शुक्रवार, सितंबर 30, 2011

जनसंख्या नियंत्रण केरल की एक पहल


 किसी नागरिक को धार्मिक या अन्य आधार पर जनसंख्या नियोजन से बचने या न मानने की अनुमति नहीं


ऐसे में यह कानून उन गरीबों के साथ कैसे न्याय करेगा जिनके बच्चे असमय इलाज के अभाव में मर जाते हैं।


के रल सरकार द्वारा प्रस्तावित केरल ‘वुमेन कोड बिल 2011’ जनसंख्या नियंत्रण के लिए सबसे प्रभावी कानून हो सकता है। जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर की अध्यक्षता वाली 12  सदस्यीय कमेटी ने इस कानून का ड्राफ्ट केरल सरकार को सौंपा है। जस्टिस वीआर कृष्णा एक विद्वान और दूरदर्शी सोच के व्यक्ति हैं। उनकी अध्यक्षता में इस काननू का ड्राफ्ट तैयार किया है तो निश्चय ही यह  तार्किक होगा। बढ़ती जनसंख्या के नियंत्रण के लिए यह जरूरी है कि एक सर्वव्यापी कानून हो। केरल में प्रस्तावित इस कानून से जनसंख्या वृद्धि दर नियंत्रित होगी। महिला कल्याण तथा बाल विकास सूचकांक में भी सुधार होगा। इस बिल में कई अच्छी बातें शामिल हैं।  इसमें सबसे प्रमुख यही है कि प्रदेश के किसी नागरिक को धार्मिक, जाति, क्षेत्र या राजनीतिक आधार पर जनसंख्या नियोजन से बचने या न मानने की अनुमति नहीं होगी। शादी के समय गर्भ निरोधक उपायों एवं इससे संबंधित जानकारी भी निशुल्क प्रदान की जाएगी। निशुल्क गर्भपात की व्यवस्था भी इसमें है। 19 साल की उम्र के बाद शादी और 20 साल के बाद बच्चा पैदा करने पर प्रोत्साहन राशि देने का प्रावधान रखा गया है। केरल सरकार का यह कानून महिला कल्याण तथा जनसंख्या नियंत्रण के लिए कारगर पहल साबित होगा।


स  रकार अब बच्चे पैदा करने पर नियंत्रण कर रही है।  हम सरकार को बताएंगे कि हम 20 साल के हो गए। हम बच्चा पैदा कर रहे हैं। सरकार समाज की परंपराएं और उसके रीतिरिवाजों को ध्यान में रखे  बिना कानून बना रही हैं। सरकार का यह कानून प्रदेश की सामाजिक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में हस्तक्षेप है। यह कानून नागरिकों के मौलिक अधिकारों में भी दखल है। बच्चा पैदा करना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिस पर सरकार नियंत्रण करना चाहती है। तीसरा बच्चा पैदा होने पर पति को 10 हजार का जुर्माना और तीन साल की सजा का प्रावधान है। इस तरह की सजाएं व्यक्ति को अपने ही बच्चे को इंकार करने वाले हादसों को अंजाम दे सकती हैं। हो सकता है कि तीसरे बच्चे के जन्म के लिए दूरदराज के लोग अस्पतालों में ही न जाएं। एक गरीब के लिए तीन चार बच्चे उसके घरेलू कामों में हाथ बंटाने और सहयोगी होते हैं। अमीर परिवारों की अपेक्षा बाल मृत्युदर गरीब परिवारों में  अधिक होती है। ऐसे में यह कानून उन गरीबों के साथ कैसे न्याय करेगा जिनके बच्चे असमय इलाज के अभाव में मर जाते हैं। रोज कमाने वाले मजदूर के लिए जनसंख्या नियोजन कानून की कैद  परिवार के लिए भूखों मरने जैसे स्थितिएं पैदा करेगा।



क्  या अब राज्य तय करेगा कि आपको कितने बच्चे पैदा करना है।    यह राज्य द्वारा व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अतिक्रमण है। बच्चे पैदा करना एक प्राकृतिक परिघटना है इसमें कानूनी बंदिशें और अनुशासन व्यक्ति की स्वतंत्रता और उसके निजी जीवन के फैसलों मेंअनावश्यक दखल है। इस तरह के कानूनों की जगह में  लोगों में स्वभाविक तरीके से जनसंख्या नियंत्रण को प्रेरित करना चाहिए। इस दिशा में देश ने सफलताएं अर्जित की हैं।

कोई टिप्पणी नहीं: