जैसी हिंसा की ओर कदम बढ़ा देता है। लेकिन इस मामले में हुई तमाम रिसर्च इस बात को प्रमाणित करती नजर आती हैं कि एक रेपिस्ट के मस्तिष्क में होने वाली मनोवैज्ञानिक उथल-पुथल में सेक्शुअल डिजायर से ज्यादा महिला पर हावी होने और उसे कष्ट में देखने की चाह होती है और इसे पूरा करने के लिए ऐसे लोग सेक्स को माध्यम बनाता है। सेक्स करने की सामान्य और सहज प्राकृतिक इच्छा इस काम में गौण हो जाती है। रेप आधुनिक सभ्यता के प्रति अपराध है।
किसी रेपिस्ट की सोच, उसके दिमाग के काम करने का तरीका और आगे बढ़कर अपनी इस घिनौनी सोच को अंजाम तक पहुंचा देने की पूरी प्रक्रिया में मानव सेक्शुअलिटी सबसे काला पक्ष है। तमाम विशेषज्ञ बरसों से उन मनोवैज्ञानिक ताकतों और दबावों को जानने-समझने की कोशिश करते रहे हैं, जो किसी इंसान को रेप जैसे अपराध के लिए प्रेरित करते हैं। शोधों में रेपिस्ट के मस्तिष्क को पढ़ने के लिए बहुत समय पहले कनाडा में एक रिसर्च की गई, जिसमें महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रही सोच ही प्रमुख थी। प्रमुख रूप से महिलाओं के प्रति सैडिस्ट अप्रोच। रेप की घटनाओं को अंजाम देने से पहले ऐसे लोग ज्यादातर नशे में पाए गए हैं। महिलाओं को लेकर वे पूर्वाग्रहों से ग्रस्त भी थे। महिलाओं के प्रति उनके मन में इज्जत के भाव नहीं थे। कई बार ये सामान्य लोगों में उनकी सामाजिक आर्थिक हैसियत से भी यौन प्रताड़ना का जन्म होता है। दूसरी तरफ यह भी सच है कि कुछ मामले बदले की भावना से भी लगाए जाते रहे हैं। सहमति से सेक्स को बलात्कार का रूप देना, किसी के द्वारा देखने के बाद सार्वजनिक होने के डर से भी ऐसे मामले सामने आते रहे हैं। वास्तव में इस बारे में अधिक वस्तुनिष्ठ होने की आवश्यकता है। महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों का प्रतिकार अब सामाजिक परिवर्तन का हिस्सा हो चुका है। समाज को यह स्वीकार करना होगा।

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