रिचर्ड मेरीमैन : यह साक्षात्कार पूरी तरह से आपके कार्य
और आपकी
कला पर आधारित है, इसके
अतिरिक्त और कुछ नहीं। मैं आपके कार्य के बारे में एक झलक पाठकों को देना चाहता हूं।
चार्ली चैप्लिन : अपने कार्य के प्रति पूरी ईमानदारी ही मेरा मूल चरित्र है। अपने किए गए प्रत्येक कार्य के लिए मैं बहुत संजीदा रहता हूं। यदि मैं कोई अन्य कार्य इससे बेहतर तरीके से कर पाता, तो वही करता, लेकिन मैं अपने कार्य के अतिरिक्त और कुछ नहीं जानता।
मेरीमैन : आपने
ट्रैम्प की रूपरेखा कब निर्मित
की थी ?
चैप्लिन : वह एक आपात स्थिति की पैदाइश था। एक कैमरामैन ने मुझसे कहा कि कुछ मजाकिया किस्म का मेकअप करो, और मुझे बिल्कुल भी आइडिया नहीं था कि मैं क्या करता। मैं ड्रेस डिपार्टमेंट में गया और रास्ते में सोचता रहा कि मुझे कुछ विरोधाभासी दिखाना होगा - बैगी पतलून, टाइट कोट, बड़ा सिर और छोटी टोपी - बेतरतीब लेकिन जेंटलमैननुमा।
मुझे अंदाजा नहीं था कि चेहरे-मोहरे पर क्या होगा, लेकिन वह एक उदास और संजीदा चेहरा होना चाहिए। मैं उसका मजाकियापन छुपाना चाहता था, इसलिए छोटी मूंछें इस्तेमाल की थीं। मूंछें हालांकि उस चरित्र का अंश नहीं थीं - बल्कि कहें कि बचकाना थीं। वह कोई मनोभाव छुपा भी नहीं पाती थीं।
मेरीमैन : जब आपने अपनी
तरह देखा
तो आपकी
पहली प्रतिक्रिया क्या थी ?
चैप्लिन : यही कि यह चलेगा। इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं। जब तक कि मुझे इसे पहनकर कैमरे के आगे हरकतें न करनी पड़ें तब तक तो कुछ भी नहीं।एंट्रेंस
लेने पर अहसास हुआ कि कपड़ों से लदा हूं और हाव-भाव भी खास हैं। मुझे अच्छा महसूस हुआ और चरित्र स्पष्ट होने लगा था। एक दृश्य (मेबल्स प्रिडिकामेंट का) होटल की लाॅबी मे था जहां ट्रैम्प एक बिन-बुलाया मेहमान है और एक आरामदेह कुर्सी पर बैठकर कुछ देर आराम करने का नाटक करता है। बाकी सब उसकी तरफ शंका भरी नजरों से देख रहे हैं, और मैं वह सब काम करता हूं जो अन्य मेहमान करते हैं, जैसे होटल के रजिस्टर को देखना, सिगरेट निकालकर जलाना, चल रही पैरेड को देखना आदि। और फिर मैं एक दोमुंहे दरवाजे के पास जा गिरता हूं। यह पहला करतब था जो मैंने फिल्मों में किया था। इसके साथ ही उस चरित्र का आगमन हुआ था। मुझे अहसास हुआ कि यह बहुत मजेदार चरित्र है। लेकिन उसके बाद जितने भी किरदार मैंने किए उनमें एक ही फाॅर्मेट इस्तेमाल नहीं हुआ था।
लेकिन एक चीज थी जो समान रही - वह ट्रैम्प की पोशाक नहीं, बल्कि उसका चोट खाया पैर था। वह जितना भी उत्साही दिखता हो, लेकिन उसके पैर थकान भरे दिखते थे। मैंने वार्डरोब वालों से कहा कि मुझे दो बड़े और पुराने जूतों के जोड़े चाहिए थे, क्योंकि मेरे पैर असाधारण रूप से छोटे थे, और मुझे अहसास था कि वह जूते मजाकिया तत्व में वृद्धि कर सकते थे। मैं आमतौर पर शांतिप्रिय हूं, लेकिन बड़े पैरों के साथ ऐसा दिखना बहुत हास्य पैदा करता।
मेरीमैन : आपकी
राय में क्या ट्रैम्प आधुनिक
समय में सफल रहेगा ?
