आलेख
कागज और पर्यावरण
रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति
टॉप -12, हाई लाइफ कॉम्पलेक्स चर्च रोड, जहांगीराबाद, भोपाल
संपक्र 0755 4057852
982682660
कागज हमारे चारों तरफ है और हर रोज इस्तेमाल में भी आता है। हम शायद ही कभी यह एहसास करते हैं कि हम जिस कागज पर लिख रहे हैं वह हजारों एकड़ जंगल की लड़की को काट कर बनाया गया है। कागज हमारे जंगलों को कितना नष्ट कर रहा है, इसके तथ्यों की जानकारी हमें पर्यावरण को हो रहे नुकसान को बता सकती है। दस जुलाई कागज विहीन दिवस है। इस दिन स्कूली बच्चों और कार्यालयों में कागज का इस्तेमाल नहीं करने की परंपरा है।
इस परंपरा को तोड़ने के लिए देश में कई संस्थाएं, आयोग और कंपनियां अपने स्तर पर काम कर रहे हैं। यहां कुछ उदाहरण दिए जा रहे हैं जो कागज को बचाने के माध्यम से जंगल बचाने की मुहीम तक जाते हैं। बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (आईआरडीए) बीमा पॉलिसियों को कागज विहीन करने व इसके लिए एक कोष की स्थापना पर विचार कर रहा है। यह व्यवस्था शेयर बाजार के डीमैट खातों की तर्ज पर की जाएगी। आईआरडीए के सदस्य सुधीन रॉय चौधरी ने इस बारे में जानकारी देते हुए कहा कि हालांकि यह प्रस्ताव प्रारंभिक स्तर पर है। लेकिन आने वाले समय में निगम के ग्राहक बीमा पॉलिसियों को कागजी स्वरूप में रखने की बजाय डीमैट व कागज विहीन स्वरूप में रख सकेंगे। हालांकि शेयर बाजार की तरह कागज विहीन पॉलिसी अनिवार्य नहीं, बल्कि ऐच्छिक होगी व ग्राहक के पास इसे लेने या न लेने का विकल्प होगा। इसके लिए एक पृथक व स्वायत्त संस्था का गठन किया जाएगा। इस संस्था का नियमन भी आईआरडीए ही करेगा। यह एक समाचार है जो हमें बताता है कि पेपर लेस होने की दिशा में हम किस तरह कदम बढ़ा रहे हैं।
कागज को खर्च करने में कई उद्योग और संस्थाएं हैं जहां कागज एक बार इस्तेमाल होने के बाद बेकार हो जाता है। यह मात्रा बेहद अधिक होती है। हमारी संसद में जब कुछ लाइनों का एक प्रश्न पूजा जाता है तो उसमें खर्च होने वाले कागज का अनुमान लगाया जा सकता है। इस संबंध में जो जानकारी है उससे अनुमान लगाया जा सकता है कि हम कितना कागज खत्म करते हैं। संसद के किसीसत्र में प्रश्नकाल के दौरान पूछे गए हरेक सवाल पर गृह मंत्रालय का जवाब करीब 113 पृष्ठों में होता है। मीडिया में बांटने के लिए इसकी औसतन 500 प्रतियां तैयार की जाती हैं। इस प्रकार महज एक प्रश्न पर कुल मिलाकर करीब 56,500 पृष्ठों की खपत होती है। रिकॉर्ड के अनुसार, गृह मंत्रालय को नियमित तौर पर भेजे गए प्रश्नों की संख्या (821) सबसे अधिक है, जिसके बाद 665 प्रश्नों के साथ वित्त मंत्रालय का स्थान है। इस कवायद की न केवल वित्तीय लागत बल्कि इस पर खर्च होने वाले कागज की मात्रा पर गौर करने से ही दिमाग चकरा जाता है। इसलिए कागज बचाओ अभियान के तहत संसद अब प्रश्नकाल की प्रक्रिया को कागज रहित बनाने की तैयारी करती रही है लेकिन अभी उस पर अमल करने जैसा कुछ सामने नहीं आया है। इसके तहत सरकार अब प्रश्नकाल के दौरान सवाल-जवाब की मुद्रित प्रति बांटने के बजाय कागज बचाने की हर संभव उपाय करने की कोशिश कर रही है। वास्तव में पर्यावरण के अनुकूल यह पहल पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) के दिमाग की उपज है।
