शुक्रवार, सितंबर 09, 2011

कोचिंग संस्थान शिक्षा के नए रूप और अध्याय

 

भोपाल में पहली आईएएस कोचिंग 1990 में खुली थी और 2009 में इसने आईएसओ 2009 प्रमाण पत्र ले लिया।

म  ध्यप्रदेश सरकार प्रदेश के कोचिंग संस्थानों को कानूनी नियमितता प्रदान करने जा रही है। इस नियमन के लिए सरकार ने एक कमेटी बना दी है। इससे प्रदेश में चल रहे कोचिंग संस्थानों को एक सुनिश्चित मार्गदर्शन मिलेगा। कोचिंग संस्थान शासन की नजरों में बहुत दिनों से थे लेकिन अब सरकार ने कोचिंग संस्थानों में चल रहे शिक्षण प्रशिक्षण को नियमों में बांधने का निश्चय किया है। कोचिंग संस्थानों ने प्रतियोगिता परीक्षाओं और अध्ययन की कठिनइयों के बीच जन्म लिया। आज यह युवाओं की सबसे पहली प्राथमिकता में शामिल हैं। कोचिंग लेकर द्वारा छात्र आत्मविश्वास तो प्राप्त करते ही हैं, संबंधित विषय में कुशलता भी तेजी से प्राप्त करते हैं।
भोपाल में पहली आइएएस कोचिंग 1990 में खुली थी और 2009 में इसने अंतरराष्ट्रीय मानकीकरण आइएसओ 2009 प्रमाणपत्र ले लिया है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कोचिंग संस्थानों के विकास की गति कितनी तेज है। यह विकास समाज में उनके महत्व और आवश्यकताओं को भी बताता है। सरकार प्रदेश के गांव-कस्बों में फैलते कोचिंग संस्थानों का नियमन करके उन्हें एक पंजीकृत संस्था के रूप में देखना चाहती है।
को चिंग संस्थानों को विधायी बंदिशों के तहत लाए जाने का मतलब है कि वे कहीं न कहीं स्वतंत्रता का दुरुपयोग कर रहे थे। कानून भी तभी अस्तित्व में आता है जब किसी संस्थान से शोषण की शिकायतें आती हैं। कानून और नियम बना सरकार कोचिंग संस्थानों से छात्रों के शोषण से मुक्ति मुश्किल है। एक अनुमान के अनुसार 300 करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार कर रहे कोचिंग संस्थानों का निजी एवं सरकारी कालेजों के साथ अघोषित, लचीला और मजबूत अनुबंधों का जाल फैला हुआ है। इस कानून से कोचिंग संस्थान सरकार को राजस्व अवश्य देंगे और इस राजस्व का भार संस्थान छात्रों पर ही डालेंगे। सरकार को कोचिंग संस्थानों की कुकुरमुत्ता की तरह गांवों शहरों में आई बाढ़ को हतोत्साहित करने की आवश्यकता है। इस नियमन से संस्थान अपने अनाप-शनाप शुल्क को कानूनी जामा पहना कर वसूल करेंगे। पंद्रह साल पहले कोचिंग  संस्थान में कोई बच्चा इसलिए जाता था कि वह गणित या विज्ञान में कमजोर लेकिन आज कोचिंग छात्रों के बीच स्टेटस सिंबल बन चुके हैं। कोचिंग संस्थान शिक्षा के वास्तविक उद्देश्यों को शार्टकट से पाने का माध्यम बनते जा रहे हैं।

आ  वश्यकता आविष्कार की जननी है। समाज को जिस तरह की आवश्यकताएं होगी, वैसी संस्थाएं जन्म लेंगी। प्रदेश सरकार के कानून का स्वरूप अभी पूरी तरह से सामने नहीं आया है। लेकिन समझा जा रहा है कि इससे छात्रों और अभिभावकों को कई प्रकार की राहतें मिलेंगी। आज प्रदेश में कोई यह नहीं बता सकता कि प्रदेश में कुल कितने कोचिंग संस्थान संचालित हो रहे हैं। यह अराजक स्थिति भी दूर होगी।

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