चैप्लिन : मुझे नहीं लगता कि आज ऐसे किसी व्यक्ति के लिए कोई स्थान है। आज दुनिया कुछ ज्यादा ही व्यवस्थित है। और मुझे नहीं लगता कि आज की दुनिया किसी भी तरह से प्रसन्न है। मुझे तंग कपड़े और लंबे बालों वाले बच्चे दिखते हैं, तो मुझे लगता है कि उनमें से कुछ ट्रैम्प बनना चाहते हैं। लेकिन पहले जैसी आत्मीयता आज नहीं है। उन्हें यह भी नहीं पता कि आत्मीयता क्या होती है, जिससे यह एक दुर्लभ वस्तु बन चुकी है। वह एक अन्य समय में अस्तित्व रखती थी। इसलिए मैं अब पहले जैसा काम नहीं कर सकता। और हां, ध्वनि - यह एक अन्य कारण है। जब सवाक फिल्में आईं तो उस जैसा चरित्र नहीं रहा था। मुझे अंदाजा नहीं था कि उसकी आवाज कैसी होती। इसलिए उसे खत्म होना पड़ा था।
मेरीमैन : आपकी राय में ट्रैम्प की आसाधारण
तत्व क्या
था ?
चैप्लिन : एक आत्मीय और शांत भाव वाली निर्धनता। दरअसल, हर दूसरा कमबख्त चमकदार कपड़े पहनकर नवाब दिखना चाहता है। चरित्र की कमियां ही मुझे प्यारी थीं - बहुत चुनिंदा और हर मायने में बहुत कमजोर। लेकिन ट्रैम्प की अपील के बारे में मैंने कभी नहीं सोचा था। ट्रैम्प मेरे अंदर का अंश था जो मुझे ही संप्रेषित करना था। मुझे आॅडियंस की प्रतिक्रिया से प्रेरणा मिली, लेकिन किसी आॅडियंस से जुड़ा मैंने खुद को नहीं पाया था। दर्शकों की जरूरत उसके फिल्मांकन के बाद शुरू होती थी, उसके बनते हुए नहीं। अपने अंदर मैंने हमेशा एक मजाकिया तत्व को महसूस करता था, जो मुझे कहता था कि मुझे यह संप्रेषित करना ही होगा। यह हास्य से परिपूर्ण था।
मेरीमैन : करतब वाला दृश्य
आपने कैसे
किया ? क्या
यह शून्य
से उपजा
था या उसकी कोई प्रक्रिया
थी ?
