सोमवार, दिसंबर 03, 2012

यूनियन कार्बाइड के कचरे

  आज के हालात देख कर लगता है कि यह त्रासदी वोट हासिल करने की राजनीति बन चुकी है। राजनीतिक नेतृत्व को  इस मसले पर जितनी गंभीरता बरतना चाहिए, उस तरह से नहीं लिया गया।

भो पाल के लिए दो-तीन दिसंबर 1984 की रात काल बनकर आई थी। उस रात को याद कर के उसकी दास्ता को सुन कर लोग अजीब से डर में डूब जाते हैं। यूनियन कार्बाइड संयंत्र से गैस रिसाव होने के कारण हर तरफ मौत दिखाई देती थी। गैस के दुष्परिणाम आज भी यहां के लोग भुगत रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक 20 हजार से ज्यादा लोग गैस के असर के चलते अब तक जिंदगी से हाथ धो चुके हैं, वहीं साढ़े पांच लाख से ज्यादा लोग गैसे के प्रभावों से संघर्ष कर रहे हैं। इस गैस से प्रभावित लोगों के संगठनों का कहना है कि न तो उन्हें पूरा मुआवजा मिला है और न ही यूनियन कार्बाइड के कचरे को हटाया गया है। दूसरी ओर इस त्रासदी के अपराधियों को थोड़ी सी सजा दी गई थी। इसने कार्बाइड त्रासदी के अपराधियों को छूटने का मौका दिया और जो लोग इस भयानक औद्योगिक त्रासदी के भुगत भोगी हैं वे जानते हैं कि उनका जीवन इस त्रासदी के बाद एक नरक में बदल गया था। सात जून 2010 को यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के पूर्व अध्यक्ष केशव महेंद्रा एवं अन्य सात आरोपियों को धारा 304-ए  के तहत दो साल की सजा मिली। हजारों लोगों के मौत के लिए जिम्मेदार अरोपियों को मात्र दो साल की सजा! यह  गैस पीड़ितों के लिए दूसरी त्रासदी थी। इस सजा पर कई लोगों ने आश्चर्य व्यक्त किया था। देश और प्रदेश के नेतृत्व को यह बात पता है कि यह एक लापरवाही थी जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था। यह सुरक्षा के प्रति उपेक्षा नहीं यह कंपनी द्वारा धन बचाने के लिए किया गया अपराध था। जिसको भोपाल के लोग आज तक भुगत रहे हैं। इस पूरी प्रक्रिया को न्याय नहीं कहा जा सकता।
भोपाल ग्रुप आॅफ इंफोर्मेशन एण्ड एक्शन के अनुसार फैक्ट्री के आसपास का भूजल यूनियन कार्बाइड के कचरे से दुष्प्रभावित हो रहा है। इन इलाकों के पानी में जहरीले कचरे के असर की पुष्टि हो चुकी है। क्या ये हजारों लोगों को कई सालों तक फिर से मरने को छोड़ देने की लापरवाही नहीं है? मुआवजे को लेकर भी शिकायतें कायम हैं। गैस त्रासदी से प्रभावित 94 फीसदी लोगों को सिर्फ 25 हजार रुपये का मुआवजा मिला है। संगठनों की मांग है कि सरकार हादसे के लिए जिम्मेदार कम्पनी से बतौर हर्जाना 44 हजार करोड़ रुपये की मांग करे। वर्तमान में साढ़े पांच हजार करोड़ रुपये की ही मांग की गई है। पीड़ितों के संगठनों का कहना है कि 11 अमेरिकी नागरिकों की मौत पर ब्रिटिश कारपोरेशन को 22 हजार करोड़ रुपए का दंड भरना पड़ा था, मगर भारत में हजारों लोगों की मौत पर सिर्फ साढ़े पांच हजार करोड़ रुपए। भारत सरकार को गैस पीड़ितों के लिए भी पर्याप्त मुआवजे की मांग करनी चाहिए। इतना ही नहीं जहरीले कचरे से प्रदूषित होने वाले पानी का भी दायरा बढ़ रहा है। आज के हालात देख कर लगता है कि यह त्रासदी वोट हासिल करने की राजनीति बन चुकी है। राजनीतिक नेतृत्व को  इस मसले पर जितनी गंभीरता बरतना चाहिए, उस तरह से नहीं लिया गया। वास्तव में हम एक देश के रूप में आज भी अपने नागरिकों के जीवन का सम्मान करना नहीं सीखे हैं।


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