रविवार, मार्च 25, 2012

Arti Paliwal, BHOPAL



हम ग्लोबल डेस्टनी के कलाकार हैं


 मैं कामों में ग्लोबल डेस्टनी को संभालती हूं। मैं अपने काम में दुनिया के नेचर के बारे में बताती हूं। इसी से इसमें मानवीयता जुड़ जाती है। जैसे मैं जब अपने घर से, जहां बहुत सी हरियाली है भारत भवन तक आती हूं तो दो चीजें दिखती हैं। क्रांक्रीट के जंगल और भीड़ से भरी हुई सड़कें। यह सारे दृश्य मेरे मन में जुड़ गए। ये दो धु्रव हो गए हैं। मेरे घर पर हरियाली और भारत भवन की हरियाली। प्राकृतिक वातावरण। कई दिन जब यूं ही निकल गए तो मैंने महसूस किया कि शहर का यातायात है सडकें हैं। वे उतनी सुहानी प्राकृतिक नहीं हैं। बस यहीं से सीरीज मन में आई। मैंने इसके कई शिल्पों को आकार दिया।
इस शहरी भीड़भाड़ से महसूस किया कि हमारे समाज का मानवीय जीवन कांक्रीट के जंगल में कितना बिजी हो गया है। उसका कितना बोझा लिए रहता है। सब कांसियस माइंड में यह तो है कि डेली जीवन में मॉडर्न लाइव बोझ लिए है। मैं मानती हूं कि अगर नेचर है तो ही मनुष्य सर्वाइव करेगा। जैसे सफर के लिए हेलमेट कितना जरूरी है वैसे ही ध्यान में रखना जरूरी है कि प्रकृति है तभी हम बचेंगे। इसे मैं ग्लोबल डेस्टनी कहती हूं।
हम प्रभावित होते हैं
इंसान हमेशा दो तरह से प्रभावित होता है। एक या तो वह एकदम गलत चीजों से प्रभावित होता है या बहुत अच्छी चीजों से। मैं इस बात से प्रभावित हुई कि मुझे काम करना है। मैं चाहती हूं कि निरंतर काम में इंपू्रवमेंट आना चाहिए। इसके लिए मैं सीनियर आर्टिस्ट से डिसकस करती हंू। पेंडिंग डाइंग बहुत सारी विधाएं सोच विचार में आती हैं लेकिन वे एक साथ प्रभावित नहीं करतीं।
मैं सभी तरह के भावों को स्वीकार करती हूं देखती हूं ओर फिर अपना शिल्प लेकर आती हूं। यूं कहें कि मैं एकला चलो का भाव लेकर काम करती हूं। मैं किसी शिल्प के ऊपर कितना काम कर सकती हूं तो वह मैं करती हूं। मैंने एक फिल्म देखी थी उसमें एप्पल और आई दिखा तो वह मैं उसे शिल्प में लेकर आई। इस तरह से चीजें आती हैं।
सबके लिए काम
मैं जो काम कर रही हूं वह पूरी दुनिया के लिए होता है। मैं उसे सबके लिए करती हूं। यह नहीं सोचती कि यह सिर्फ मेरे लिए है। जब मैं शिल्प बनाती हूं तो सोचती हूं यह पूरी दुनिया के लिए है। सब तरफ से सीख सबके लिए काम करना एक गतिशीलता देता है।
मैंने एक बार भारत भवन में सोलो नाटक देखा था, उस के भावों को शिल्प में दिखाने की कोशिश की थी। मुझे दूसरी चीजों को देखकर भाव आते हैं।
पढ़ना-लिखना
यह कम ही होता है। हां जब मन करता है तो पढ़ती हूं। काफी सारी किताबें हैं। पॉजिटिव थिंकिंग खास तौर से पढ़ती हूं।
मन की परिभाषा
मन की परिभाषा मेरे लिए अभी देना कठिन है। मैं मन से ही काम करती हूं। जब काम कर रही होती हूं तो अपने विचारों के साथ काम कर रही होती हूं। मैं अलग अलग नहीं कर पाती ये सब। सोचना विचारना और करना सब एक साथ ही होता है।
खोजती हूं
हर कलाकृति में मैं अपने आप को खोजती हूं। उसमें खुद को देखने की कोशिश करती हूं। कलाकृतियों में मेरा मन और मेरा समाज सब होता है।
निजी जीवन और कला
कलाकार के रूप में निजी जीवन बहुत सा प्रभावित करता है लेकिन मेरी कोशिश रहती है कि मैं अपना काम करती रहूं। कोइ आए कोई जाए मेरा काम जारी रहे। आसपास वाले कभी बोलते हैं ये करो तो अभी ये मत करो। मुझे लगता है कि हां मैं मान जाऊं । मैं एक बार काम करना प्रारंभ करती हूं तो फिर भूलती नहीं हूं। मुझे कुछ सोचना है काम करना है। मैं कैसे कर सकती हूं। दस दिन काम नहीं किया तो लगता है जैसे काम नहीं हो पा रहा है। जब मैं काम नहीं कर रही होती हूं तो सबसे अधिक बुरा लगता है और सोसायटी की बातें सोचने समझने में आती हैं।


सहयोग के भाव
प्रेम मेरे लिए कोई अलग से नहीं है। बस जिसके साथ हों उससे ट्युनिंग अच्छी हो। उससे बातचीत करना डिस्कस करना अच्छा लगे। अब इसमें घर के मेंबर भी होते हैं।  सहयोग प्रेम और साहचर्य के  भाव हमारी लाइफ का हिस्सा हंै। जो अच्छा लगता है वह काम के बीच में बाधा नहीं बनता है।

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