चैप्लिन : उसकी कोई प्रक्रिया नहीं थी। श्रेष्ठतम विचार जरूरत के अनुसार जन्म लेते थे। यदि एक अच्छी हास्य परिस्थिति आपके पास होती है तो वह अनेक क्रियाओं के साथ-साथ बनती जाती है। जैसे स्केटिंग रिंक दृश्य - द रिंक में। मैंने स्केट्स पहने और शुरू हो गया था, जबकि दर्शक समझ रहे थे कि मैं गिर पड़ूंगा, वहीं मैं एक पैर पर स्केटिंग करता गया। दर्शकों को ट्रैम्प से इसकी उम्मीद नहीं थी। इसी तरह ‘ईजी स्टीट’ में लैम्पपोस्ट वाले करतब में भी हुआ था। उसमें मैं एक पुलिसवाला बनकर एक बदमाश से निपट रहा था। मैं उसके सिर पर एक डंडे से मारता हूं और मारता चला जाता हूं। यह एक बुरे सपने जैसा था। वह अपनी बाजुएं ऊपर चढ़ाता जाता जैसे कि उस पर मारे जाने का कोई असर न हो रहा हो। फिर वह मुझे उठाकर ऊपर-नीचे करता है। वहां मुझे अहसास हूं, कि इसमें असाधारण शक्ति है, तो वह लैम्पपोस्ट को भी मोड़ सकता है, और ज बवह ऐसा कर रहा होगा, मैं उसकी पीठ पर चढ़ जाउंगा और उसका सिर लाइट-गैस में दे दूंगा। मैंने ऐसी कुछ मजाकिया काम किए जो बिना किसी तैयारी के किए गए थे और उन पर खूब तालियां पिटी थीं।
लेकिन इस सब में बहुत करुणा भी थी। कई बार सारे प्रयास असफल जाते थे। दर्शकों को हंसाने के लिए कुछ नया सोचना जरूरी था। और बिना एक मजाकिया परिस्थिति के आप हंसा नहीं सकते थे। आपको जोकर की तरह कुछ करना होता है, गिरना-पड़ना कुछ भी, लेकिन परिस्थिति मजाकिया होनी चाहिए।
मेरीमैन : क्या आपको ऐसा करते लोग यहां-वहां दिखते थे, या वह सब आपकी कल्पना से ही उपजते थे ?
चैप्लिन : नहीं, हमने अपनी दुनिया खुद बनाई थी। मेरा स्टूडियो कैलिफाॅर्निया
में था। सबसे खुशी के पल वह होते थे जब मैं सेट पर होता था एक आइडिया या किसी कहानी के विचार के साथ, और मुझे अच्छा महसूस होता था, जिसके बाद चीजें खुद रूप लेना शुरू कर देती थीं। कैलीफाॅर्निया और विशेषकर हाॅलीवुड में संध्याकाल अकेलापन लेकर आता है, लेकिन हमारे यहां ऐसा नहीं था, क्योंकि हम हास्य की दुनिया रच रहे थे। वह एक दूसरी दुनिया की तरह का अनुभव था, रोज की भागदौड़ से अलग। वहां बहुत मजा रहता था। वहां बैठकर आधा दिन रिहर्सल करते, फिर शूटिंग करते थे।
मेरीमैन : क्या यथार्थवाद काॅमेडी
का अभिन्न
अंग होता
है ?
चैप्लिन : ओह हां, बिल्कुल। मेरी राय में सिने-निर्माण की दुनिया में एक ऊट-पटांग परिस्थिति को पूर्ण यथार्थ के साथ निभाते हैं। आॅडियंस को यह पता होता है और वह भी उसी मनोभाव में रहती है। यह उनके लिए बेहद यथार्थपूर्ण होता है और साथ ही बेतरतीब भी, और इसी से उन्हें आनंद मिलता है।
मेरीमैन : उसका एक अंश नृशंसता भी होता
है।