पीआईबी के अधिकारियों ने बताया कि शुरू में एक संसदीय समिति विभिन्न कार्यालयों में कागज का उपयोग कम करने के उपायों पर विचार कर रही थी। समिति ने कागज के उपयोग में कटौती करने का सुझाव दिया और कई सांसदों और नौकरशाहों ने इस पहल का स्वागत किया। उधर, पीआईबी ने प्रश्नकाल के दौरान मीडिया को सवाल-जवाबों की मुद्रित के बजाय इलेक्ट्रॉनिक प्रारूप में देने का सुझाव दिया। पीआईबी के एक अधिकारी ने कहा, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक दोनों मीडिया समाचार एकत्रित करने के लिए नियमित तौर पर आॅनलाइन प्लेटफॉर्म एक्सेस करता है। ऐसे में संसद में पूछे गए सवालों को आॅनलाइन एक्सेस करने में उसे कोई कठिनाई नहीं होगी। उन्होंने कहा कि यह हमारी ई-गवर्नेंस और कागज विहीन कार्यालय पहल का हिस्सा है। फिलहाल लोकसभा में 545 सदस्य और राज्यसभा में 250 सदस्य हैं जिन्हें नियमित तौर पर प्रश्नकाल के दौरान पूछे गए सवाल-जवाबों की मुद्रित प्रतियां दी जाती हैं। हालांकि राज्यसभा ने 1 मार्च, 2013 से सवालों की मुद्रित प्रतियां बांटना बंद कर दिया है, लेकिन लोकसभा में संसद के अगले सत्र से ही इस पर रोक लगाई जा सकती है। बहरहाल, पीआईबी के प्रयास से संसद में कागज के उपयोग पर लगाम लगेगी। पहले मीडिया में बांटने के लिए प्रश्नकाल के सवाल-जवाबों की 500 प्रति मुद्रित की जाती थीं, लेकिन इस बजट सत्र से संसद में बांटने के लिए केवल 200 प्रतियां ही मुद्रित की जाएंगी। पीआईबी की प्रधान महानिदेशक नीलम कपूर ने कहा, हम कुछ समय से ऐसा करने पर विचार कर रहे थे। हमने सीडी इत्यादि में सवाल-जवाब भेजने के लिए सभी मंत्रालयों के सचिवों को पत्र लिखा। ऐसा संभव होने पर हमने प्रश्न पत्रों को मुद्रित प्रारूप में वितरण पर रोक लगाने का निर्णय लिया।
इस दिशा में इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद भी बहुत सहायता कर रहे हैं। करेंसी और अन्य प्रकार से कागज के उपयोग पर अंकुश लगेगा। भारत में 10 वर्षों के भीतर एक अरब लोग मोबाइल फोन के संपर्क माध्यम से जुÞड जाएंगे और स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाज सेवा सहित सब कुछ मोबाइल फोन सेवा के जरिए संपन्न होगा। इस तरह तीन दशक के भीतर सभी तरह का लेने-देन डिजिटल हो जाएगा, लिहाजा कागज के नोट लुप्त हो जाएंगे। यह अनुमान व्यक्त किया है सार्वजनिक सूचना, अधोसंरचना और उन्नयन पर प्रधानमंत्री के सलाहकार तथा राष्ट्रीय नवप्रवर्तन परिषद के अध्यक्ष सैम पित्रोदा ने। पित्रोदा का मानना है कि वर्तमान में वैश्विक स्तर पर लगभग पांच अरब मोबाइल फोन के उपयोग और प्रति वर्ष जारी होने वाले 10 अरब से अधिक के्रडिट कार्ड एवं डेबिट कार्ड के कारण 30 वर्षो के भीतर कागज के नोटों की अहमियत लगभग समाप्त हो जाएगी। कैसियो डिजिटल डायरी के अनुसंधानकर्ता पित्रोदा ने अपने ताजा नवप्रवर्तन डिजिटल वैलेट के बारे में बातचीत के दौरान कहा, तीन दशक के भीतर लेने-देन डिजिटल हो जाएगा, लिहाजा कागज के नोट लुप्त हो जाएंगे। पित्रोदा ने आईएएएनएस के साथ एक साक्षात्कार में