मंगलवार, दिसंबर 10, 2013

कांग्रेस की हार

 


डीजल की कीमतों के बाद जब रोज की चीजें महंगी होने लगीं तो ग्राहक ने पूछा दाम क्यों बढ़े? दुकानदार ने कहा- डीजल बढ़ गया है। ग्राहक ने पूछा- डीजल किसने बढ़ाया तो उत्तर ‘कांग्रेस’ था। 

अ   ब चुनावों के नतीजों के बाद सिर्फ विचार और विश्लेषण ही बाकी बचा है। यह  काम तभी आता है जब उसे अमल में लाया जाए। इस तरह कांग्रेस की हार की कहानी बहुत पहले शुरू हो चुकी थी। जब कुछ महीने पहले हिसार लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस के खिलाफ 4-0 का नतीजा आया। एक उम्मीदवार की जमानत जब्त हो गई थी। यह एक कठोर संदेश था। लेकिन किसी ने यह पूछना आवश्यक नहीं समझा कि आखिर ऐसा क्यों हुआ? जनता इतनी नाराज क्यों है? इस घटना के बाद भी कांग्रेस कंपनियों को घाटे से बचाने के नाम पर हर हफ्ते डीजल और पैट्रोल की कीमतें बढ़ाने में लगी रही। डीजल की मामूली बढ़ोतरी ने खुदरा बाजार ने सामान्य चीजों की कीमतों को बढ़ाने की खुली छूट ले ली। कीमतें बढ़ने के बाद घटी नहीं। भले ही उनकी कीमतें थोक बाजार में घट गर्इं। थोक आंकड़ों में कीमतें कम-ज्यादा होती रहीं, लेकिन जनता को राहत नहीं मिल रही थी। कीमतों की बढ़ोतरी का सारा गुस्सा लोगों ने डीजल पैट्रोल पर निकाला। कांग्रेस महासचिव बीके हरिप्रसाद का कहना था कि हार अप्रत्याशित नहीं थी, जबकि पार्टी के उम्मीदवार की हिसार में जमानत जब्त हो गई थी। इसी समय टीम अन्ना के सदस्य अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि हिसार का नतीजा जन लोकपाल विधेयक पर एक जनमत संग्रह है।
 केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक सुधारों के नाम पर सृजित महंगाई को चुनाव में महंगाई और भ्रष्टाचार प्रमुख मुद्दे थे। एक प्रमुख नारा था-पेट्रोल महंगा, डीजल महंगा लेकिन भ्रष्टाचार सस्ता। कांग्रेसी नेताओं के पास इस चुनाव के दौरान भ्रष्टाचार दलील नहीं थी। कांग्रेस के पास राहुल गांधी के रूप में एक केंद्रीय शक्ति को सृजित करने वाला चेहरा था लेकिन वे जनता को एक सख्त और ताकतवर शासक की तरह आकर्षित नहीं कर सके। लोग कहने लगे कि राहुल अपनी पार्टी के बड़े नेताओं के पढ़ाने पर वही बोलते हैं जो उन्हें कहा जाता है। अन्ना के उस विशाल जन समर्थन को राहुल और उनकी पार्टी समझ ही नहीं सकी। इसके अलावा कांग्रेस पार्टी अपने पुराने वैचारिक नारों का ही इस्तेमाल करती रही जैसे कि भाजपा सांप्रदायिक है, जबकि भाजपा ने अपने आपको बदला है। मध्यप्रदेश इसका उदाहरण है। कांग्रेस की हार का एक कारण यह भी है कि उसके पास एकसूत्रता की कमी थी।  नेतृत्व में एक स्पार्क होना चाहिए वह कहीं दिखाई नहीं दिया। युवा नेतृत्व युवा और पहली बार मतदान कर रहे लोगों को आकर्षित नहीं कर सके। कांग्रेस के पास ऊर्जा नहीं थी।  सरकार व संगठन दोनों जीत के मुगालते में रहे। कांग्रेस नेता समझ ही नहीं पाए कि महंगाई व भ्रष्टाचार के अभियान में दम है। महंगाई से तो जनता जूझ ही रही है, उस पर से भ्रष्टाचार ने खाज का काम किया। चुनाव से पहले पेट्रोल व डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी की बातें होती रहीं। मजदूर किसान एवं नौजवान सभी परेशान रहे। प्रधानमंत्री पद पर हैं लेकिन सत्ता में नहीं हैं। इसी राजनीतिक सच्चाई के कारण पार्टी दिशाहीन होती चली गई और एक हारी हुई पार्टी बन गई।

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