शुक्रवार, जनवरी 04, 2013

अमेरिका में घृणा


एक तरफ विश्व ग्राम की बात की जाती है तो दूसरी तरफ मानव सभ्यता को घृणा जैसे मनोविकार से मुक्त नहीं किया जा सका है। दुनिया में नस्लीय घृणा की मानसिकता बढ़ रही है।


मेरिका के न्युयॉर्क में इस महीने सब-वे रेल स्टेशन पर ट्रेन के सामने धक्का देकर हत्या का यह दूसरा मामला है। इससे पहले टाइम्स स्क्वेयर पर रेलवे स्टेशन पर भी एक व्यक्ति को पटरियों पर आती हुई ट्रेन के सामने धक्का देकर मार डाला गया था। यह मामला भी घृणा से जुड़ा था। दुनिया के लिए मानवता का संदेश देने वाले अमेरिकी अब इस नस्लीय हिंसा का क्या उत्तर देंगे? जिस महिला एरिका मेनेंडेज ने इस हत्या को अंजाम दिया उसने स्वीकार किया है कि हां उसने धक्का मारा था। उसने पुलिस को बताया कि मैंने समझा कि वह एक मुस्लिम है। नस्लीय घृणा की यह मानसिकता एक उच्च सभ्यता के प्रतीक अमेरिकी समाज में फैलना कई तरह की चिंताओं का कारण बन सकता है।
हालांकि त्वरित कार्यवाही करते हुए पुलिस ने धक्का देने वाली 31वर्षीय एरिका को गिरफ्Þतार कर लिया है। पूछताछ में महिला ने पुलिस को बताया है कि 9/11 के बाद से उसे हिंदुओं और मुसलमानों से घृणा हो गई। इसके बाद पुलिस ने उस पर घृणा अपराध के लिए सेकंड डिग्री हत्या का आरोप तय किया है। पुलिस के मुताबिक उसने सेन को मुसलमान समझकर मारने के लिए ही चलती हुई ट्रेन के सामने धक्का दिया था। सुनंदो सेन क्वींस इलाके के 40 स्ट्रीट स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर खड़े थे। उस समय वह काम से घर लौट रहे थे। सतर्कता के लिए इन दो हादसों के बाद सब-वे ट्रेन प्राधिकरण के निदेशक जोसफÞ लोटा ने अपील की है कि प्लेटफÞार्म पर जÞरूरी एहतियात बरतें। जोसफÞ लोटा ने कहा, मैं सभी यात्रियों से अनुरोध करता हूं कि वह पटरी के बिल्कुल पास न खड़े हों औरÞ अगर कोई संदिग्ध व्यक्ति दिखाई दे तो फÞौरन 911 पर पुलिस को फÞोन करें। यह चेतावनी तो भारतीय नेताओं के स्तर की है। इसमें कोई सरकारी प्र्रयासों की झलक नहीं मिलती है। न्यूयॉर्क में सबवे और लाईट रेल सेवा का 85 लाख लोग रोजÞाना प्रयोग करते हैं। इतने बड़े नेटवर्क के लिए यह समस्या ही है। मूल तत्व है घृणा को तिरोहित करना। यह मनोवैज्ञानिक सत्य है कि जब गुस्से को उपचार नहीं होता तो वह बैर और घृणा में बदल जाता है। इससे लोग इस तरह के कामों को अंजाम देते हैं। इस पर पूरी दुनिया को गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। यह घृणा अगर संगठित रूप में सामने आ जाए तो यह आतंक का दूसरा रूप है। अमेरिकी समाज में यह तात्कालिक प्रतीकात्मक विरोध है जो धीरे धीरे हिंसक घृणा का रूप लेता जा रहा है। यह नस्लीय हिंसा सुप्त और निष्क्रि य क्रोध से पैदा होती है। यह विकृत रूप है, जो नहीं देखता है कि उसके कारण से कौन मारा जा रहा है। यह अमेरिका में फैली हताशा का परिणाम भी हो सकता है। अक्सर इस तरह की हिंसा हताश मानसिकता का प्रतीक भी है। और अंत में अमेरिका अपने लोगों के व्यवहार को कैसे बदले? हिंसा की ये घटनाएं अमेरिकी ही नहीं पूरी दुनिया को भी सोचने पर मजबूर कर रही हैं। अमेरिका में प्रवासी हिंदू और मुस्लिमों के प्रति घृणा स्वस्थ्य समाज का लक्षण नहीं है। अमेरिका को इस घृणा और क्रोध को खत्म करने के लिए दूरगामी उपायों को अपनाना चाहिए। वरना ये शुरुआत है जो घृणा और हिंसा को और अधिक फैला सकती है।

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

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