गुरुवार, मई 13, 2010

व्यक्तिगत होता जनहित

नए मुख्य न्यायाधीश सरोश होमी कपाडिया कि निउक्ति

नवनियुक्त मुख्य न्यायाधीश सरोश होमी कपाड़िया ने अपने कार्यकाल के पहले दिन ही अनावश्यक जनहित याचिकाओं को दरकिनार करने की बात कहकर भारतीय न्याय व्यवस्था के सामने कुछ नए संकेत रखे हैं। आखिर देश के मुख्य न्यायाधीश को पहले ही दिन यह संदेश क्यों देना पड़ा कि हर याचिका जनहित के लिए नहीं लगाई जाती है। भारत की न्याय व्यवस्था में सरकारी तंत्र की उदासीनता और शोषण, अन्याय के शिकार लोगों को न्याय दिलाने के मकसद को जनहित याचिकाओं को मंजूरी दी गई है। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट केवल पोस्टकार्ड को याचिका मानकर जनहित से जुड़े मामलों की सुनवाई करते रहे हैं। इधर, कुछ वर्षों से कई व्यक्तियों और संस्थाओं ने निहित स्वार्थों की खातिर जनहित याचिकाओं का दुरूपयोग किया है। कई लोग सस्ता प्रचार पाने की खातिर याचिका दाखिल करते हैं। लिहाजा, इस संबंध में जस्टिस कपाड़िया की चेतावनी एकदम सही है। ऐसा लगता है कि श्री कपाड़िया ने अपने आने की दस्तक चुनौतियों का सामना करने के साथ दी है। अब चुनौतियों का एक लंबा सिलसिला उन्हें अपने कार्यकाल में मिलने जा रहा है। इसमें सबसे मुख्य है देश की अदालतों में लाखों मुकद्मों का लंबित होना। न्यायालयों में लंबित मामलों को सुलझाने के लिए श्री कपाड़िया को एक विशाल व्यवस्था को अपनी तरह से संचालित करने के साथ न्यायपूर्ण कुशलता का विकास करने की जिम्मेदारी का भी निर्वाह करना होगा। उन्हें न्यायपालिका की छवि को साफ-सुथरा बनाने के लिए विशेष प्रयास करने होंगे। न्यायाधीशों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतें सामने आ रही हंै। एक न्यायाधीश के खिलाफ संसद में महाअभियोग की कार्यवाही शुरू हो चुकी है। ऐसी स्थिति में मुख्य न्यायाधीश श्री कपाड़िया से देश के लोगों को उम्मीद है कि वे लोकतंत्र के एक महत्वपूर्ण स्तंभ की मजबूती के लिए अपना 2 वर्ष 4 माह का कार्यकाल उल्लेखनीय योगदानों से समादृत करेंगे।

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