दि ल्ली गैंगरेप मामले में छठे आरोपी के नाबालिग साबित होने के बाद अब बहस छिड़ गई है कि मौजूदा कानून के मुताबिक वह कुछ ही महीनों में छूट जाएगा। एक रिपोर्ट ये भी है कि अगले पांच महीनों में बालिग हो जाएगा, लेकिन मौजूदा बाल सुधार कानून में किसी भी नाबालिग को उसके अपराध के लिए अधिकतम 3 साल की सजा हो सकती है। इस बहस के दौरान लोग क्रिमिनल जस्टिस लॉ 2012 की ओर देख रहे हैं जोकि संसद में पास होने के लिए लंबित है। लोगों की मांग है कि इसी संशोधन विधेयक में जुवेनाइल की उम्र 18 से घटाकर 16 कर दी जाए। जुवेनाइल एक्ट में बालिग उम्र की परिभाषा भी बदली जाएगी। इस संदर्भ में कई विशेषज्ञों का मानना है कि 100 साल में बहुत कुछ बदल गया है। आनुवांशिक परिवर्तन, भौगोलिक परिस्थितियां और जीवन स्तर। ऐसे में नाबालिग की उम्र कम करने में किसी तरह की संवैधानिक अड़चन नहीं है। इसके साथ ही एजूकेशन सिस्टम, इंटरनेट और अन्य सूचना माध्यमों के जरिये बच्चों को बहुत सी जानकारियां प्राप्त हो रही हैं। जो उनकी परिपक्वता को बढ़ाती हैं, इसलिए नाबालिग की उम्र कम होनी चाहिए। कुछ वर्षों से बच्चों में हारमोनल चेंज भी तेजी से होने लगे हैं। उनकी सोचने और समझने की शक्ति बढ़ी है। 16 वर्ष के बच्चे में इस तरह के मनोवैज्ञानिक परिवर्तन साफ देखे जा सकते हैं। ये चीजें नाबालिग की उम्र को लेकर नए सिरे से विचार के लिए प्रेरित करती हैं।
नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2011 में हत्या व दुष्कर्म के अतिरिक्त दिल्ली जैसी जगह में लूटपाट में 64 तथा सेंधमारी-वाहन चोरी में 290 नाबालिग अपराधी पकड़े गए। आने वाले समय में यह समस्या और भी गंभीर हो जाएगी। अपराध की तरफ उनका झुकाव अभिभावकों और समाज दोनों के लिए खतरनाक संकेत है। यही कारण है कि अब बालिग होने की उम्र कम करने को लेकर बहस तेज हो गई है। चिकित्सा विशेषज्ञ, मनोवैज्ञानिक, समाजशास्त्री सभी एक जैसा सोचने लगे हैं। न्यायविदों की राय भी है कि बालिग उम्र घटकर 16 वर्ष होना चाहिए। करीब 138 साल पहले इंडियन मेजॉरिटी एक्ट मार्च 1875 में बनाया गया था। जिसके तहत बालिग होने की उम्र 18 साल निर्धारित की गई थी। लेकिन इतने सालों बाद इंडियन मेजॉरिटी एक्ट में बदलाव न होना लोगों को अखरने लगा है। यहां यह देखना जरूरी है और जैसी कि बाल संरक्षण आयोग ने चिंता जाहिर की है कि इससे बालश्रम को समाप्त करने के प्रयासों को आघात पहुंचेगा क्योंकि देश में18 साल तक के बच्चों की संख्या 44 करोड़ है। उम्र कम होने से कई दूसरी सामाजिक समस्याएं जन्म ले सकती हैं। इस मामले में गहन विचार की जरूरत है। यहां यह विकल्प भी मौजूद है कि 16 वर्ष की उम्र का बदलाव भारतीय दंड संहिता के तहत हो। इसे विवाह, रोजगार, फैक्ट्री एक्ट, बालश्रम और अन्य सामाजिक-राजनीतिक निकायों में लागू नहीं किया जा सकता। अत: इस विषय में और विचार करते हुए विवेकपूर्ण रास्ता निकालना होगा। इसके लिए देश के विशेषज्ञों की टीम को भी अधिकृत किया जा सकता है।
ravindra swapnil prajapati
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