कहा, यदि आप अपने घर और कार्यालय को कागज विहीन बना सकते हैं, तो बैंक, व्यापार और अपने बटुए को क्यों नहीं? पित्रोदा ने अपने इस विचार को अपनी हालिया प्रकाशित पुस्तक द मार्च आॅफ मोबाइल मनी: द फ्यूचर आॅफ लाइफस्टाइल मैनेजमेंट व्यक्त किया है। पित्रोदा ने कहा, मोबाइल टेलीफोन सेवा उपलब्ध कराने वाली हर कंपनी इसे अपनाएगी। प्रति उपभोक्ता औसत राजस्व में कमी के कारण डिजिटल बटुआ अधिक उपभोक्ताओं को आकर्षित कर सकता है। यह पूरी तरह सुरक्षित है। पित्रोदा की पुस्तक भारत में मोबाइल फोन के विकास पर केंद्रित है, जो कि देश में तेजी के साथ जीवन शैली में शुमार होता जा रहा है। पित्रोदा ने कहा, मोबाइल क्रांति किसी बÞडी रेलगÞाडी के आने जैसा है।
इस समय देश में 65 करोÞड से अधिक लोग मोबाइल फोन संपर्क से जुÞडे हुए हैं, जबकि चीन में 79.50 करोÞड लोग मोबाइल फोन से जुÞडे हुए हैं। मोबाइल प्रतिदिन माह कई हजार टन बचाने का लोकप्रिय माध्यम बनने जा रहा है। क्योंकि डिजिटल रूप में रसीदों के आने से यह बचत होगी। कागज वनों की खपत का सबसे बड़ा उपभोग्ता है। जंगल बचाने के लिए हम बडेÞ स्तर पर कागज के उपयोग से दूर होना ही होगा। रिसाइकिल के लिए नवीनतम तकनीकों के प्रति उत्सुक होना होगा। कागजविहीन दिवस का अर्थ यही है कि हम कागज के उपयोग से होने वाले पर्यावरणीय नुकसानों को समझ सकें।
रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति, ग्रीनअर्थ वि वे सोसयटी, मप्र के निदेशक
ग्रीनअर्थ जैविक खेती और पर्यावरण के लिए काम करने वाल संस्थान है
कागज और पर्यावरण
रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति
टॉप -12, हाई लाइफ कॉम्पलेक्स चर्च रोड, जहांगीराबाद, भोपाल
संपक्र 0755 4057852
982682660
कागज हमारे चारों तरफ है और हर रोज इस्तेमाल में भी आता है। हम शायद ही कभी यह एहसास करते हैं कि हम जिस कागज पर लिख रहे हैं वह हजारों एकड़ जंगल की लड़की को काट कर बनाया गया है। कागज हमारे जंगलों को कितना नष्ट कर रहा है, इसके तथ्यों की जानकारी हमें पर्यावरण को हो रहे नुकसान को बता सकती है। दस जुलाई कागज विहीन दिवस है। इस दिन स्कूली बच्चों और कार्यालयों में कागज का इस्तेमाल नहीं करने की परंपरा है।
इस परंपरा को तोड़ने के लिए देश में कई संस्थाएं, आयोग और कंपनियां अपने स्तर पर काम कर रहे हैं। यहां कुछ उदाहरण दिए जा रहे हैं जो कागज को बचाने के माध्यम से जंगल बचाने की मुहीम तक जाते हैं। बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (आईआरडीए) बीमा पॉलिसियों को कागज विहीन करने व इसके लिए एक कोष की स्थापना पर विचार कर रहा है। यह व्यवस्था शेयर बाजार के डीमैट खातों की तर्ज पर की जाएगी। आईआरडीए के सदस्य सुधीन रॉय चौधरी ने इस बारे में जानकारी देते हुए कहा कि हालांकि यह प्रस्ताव प्रारंभिक स्तर पर है। लेकिन आने वाले समय में निगम के ग्राहक बीमा पॉलिसियों को कागजी स्वरूप में रखने की बजाय डीमैट व कागज विहीन स्वरूप में रख सकेंगे। हालांकि शेयर बाजार की तरह कागज विहीन पॉलिसी अनिवार्य नहीं, बल्कि ऐच्छिक होगी व ग्राहक के पास इसे लेने या न लेने का विकल्प होगा। इसके लिए एक पृथक व स्वायत्त संस्था का गठन किया जाएगा। इस संस्था का नियमन भी आईआरडीए ही करेगा। यह एक समाचार है जो हमें बताता है कि पेपर लेस होने की दिशा में हम किस तरह कदम बढ़ा रहे हैं।