चैप्लिन : वह नृशंसता काॅमेडी का बुनियादी तत्व है। शांत और ठहरा हुआ दिखने वाला बेहद अव्यवस्थित होता है, और यदि आप उसमें करुणा भरते हैं तो दर्शक उसे पसंद करते हैं। दर्शक उसमें छिपे जीवन के दंश को पहचानते हैं और उस पर इसलिए हंसते हैं कि वह उस पर रो न पडें़ या उसके दुख से मर ही न जाएं। यदि एक बूढ़ा व्यक्ति एक केले के पत्ते से फिसल कर धीरे से गिरता है, तो हम उस पर नहीं हंसते। परंतु यही व्यक्ति अगर एक चमचमाते कपड़े पहने अकड़ कर चलने वाला जवान हो तो हम हंसते हैं। सभी दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियां मजाकिया होती हैं, यदि उन्हें हास्य के नजरिए से देखा जाए। जोकरों को देखते समय आप प्रत्येक बेतरतीबी के लिए तैयार रहते हैं। परंतु यदि कोई व्यक्ति किसी रेस्तरां में जाता है और सोचता है कि वह स्मार्ट है, लेकिन उसकी पैंट में एक छेद दिखता है - इस स्थिति को यदि हास्य की दृष्टि से देखा जाए तो वह खासी मजाकिया हो जाती है। विशेषकर तब यदि उसे एक विशेष गरिमामय तरीके से किया जाए।
मेरीमैन : आपकी काॅमेडी कुछ मायनों में घटनाप्रधान भी होती
है। यह एक बौद्धिक क्रियाकलाप नहीं होता,
यह एक घटनाक्रम है जो हास्यप्रधान है।
चैप्लिन : मेरा हमेशा से मानना रहा है कि घटनाओं को जोड़कर ही एक कथा निर्मित होती है, जैसे एक बिलियर्ड टेबल पर पूल गेम। वहां प्रत्येक गेंद अपने आप में एक घटना है। एक दूसरी से टकराती है और आपको असर दिखता है। मैं इस सोच को अपने कार्य में बहुत हद तक इस्तेमाल करता हूं।
मेरीमैन : आपके कार्य
में तेज रफ्तार होती है और घटनाएं एक दूसरे को लांघती
दिखती हैं।
क्या इसमें
आपके निजी
लक्षणा की झलक मिलती है ?
चैप्लिन : मुझे नहीं मालूम कि यह मेरी लक्षणा है या नहीं। मैंने अन्य काॅमेडियंस को देखा है जो अपनी रफ्तार धीमी करते हैं। मुझे लगता है कि रफ्तार में अपनी झलक मैं धीमेपन से अधिक पाता हूं। धीमेपन से चलने लायक आत्मविश्वास मुझमें नहीं है।
लेकिन एक्शन ही सबकुछ नहीं होता। प्रत्येक वस्तु का विकास होना चाहिए, नही ंतो वह सत्य से दूर हो जाती है। आपको एक समस्या है और समय के साथ आप उसे बढ़ता हुआ दिखते हैं। आप उसे बिना मतलब बढ़ता नहीं दिखाते। आप कहते हैं उसका प्राकृतिक निष्कर्ष क्या होगा ? इसके बाद वह समस्या विश्वसनीय तरीके से अधिक गहराती जाती है। यह तार्किक होना चाहिए अन्यथा आप काॅमेडी तो करेंगे, परंतु वह एक उत्साहजनक काॅमेडी नहीं होगी।
मेरीमैन : क्या
संवेदनात्मकता या दोहराव से आप तंग होते हैं ?
चैप्लिन : नहीं, पेंटोमाइम में नहीं। आप तंग नहीं होते, बल्कि उसे दूर रखते हैं। और मैं दोहराव से नहीं डरता - पूरा जीवन ही दोहराव है। हम किसी किस्म की मौलिकता से रूबरू नहीं होते। हम सब तीनों समय का खाना खाकर जीते हैं, मर जाते हैं, प्यार करते हैं। एक प्रेम कहानी से अधिक दोहराव और कुछ नहीं होता, लेकिन वह होती रहनी चाहिए, जब तक कि उसे रोचक तरीके से दिखाया जाता रहे।
मेरीमैन : क्या आपको जूता
खाने वाला
दृश्य (गोल्ड
रश में) कई बार करना
पड़ा था ?
