गुरुवार, जनवरी 10, 2013
रे ल किराए में वृद्धि
रे ल किराए में वृद्धि के साथ ही चारों तरफ हाहाकार शुरू हो गया है। महंगाई और बढ़ेगी। सरकार ने किराया बढ़ा दिया लेकिन यह भी विचार करना जरूरी है कि आखिर रेलवे के लिए यह वृद्धि कितनी वाजिब या कितनी जरूरी थी? भारतीय रेलवे एशिया का बड़ा संस्थान है जिसमें16 लाख से अधिक लोग रोजगार से जुड़े हैं। यह प्रतिदिन 2.5 करोड़ से अधिक लोगों को अपने गंतव्य पर पहुंचाता है। करीब 8 हजार रेलवे स्टेशनों को संभालता है। यह सब जानते हैं कि इतने बड़े नेटवर्क के संचालन के लिए विशाल पूंजी की आवश्यकता होती है। लेकिन वहीं दूसरा सवाल है कि लालू यादव ने रेलवे को जिस फायदे में पहुंचाया था, उसके बाद रेलवे की अर्थ व्यवस्था कैसे चरमराती चली गई? एक दौर में लालू ने पूरी दुनिया को इसी रेलवे के माध्यम से चौंकाया था लेकिन आज कौन सी परिस्थितियां बदल गर्इं कि रेलवे को बीच बजट में ये कदम उठाना पड़े। कैसे रेलवे को कहना पड़ा कि कर्मचारियों को पगार देने के लिए पैसे नहीं बचे।
जनता कई तरह की महंगाई से परेशान है लेकिन सरकार सुरक्षा और सुविधाओं की बात बार-बार करती है। प्रेस कॉफ्रेंस करते हुए रेल मंत्री पवन कुमार बंसल ने किराया बढ़ाने के पीछे तर्क दिया कि रेलवे का खर्चा बढ़ा, लेकिन किराया अब तक नहीं बढ़ाया गया था। रेल मंत्री ने यह भी साफ किया कि अब इसके बाद रेल बजट में किराया नहीं बढ़ाया जाएगा। यह तर्क क्यों? समझ से परे है कि यूपीए सरकार हर चीज महंगी करते हुए तर्क दे रही है कि यह जनता के हित में है या यह सब जनता की सुविधाओं के लिए किया जा रहा है। पर जनता निरंतर दुखी होती चली जा रही है। रेलमंत्री कहते हैं कि लोग बेहतर और आधुनिक सुविधाओं के लिए ज्यादा पैसे देने के लिए तैयार हैं। इस तर्क पर कई प्रतिप्रश्न किए जा सकते हैं? रेलवे को आधुनिक बनाने के लिए और भी कई तरीके हैं। इन्हें अपना कर सरकार इस बजट सत्र को तो पूरा कर सकती थी। अगर हाल ही की कीमतों की बढोतरी में सिर्फ किराया ही होता तो जनता में इतनाआक्रोश नहीं फैलता। इससे पहले गैस की कीमतों ने पूरी तरह से उलझा दिया। लोग इसके लिए आज भी परेशान हो रहे हैं। हालांकि रेलवे के पक्ष से भी चीजों को देखना जरूरी है। किराया वृद्धि के इस तर्क से असहमत नहीं हुआ जा सकता कि रेलवे का किराया पिछले आठ सालों में नहीं बढ़ा। देखा जाए तो रेलवे का यात्री किराया खर्च बढ़ने के अनुपात में कम ही बढ़ा है। राजनीतिक कारणों से रेलवे पर जनता को कई तरह की छूट देने का दबाव होता है। कम भाड़ा और सीमित सरकारी मदद के बाद रेलवे से पर्याप्त सुरक्षा और सुविधा देने की अपेक्षा रखी जाती है। सुरक्षा की बात करें तो रेलवे के आधुनिकरण के लिए बड़ी पूंजी चाहिए और जब तक कोई सुरक्षा प्रणाली का प्रयोग होना शुरू होता है तब तक वो तकनीक पुरानी हो जाती है, इसलिए सुरक्षा में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हो पाता है। सच तो ये है कि हमारी सरकार से लेकर जनता तक काम-काज का तरीका व्यावसायिक नहीं है। रेलवे को भी इस पर विचार करना चाहिए।
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