गुरुवार, अगस्त 16, 2012

वकीलों से पंचायत!



अक्सर समाज मे ंये माना जाता है कि वकीलों की समस्याएं नहीं होतीं। जब मुख्यमंत्री की वकील पंचायत हुई तो वकीलों की समस्याएं भी सामने आइं।

 मुख्यमंत्री निवास में पिछले कुछ वर्षों से समाज के विभिन्न वर्गों की पंचायतें आयोजित की जा रही हैं। इन पंचायतों की विशेषता ये है कि इनमें वर्ग विशेष को प्राथमिकता के आधार पर संवाद स्थापित किया जाता है। यह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का समाज से संवाद करने का वर्गीकृत तरीका है। इस तरीके में सबसे नई बात ये है कि संवाद का स्वरूप बिखराव का शिकार नहीं होता। कुछ ही दिनों पहले फेरी वाले हाथ ठेला चलाने वालों से मुख्यमंत्री ने संवाद यादगार रहा था। मध्य प्रदेश में विभिन्न वर्गो से सीधे संवाद स्थापित करने के लिए चल रही कोशिशों के क्रम में12 अगस्त को वकीलों की पंचायत आयोजित की गई। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अब तक 21 पंचायतों का आयोजन कर चुके हैं, और वकीलों की पंचायत 22 वीं पंचायत है। इस पंचायत में पूरे राज्य से वकीलों के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं। इस पंचायत में वकीलों की वास्तविक जरूरतों, समस्याओं पर मुख्यमंत्री द्वारा सीधे संवाद किया और कई महत्वपूर्ण फैसलों का एलान भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा किया गया।
यह अपने आप में राजनीतिक नवाचार है। जन सामान्य और समाज में आम धारणा यह बनी हुई है कि  वकीलों की कोई समस्या नहीं होती। पंचायत के होने से कई स्तर पर वकीलों से जुड़ी समस्याआें से प्रशासन और जन सामान्य अवगत हुआ। अब करीब 2 दर्जन पंचायतें अभी तक आयोजित हो चुकी हैं, लेकिन पंचायतों में की गई घोषणाओं के क्रियान्वयन की स्थिति से आज भी लोग अनभिज्ञ हैं।  पछले कुछ वर्षों से न्यायालयों में आसामाजिक तत्वों की गतिविधियां तेजी से बढ़ने के कारण वकीलों का जीवन भी संकट में आ गया है तथा गैंगवार जैसी घटनाएं भी अब न्यायालयों में होना सामान्य बात हो गई है, जिसका उदाहरण इंदौर, ग्वालियर, भोपाल में हुई घटनाएं हैं। वकीलों के लिए न्यायालयों में  बैठने के लिए उचित व्यवस्थाएं नहीं हैं, इस संबंध में पंचायत में कोई ठोस और उचित निर्णय लिया जाए। वकील समुदाय पैरवी करते समय किसी राजनीतिक पार्टी का प्रतिनिधि नहीं होता है, बल्कि वह अपने व्यवसाय को ईमानदारी से करता है, तब ऐसी स्थिति में राज्य सरकार द्वारा शासकीय उपक्रमों एवं निकायों में राजनीतिक विचारधारा से प्रभावित वकीलों को नियुक्त किया जाना न्यायोचित नहीं है। उद्योगों एवं व्यापारिक प्रतिष्ठानों के विरूद्व निरीक्षकों के प्रकरण श्रम न्यायालय को सुनने के अधिकार हों। प्र्रदेश में म.प्र. औद्योगिक संबंध अधिनियम का कानून करीब 29 कल कारखानों से हटाकर औद्योगिक विवाद अधिनियम का कानून लागू कर दिया गया है, जिससे श्रमिकों को न्याय मिलने में अत्यधिक देरी होती है, जिसे सुधारा जाना आवश्यक है।  ये सभी मांगे वकीलों की समस्याओं की ओर ध्यान खींचती हैं
मुख्यमंत्री की घोषणा का स्वागत हुआ है कि अब सरकार वकीलों को अपना व्यवसाय प्रारंभ करने के लिए शासन 12 हजार रूपए की आर्थिक सहायता देगी।  संवाद का यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा।

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