बुधवार, जनवरी 09, 2013

आईआईटी की सालाना फीस में 80 फीसदी तक की वृद्धि

   
 आईआईटी इंजीनियरिंग कालेजों की फीस में सालाना चौगुना से भी अधिक फीस बढ़ाने का प्रस्ताव दिया है। क्यों? इसके पीछे विदेशी विश्वविद्यालयों को घुमाफिरा कर मदद पहुंचाने की एक बड़ी साजिश देखी जा रही है।



आईआईटी जैसे संस्थान में पढ़ने की इच्छा रखने वाले छात्रों के लिए यह एक चौकाने वाली खबर है। सरकार ने आईआईटी की सालाना फीस में 80 फीसदी तक की वृद्धि की है। मानव संसाधन विकास मंत्री एम एम पल्लमराजू की अध्यक्षता में आयोजित आईआईटी काउंसिल की बैठक में बी.टेक कोर्स की फीस बढ़ाने के फैसले को हरी झंडी दे दी गई। हालांकि फीस की बढ़ोत्तरी केवल सामान्य वर्ग के छात्रों के लिए की गई है। लेकिन इससे शिक्षा जगत में कुछ नए सवाल भी उठ रहे हैं। सरकार ने कुछ हफ्तों पहले ही केंद्रीय विद्यालय की फीस बढ़ाई गई है। इससे लग रहा है कि महंगी शिक्षा अब अनिवार्यता हो रही है। सरकार शुल्क पर अपना नियंत्रण क्यों खोती जा रही है। यह समझ से परे है? शिक्षा के प्रमुख स्रोत बनते जा रहे निजी विद्यालयों की बात ही निराली है। उनको अब सरकार नियंत्रित नहीं कर पा रही है। हर साल फीस, स्टेशनरी, यूनिफार्म के नाम पर 20 से 25 फीसदी अघोषित वृद्धि होती है। जिन स्कूलों में जहां प्रवेश शुल्क बीते साल 22 से 25 हजार थी वहीं इस साल 30 हजार रुपए तक सिर्फ प्रवेश का लिया गया। शिक्षा की यह महंगाई बच्चों को दो हिस्सों में बांट रही है। महंगी शिक्षा के कारण औसत आमदनी वाले परिवारों पर अतिरिक्त बोझ आएगा।  हर साल भारत के 15 आईआईटी में 3.5 लाख छात्र इनकी प्रवेश परीक्षा में बैठते है। जिसमें से लगभग 8 हजार छात्र चुने जाते हैं। इस कठिन परीक्षा के लिए देशभर में छात्र वर्षों कड़ी मेहनत करते हैं। महंगे कोचिंग संस्थानों में पढ़ाई करते हैं। खुद सरकार भी देश की परेशान हाल जनता को तरह-तरह से महंगाई के नागफाश में जकड़ रही है। रही-सही कसर पूरी करने का जिम्मा कपिल सिब्बल ने ले लिया है। उन्होंने आईआईटी इंजीनियरिंग कालेजों की फीस में सालाना चौगुना से भी अधिक फीस बढ़ाने का प्रस्ताव दिया है। क्यों? इसके पीछे विदेशी विश्वविद्यालयों को घुमाफिरा कर मदद पहुंचाने की एक बड़ी साजिश देखी जा रही है। इसे बढ़ोतरी में यह भी देखा जाना चाहिए कि दो साल पहले कपिल सिब्बल अमेरिका घूमकर लौटे तो दावा किया कि अनगिनत विदेशी विश्वविद्यालयों ने भारत में अपनी शाखाएं खोलने का इरादा जताया है। लेकिन जल्द ही पता चला कि अधिकांश विश्वविद्यालयों ने शाखा खोलने से इनकार कर दिया है। इसका एक बड़ा कारण प्रमुख सरकारी शैक्षणिक संस्थाओं की फीस कम होना। जैसे आईआईटी जैसी इंजीनियरिंग की विश्वस्तरीय संस्था में इंजीनियरिंग के छात्र-छात्राओं से लगभग पचास हजार रुपए फीस ली जाती है। मध्यवर्गीय लोगों को यह रकम काफी भारी पड़ती है। लेकिन शिक्षा के नाम पर लूट की मानसिकता रखने वाले राजनेताओं-अधिकारियों और शिक्षा माफिया की नजर में यह फीस मामूली है। विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए तो और भी ज्यादा जरूरी है कि फीस की रकम में भारी बढ़ोत्तरी हो ताकि दोनों में बहुत अंतर न रहे। यही कारण है कि सरकार बैंक ऋण का दुष्चक्र भी चाहती है। दुनिया में कितना भी व्यवसाय हो लेकिन वह मानवीयता से जुड़े होने पर ही शिक्षा अपनी उत्कृष्टता साबित करेगी।

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