रविवार, अक्तूबर 03, 2010

यकीन का कांच


खिड़कियों में किरणों के जाले दिखते हैं
सूरज का पता मिलता नहीं
ये वक्त कैसी षक्ल लेके आया है
मेरी जिंदगी में अपनी शक्ल देखता है

मुझे बार बार तोड़ने पड़ते हैं किरणों के जाले
हाथ में थोडी सी रोशनी रह जाती हैं
रोशनी से देख रहा हूं जामने के हरफ

धूप से लिख रहा हूं
यकीन के कांच पर-बहुत याद आती है
  हम वर्षो से नहीं मिले ऐसा लगता है 

और यकीन का कांच टूटता नहीं