सोमवार, अप्रैल 05, 2010

नक्सली कायर हैं तो आप क्या हैं?




लालगढ़, पश्चिम बंगाल में कही माननीय गृहमंत्री की बात मान भी लें कि नक्सली कायर हैं, जंगल में छुप कर सरकारी अमले और सुरक्षाकर्मियों को निशाना बनाते हैं। ठेकेदारों, अधिकारियों और नेताओं से फिरौती बसूलते हैं। यह नक्सली भी कर रहे हैं और देश के अपराधी भी यह कर रहे हैं। कानून के हिसाब से दोनों अपराधी हैं। गृहमंत्री के नाते पी चिदम्बरम के इस बयान का दूसरा पक्ष भी देखना आवश्यक है। इस बयान को देखें तो इससें पी चिदम्बरम अपनी ही कमजोरी को उजागर कर रहे हैं। उनके पास सरकार है, संसाधन हैं और एक पूरा प्रशासनिक तामझाम है जिसके दम पर वे एक अरब की जनसंख्या वाले देश को सम्हाल रहे हैं। ऐसे में नक्सलियों को कायर कह कर वे क्या सिद्ध करना चाहते हैं। क्या यह किसी समस्या से जुड़े पक्ष को कायर कहने से समस्या का समाधान संभव है। क्या नक्सलियों को कायर कह कर वे खुद को बहादुर सिद्ध कर रहे हैं। अगर नक्सली कायर हैं तो पी चिदम्बरम कायर लोगों पर अपनी विजय क्यों नहीं कायम कर पा रहे हैं। कायरों पर तो बहादुर बहुत जल्दी जीत दर्ज करते हैं।
आज आवश्यकता इस बात की नहीं है कि नक्सलियों को कायर कहा जाए। जरूरत नक्सलियों को पूरी ताकत से कुचलने की है। नक्सली होने के पीछे जो कारण है उन्हें समाधानों की तरफ ले जाने की आवश्यकता है। देश में कानून की सत्ता है। उसे कायम रखने का दायित्व गृहमंत्री और उनकी सरकार का होता है। कानून सामूहिक मानवीय आकांक्षाओं को प्राप्त करने का माध्यम है। वह चाहे शांति से रहने का अधिकार हो या फिर स्वतंत्रता से। जब कानून के माध्यम से समस्याओं की जड़ों तक पहुंचना संभव नहीं होता तब वहां आवश्यक मानवीय विवेक की आवश्यकता होती है। यह विवेक ही कानून के साथ मानवीय रास्तों से समस्याओं को समाधान की ओर ले जाता है।


आसमान में इसरो

इ सरो की तमाम उपलब्धियों में अधिक भार लेकर उड़ान भरने में सक्षम राकेट के विकास के साथ ही एक और स्वर्ण इबारत दर्ज हो चुकी है। अधिक भार लेकर राकेट उड़ान की तकनीक के विकास ने देश के आंतरिक्ष अभियानों का खर्च लगभग आधा होने जा रहा है। यह तकनीक सिर्फ राकेट प्रक्षेपण तक ही सीमित नहीं होगी। इसे अन्य क्षेत्रों में भी प्रयोग किया जाएगा। वह चाहे युद्ध संबंधी मिसाइल तकनीक हो या आंतरिक्ष के अभियान। तकनीक के विकास के नए आयाम देश में वास्तविक बदलाव की इबारत लिखते हैं। इस बदलाव में भूगर्भ इंजीनियरिंग, आंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, कृषि, कम्पयूटर सॉफ्टवेयर, मौसम, निर्माण अभियांत्रिकी आदि शामिल हैं। तकनीक के इस बदलाव में जब देश का हर पक्ष शामिल हो जाता है तब एक नई क्रांति की शुरुआत होती है। तकनीक के आधार पर आसमान पर काबिज होना एक देश की ताकत में इजाफा है। किसी देश की ताकत का आंकलन उसकी प्रौद्योगिकी पर निर्भर करता है। देश में इसरो आंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का केंद्र है। भारत के ये केंद्र ही देश की वास्तविकताओं को बदल सकते हैं। जब इसरो ने अपनी स्वयं विकसित क्रायोजनिक तकनीक को लगभग आधा कम कर लिया है तो यह विदेशी मुद्रा जैसे महत्वपूर्ण पक्ष को भी मजबूत करेगा। देश पहले से ही छोटे देशों को राकेट लांचिंग में मदद करता रहा है। यह मदद विदेशी मुद्रा का प्रमुख स्रोत रही है। आज अगर देश दुनिया को आधे खर्च पर राकेट भेजने के लिए अपने संसाधनों का इस्तेमाल करता है तो विकास की नई तस्वीर सामने आएगी। देश का तकनीक के मामले में दबदबा भी कायम होगा। आशा है इस तकनीक का व्यवसायिक उपयोग देश को नए तकनीकी युग की तरफ आगे ले जाएगा।

रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति

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