शुक्रवार, सितंबर 07, 2012

ठाकरे बनाम बिहारी

 मानवीय समाज एक सीधी साधी संरचना नहीं है। राज ठाकरे जैसे लोग समाज में पैदा होते रहे हैं। दूसरी तरफ जब हम एक देश हैं तो अपराधी पकड़ने गई मुंबई पुलिस को नीतीश सरकार ने धमकी क्यों दी?

बिहार वालों के खिलाफ विवादास्पद बयान देकर महाराष्ट्र नव निर्माण सेना प्रमुख राज ठाकरे एक बार फिर सभी राजनीतिक पार्टियों के निशाने पर आ गए हैं। बयान ने विभिन्न पार्टियों के नेताओं के गुस्से को इतना भड़का दिया है कि उन्होंने राज के खिलाफ राजद्रोह का मामला चलाने की मांग कर डाली है। साथ ही उन्होंने राज को याद दिलाया है कि देश का संविधान देश के हर नागरिक को यह अधिकार देता है कि वह कहीं भी बस सकता है। लेकिन नेताओं की बयानबाजी में जो सामने आ रहा है राज की धमकी के निहितार्थ उससे आगे के हैं। राज ठाकरे की सीमित राजनीति को समझने के लिए उनके बयानों के क्षेत्रवाद की कई परतों को खोलने की आवश्यकता है। राज ठाकरे ने आजाद मैदान की हिंसा के बाद बड़ा मोर्चा निकाला था। उन्होंने इससे पुलिस और मीडिया की हमदर्दी हासिल की थी लेकिन उसके बाद उन्होंने फिर बिहार बनाम महाराष्ट्र की राजनीति शुरू कर दी। पहले भोजपुरी फिल्म एक बिहारी सब पर भारी के प्रदर्शन पर बवाल मचाया, हिंदी न्यूज चैनलों को टार्गेट किया। आलोचना के बाद राज ने पलटी खाते हुए कहा कि वे मराठी और अंग्रेजी मीडिया की नहीं हिंदी चैनल की बात कह रहे हैं। दूसरी तरफ उन्होंने यह भी सही ही कहा है कि अंग्रेजी चैनल तो वैसे ही आसमान में उड़ते हैं क्योंकि उन्हें यहां से ज्यादा अमेरिका और ओबामा की फिक्र रहती है। उन्होंने हिंदी चैनलों को दो-टूक कहा कि उनके खिलाफ खबरें प्रसारित करना और बहस में लोगों को बुलाकर चर्चा करना बंद करें। अन्यथा महाराष्ट्र में चैनल नहीं चलने देंगे।
               मीडिया के लिए इस प्रकार की निर्देशित करने वाली धमकी एक गंभीर खतरे का संकेत भी है। इस सारी उठापटक और उनकी चारों ओर से होने वाली आलोचना के बाद  राज ने कहा कि उन्होंने बिहार के बारे में जो कुछ कहा उसका गलत अर्थ लगाया गया। गलत अर्थ क्या लगाया, गलत अर्थ तब लगाया जा सकता है जब उसमें गलत अर्थ लगाने की गुंजाइश होती है।  हां राज ने मनसे सम्मेलन में बिहार के मुख्य सचिव द्वारा मुंबई पुलिस को भेजे पत्र, जिसमें बिहार सरकार को सूचित किए बिना आरोपी को पकड़कर लाने पर न्यायिक कार्रवाई की बात कही गई है, को सम्मेलन में भुनाने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि जब मैं परप्रांतियों का मामला उठाता हूं तो लोग यह तर्क देते हैं कि देश का प्रत्येक नागरिक हर प्रांत में बिना रोकटोक आ जा सकता है। मेरा उनसे सवाल है कि अगर ऐसा है तो फिर एक राज्य की पुलिस दूसरे राज्य में क्यों नहीं जा सकती। यह बातें तर्क के आधार पर सही हैं। हमें ऐसी व्यवस्थाओं के प्रति भी ध्यान देना होगा जिसमें पुलिस का काम त्वरित हो सके। यह सही है कि सूचित करना फिर अनुमति लेना त्वरित कार्रवाही पर नकेल लगाने जैसा है। कुल मिला कर राज के व्यवहार संवैधानिक प्राधिकार के लिए चुनौती बन गए हैं।



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