सोमवार, मार्च 25, 2013

महिलाओं के प्रति हिंसा का जन्म समाज के दोहरे चरित्र में निहित है

  
इस घटना के सामने आने से कानून व्यवस्था के प्रति अविश्वास तो दिखा ही यह भी दिखा कि सामाजिक परिवेश में परिवार अपने बच्चों को जीवन और समाज के प्रति सम्मान नहीं सिखा पा रहा है।

भो पाल में एक लड़के ने अपनी पूर्व परिचित मित्र को सरेआम पीटा और झूमा झटकी की। यह घटना केवल भोपाल की नहीं है बल्कि पूरे देश में कहीं की भी हो सकती है और ऐसी घटनाएं हो भी रही हैं। पूर्व परिचित द्वारा महिलाओं के प्रति हिंसा का बहुत कम प्रतिशत पुलिस या अखबारों के सामने आ पाता है। दूसरा पहलू ये है कि लोग ऐसी घटनाओं को देखते हुए गुजरते रहे। यह सामाजिक असंवेदनशीलता है तो कानून और व्यवस्था के लिए चुनौती भी है। लोगों द्वारा इस तरह की घटनाओं को नजरअंदाज करना सामाजिक स्तर पर गैर जिम्मेदार परिवेश की समस्या के रूप में भी  देखा जा सकता है। हम अपने समाज में कानून और सामाजिक परिवेश के असंतुलन का शिकार हैं। महिला और पुरुष की समस्याएं जितनी कानून और व्यवस्था का हिस्सा हैं उतनी ही सामाजिक शिक्षा और परिवेश का हिस्सा भी हैं। अच्छे सामाजिक परिवेश में कानून और व्यवस्था भी असरकारी होती है। सख्त कानून तभी सार्थक होते हैं जब समाज में जीवन का स्तर उच्चतर हो। जिस समाज में जीवन के प्रति कोई महत्व न हो। अपराधी मानसिकता के व्यक्ति को समाज में रहना और जेल जाना दोनों ही बराबर लगते हों तो वहां कानून असहाय ही नजर आते रहेंगे।
इस घटना के सामने आने से कानून व्यवस्था के प्रति अविश्वास तो दिखा ही यह भी दिखा कि सामाजिक परिवेश में परिवार अपने बच्चों को जीवन और समाज के प्रति सम्मान नहीं सिखा पा रहा है। बच्चों में सामाजिक गैर जिम्मेदारी के बढ़ने से इस तरह के युवा समाज का हिस्सा हो जाते हैं। कहा जा सकता है कि स्त्रियों के प्रति हो रहे अपराधों के लिए यदि कानून व्यवस्था बड़ी हद तक जिम्मेदार है तो देश की रूढ़िवादी सामाजिक व्यवस्था भी उतनी ही जिम्मेदार है। ऐसी घटनाओं के कारण कई लोग  महिलाओं को घरों से बाहर न निकलने और पर्दा रखने के सुझाव देते हैं, उन्हें शायद यह नहीं पता कि महिलाओं के साथ हिंसा और छेड़छाड़ की ज्यादातर घटनाएं सड़कों पर नहीं बल्कि घरों में होती हैं, और इनमें परिवार और परिचित भी शामिल होते हैं। अधिकतर घटनाओं को समाज दोहरी मानसिकता और इज्जत के नाम पर छुपा लेता है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार 2011 में 22,549 बलात्कार की घटनाएं दर्ज की गर्इं, जिनमें से लगभग 18 प्रतिशत बलात्कार परिचितों द्वारा किए गए थे। यह स्थिति तब है जब परिचितों द्वारा किए गए बलात्कार के ज्यादातर मामले दबा लिए जाते हैं। इन समस्याओं से निपटने के लिए हमें मानव मूल्यों और सामाजिक संवेदनशीलता का विकास करना होगा। देश की आर्थिक विकास दर ऊंची होने के बावजूद मानवीय विकास सूचकांक में हम 187 देशों की सूची में 137 वें स्थान पर हैं। महिलाओं के प्रति हिंसा का जन्म समाज के दोहरे चरित्र में निहित है। हमें कानून व्यवस्था को अधिक चुस्त करने के साथ अपने सामाजिक परिवेश को अधिक जिम्मेदार और संवेदनशील बनाने के प्रति काम करना होगा।

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