डीजल की कीमतों के बाद जब रोज की चीजें महंगी होने लगीं तो ग्राहक ने पूछा दाम क्यों बढ़े? दुकानदार ने कहा- डीजल बढ़ गया है। ग्राहक ने पूछा- डीजल किसने बढ़ाया तो उत्तर ‘कांग्रेस’ था।
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केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक सुधारों के नाम पर सृजित महंगाई को चुनाव में महंगाई और भ्रष्टाचार प्रमुख मुद्दे थे। एक प्रमुख नारा था-पेट्रोल महंगा, डीजल महंगा लेकिन भ्रष्टाचार सस्ता। कांग्रेसी नेताओं के पास इस चुनाव के दौरान भ्रष्टाचार दलील नहीं थी। कांग्रेस के पास राहुल गांधी के रूप में एक केंद्रीय शक्ति को सृजित करने वाला चेहरा था लेकिन वे जनता को एक सख्त और ताकतवर शासक की तरह आकर्षित नहीं कर सके। लोग कहने लगे कि राहुल अपनी पार्टी के बड़े नेताओं के पढ़ाने पर वही बोलते हैं जो उन्हें कहा जाता है। अन्ना के उस विशाल जन समर्थन को राहुल और उनकी पार्टी समझ ही नहीं सकी। इसके अलावा कांग्रेस पार्टी अपने पुराने वैचारिक नारों का ही इस्तेमाल करती रही जैसे कि भाजपा सांप्रदायिक है, जबकि भाजपा ने अपने आपको बदला है। मध्यप्रदेश इसका उदाहरण है। कांग्रेस की हार का एक कारण यह भी है कि उसके पास एकसूत्रता की कमी थी। नेतृत्व में एक स्पार्क होना चाहिए वह कहीं दिखाई नहीं दिया। युवा नेतृत्व युवा और पहली बार मतदान कर रहे लोगों को आकर्षित नहीं कर सके। कांग्रेस के पास ऊर्जा नहीं थी। सरकार व संगठन दोनों जीत के मुगालते में रहे। कांग्रेस नेता समझ ही नहीं पाए कि महंगाई व भ्रष्टाचार के अभियान में दम है। महंगाई से तो जनता जूझ ही रही है, उस पर से भ्रष्टाचार ने खाज का काम किया। चुनाव से पहले पेट्रोल व डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी की बातें होती रहीं। मजदूर किसान एवं नौजवान सभी परेशान रहे। प्रधानमंत्री पद पर हैं लेकिन सत्ता में नहीं हैं। इसी राजनीतिक सच्चाई के कारण पार्टी दिशाहीन होती चली गई और एक हारी हुई पार्टी बन गई।
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