कागज को खर्च करने में कई उद्योग और संस्थाएं हैं जहां कागज एक बार इस्तेमाल होने के बाद बेकार हो जाता है। यह मात्रा बेहद अधिक होती है। हमारी संसद में जब कुछ लाइनों का एक प्रश्न पूजा जाता है तो उसमें खर्च होने वाले कागज का अनुमान लगाया जा सकता है। इस संबंध में जो जानकारी है उससे अनुमान लगाया जा सकता है कि हम कितना कागज खत्म करते हैं। संसद के किसीसत्र में प्रश्नकाल के दौरान पूछे गए हरेक सवाल पर गृह मंत्रालय का जवाब करीब 113 पृष्ठों में होता है। मीडिया में बांटने के लिए इसकी औसतन 500 प्रतियां तैयार की जाती हैं। इस प्रकार महज एक प्रश्न पर कुल मिलाकर करीब 56,500 पृष्ठों की खपत होती है। रिकॉर्ड के अनुसार, गृह मंत्रालय को नियमित तौर पर भेजे गए प्रश्नों की संख्या (821) सबसे अधिक है, जिसके बाद 665 प्रश्नों के साथ वित्त मंत्रालय का स्थान है। इस कवायद की न केवल वित्तीय लागत बल्कि इस पर खर्च होने वाले कागज की मात्रा पर गौर करने से ही दिमाग चकरा जाता है। इसलिए कागज बचाओ अभियान के तहत संसद अब प्रश्नकाल की प्रक्रिया को कागज रहित बनाने की तैयारी करती रही है लेकिन अभी उस पर अमल करने जैसा कुछ सामने नहीं आया है। इसके तहत सरकार अब प्रश्नकाल के दौरान सवाल-जवाब की मुद्रित प्रति बांटने के बजाय कागज बचाने की हर संभव उपाय करने की कोशिश कर रही है। वास्तव में पर्यावरण के अनुकूल यह पहल पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) के दिमाग की उपज है।
पीआईबी के अधिकारियों ने बताया कि शुरू में एक संसदीय समिति विभिन्न कार्यालयों में कागज का उपयोग कम करने के उपायों पर विचार कर रही थी। समिति ने कागज के उपयोग में कटौती करने का सुझाव दिया और कई सांसदों और नौकरशाहों ने इस पहल का स्वागत किया। उधर, पीआईबी ने प्रश्नकाल के दौरान मीडिया को सवाल-जवाबों की मुद्रित के बजाय इलेक्ट्रॉनिक प्रारूप में देने का सुझाव दिया। पीआईबी के एक अधिकारी ने कहा, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक दोनों मीडिया समाचार एकत्रित करने के लिए नियमित तौर पर आॅनलाइन प्लेटफॉर्म एक्सेस करता है। ऐसे में संसद में पूछे गए सवालों को आॅनलाइन एक्सेस करने में उसे कोई कठिनाई नहीं होगी। उन्होंने कहा कि यह हमारी ई-गवर्नेंस और कागज विहीन कार्यालय पहल का हिस्सा है। फिलहाल लोकसभा में 545 सदस्य और राज्यसभा में 250 सदस्य हैं जिन्हें नियमित तौर पर प्रश्नकाल के दौरान पूछे गए सवाल-जवाबों की मुद्रित प्रतियां दी जाती हैं। हालांकि राज्यसभा ने 1 मार्च, 2013 से सवालों की मुद्रित प्रतियां बांटना बंद कर दिया है, लेकिन लोकसभा में संसद के अगले सत्र से ही इस पर रोक लगाई जा सकती है। बहरहाल, पीआईबी के प्रयास से संसद में कागज के उपयोग पर लगाम लगेगी। पहले मीडिया में बांटने के लिए प्रश्नकाल के सवाल-जवाबों की 500 प्रति मुद्रित की जाती थीं, लेकिन इस बजट सत्र से संसद में बांटने के लिए केवल 200 प्रतियां ही मुद्रित की जाएंगी। पीआईबी की प्रधान महानिदेशक नीलम कपूर ने कहा, हम कुछ समय से ऐसा करने पर विचार कर रहे थे। हमने सीडी इत्यादि में सवाल-जवाब भेजने के लिए सभी मंत्रालयों के सचिवों को पत्र लिखा। ऐसा संभव होने पर हमने प्रश्न पत्रों को मुद्रित प्रारूप में वितरण पर रोक लगाने का निर्णय लिया।
इस दिशा में इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद भी बहुत सहायता कर रहे हैं। करेंसी और अन्य प्रकार से कागज के उपयोग पर अंकुश लगेगा। भारत में 10 वर्षों के भीतर एक अरब लोग मोबाइल फोन के संपर्क माध्यम से जुÞड जाएंगे और स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाज सेवा सहित सब कुछ मोबाइल फोन सेवा के जरिए संपन्न होगा। इस तरह तीन दशक के भीतर सभी तरह का लेने-देन डिजिटल हो जाएगा, लिहाजा कागज के नोट लुप्त हो जाएंगे। यह अनुमान व्यक्त किया है सार्वजनिक सूचना, अधोसंरचना और उन्नयन पर प्रधानमंत्री के सलाहकार तथा राष्ट्रीय नवप्रवर्तन परिषद के अध्यक्ष सैम पित्रोदा ने। पित्रोदा का मानना है कि वर्तमान में वैश्विक स्तर पर लगभग पांच अरब मोबाइल फोन के उपयोग और प्रति वर्ष जारी होने वाले 10 अरब से अधिक के्रडिट कार्ड एवं डेबिट कार्ड के कारण 30 वर्षो के भीतर कागज के नोटों की अहमियत लगभग समाप्त हो जाएगी। कैसियो डिजिटल डायरी के अनुसंधानकर्ता पित्रोदा ने अपने ताजा नवप्रवर्तन डिजिटल वैलेट के बारे में बातचीत के दौरान कहा, तीन दशक के भीतर लेने-देन डिजिटल हो जाएगा, लिहाजा कागज के नोट लुप्त हो जाएंगे। पित्रोदा ने आईएएएनएस के साथ एक साक्षात्कार में कहा, यदि आप अपने घर और कार्यालय को कागज विहीन बना सकते हैं, तो बैंक, व्यापार और अपने बटुए को क्यों नहीं? पित्रोदा ने अपने इस विचार को अपनी हालिया प्रकाशित पुस्तक द मार्च आॅफ मोबाइल मनी: द फ्यूचर आॅफ लाइफस्टाइल मैनेजमेंट व्यक्त किया है। पित्रोदा ने कहा, मोबाइल टेलीफोन सेवा उपलब्ध कराने वाली हर कंपनी इसे अपनाएगी। प्रति उपभोक्ता औसत राजस्व में कमी के कारण डिजिटल बटुआ अधिक उपभोक्ताओं को आकर्षित कर सकता है। यह पूरी तरह सुरक्षित है। पित्रोदा की पुस्तक भारत में मोबाइल फोन के विकास पर केंद्रित है, जो कि देश में तेजी के साथ जीवन शैली में शुमार होता जा रहा है। पित्रोदा ने कहा, मोबाइल क्रांति किसी बÞडी रेलगÞाडी के आने जैसा है।
इस समय देश में 65 करोÞड से अधिक लोग मोबाइल फोन संपर्क से जुÞडे हुए हैं, जबकि चीन में 79.50 करोÞड लोग मोबाइल फोन से जुÞडे हुए हैं। मोबाइल प्रतिदिन माह कई हजार टन बचाने का लोकप्रिय माध्यम बनने जा रहा है। क्योंकि डिजिटल रूप में रसीदों के आने से यह बचत होगी। कागज वनों की खपत का सबसे बड़ा उपभोग्ता है। जंगल बचाने के लिए हम बडेÞ स्तर पर कागज के उपयोग से दूर होना ही होगा। रिसाइकिल के लिए नवीनतम तकनीकों के प्रति उत्सुक होना होगा। कागजविहीन दिवस का अर्थ यही है कि हम कागज के उपयोग से होने वाले पर्यावरणीय नुकसानों को समझ सकें।
रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति, ग्रीनअर्थ वि वे सोसयटी, मप्र के निदेशक
ग्रीनअर्थ जैविक खेती और पर्यावरण के लिए काम करने वाल संस्थान है
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