चैप्लिन : उस दृश्य पर दो दिन तक रीटेक हुए थे। वह अभिनेता मैक स्वेन दो दिन से बीमार थे। जूते मुलैठी के बने हुए थे और वह कई सारे खा चुके थे। उन्होंने मुझसे कहा, ‘मैं और अधिक ये जूते नहीं खा सकता!’ दरअसल मुझे यह विचार एक डाॅनर पार्टी से आया था (81 खोजकर्ताओं की एक वैगन रेल, जो 1846 में कैलिफाॅर्निया जा रही थी और सियेरा नेवाडा में बर्फ में फंस गई थी)। वह एक दूसरे का मांस खाने लगे थे और जूते भी। मुझे विचार आया गर्म पानी में उबला जूता ? यह हास्य से भरपूर था।
लेकिन कहानी को आगे बढ़ाना मेरे लिए तब तक बहुत कष्टकारी था जब तक एक सरल निष्कर्ष नहीं निकलता: भूख। जब आप एक परिस्थिति के तर्क को सुलझाते हैं, तब उसकी व्यावहारिकता,
यथार्थ और उसके पूर्ण होने से जुड़े विचार आप तक जल्दी आ पहुंचते हैं। यह पिक्चर के सबसे कुशल पहलुओं में से एक है।
मेरीमैन : क्या सवाक फिल्मों
में उतरने
से जुड़ी
कुछ शंकाएं
आपके मन में थीं ?
चैप्लिन : हां, बिल्कुल। सबसे पहले तो यह कि मेरे पास अनुभव था, लेकिन अकादमिक प्रशिक्षण नहीं, और यह बहुत बड़ा फर्क था। मुझे महसूस हुआ कि मेरे पास प्रतिभा है और मैं एक प्राकृतिक अभिनेता भी हूं। यह भी कि पेंटोमाइम से मैं खुद को अधिक जुड़ा पाता बजाय बोलने के। मैं एक कलाकार हूं और बोलने में बहुत कुछ समाप्त हो जाएगा। मैं अन्य उन अभिनेताओं से अलग नहीं दिखूंगा जिनके पास अच्छी संवाद अदायगी और बेहतरीन आवाज है, और यह केवल आधी जंग जीतने जैसा ही हुआ।
मेरीमैन : क्या यह प्रश्न यथार्थ के एक अन्य सिरे
से भी जुड़ा था जो मूक फिल्मों की फंतासी को भंग कर देता ?
चैप्लिन : हां। मैं हमेशा से यह कहता आया था कि पैंटोमाइम कहीं अधिक काव्यात्मक है और उसमें एक यूनिवर्सल अपील भी है, और यदि उसे बेहतर तरीके से किया जाए तो सब उसका मतलब समझ सकते हैं। बोले गए शब्द एक खास किस्म के धाराप्रवाह तक सबको सीमित कर देते हैं। आवाज एक खूबसूरत चीज है, बहुत कुछ बताती है, और मैं अपनी कला के बारे में सबकुछ नहीं बता देना चाहता क्योंकि वह भी एक सीमा दर्शाएगा। ऐसे बहुत कम लोग हैं जो आवाज के साथ अनंत गहराई के मायालोक को दिखाते हैं या उस तक पहुंचते हैं, जबकि शारीरिक भंगिमाएं उतनी ही प्राकृतिक हैं जितनी कि एक पक्षी का उड़ना। आंखों के भाव - उनके लिए कोई शब्द नहीं हैं। चेहरे के शुद्ध भाव जो लोग छुपा नहीं पाते - यदि वह निराशा से जुड़े हैं तो वह सतही नहीं होंगे। सवाक फिल्मों में आने से पूर्व मुझे यह सब याद रखना पड़ा था। मुझे पता था कि भावों के निरूपण में मुझे बहुत कुछ खोना पड़ेगा। वह सब पहले जितना अच्छा नहीं होगा।
मेरीमैन : कोई एक फिल्म जो आपकी पसंदीदा हो ?
चैप्लिन : मेरे विचार से सिटी लाइट्स। वह बहुत मजबूत और अच्छी बन पड़ी है। सिटी लाइट्स एक सच्ची काॅमेडी है।
मेरीमैन : वह एक मजबूत
फिल्म है। मुझे जो अंश पसंद आया वह यह कि काॅमेडी
और टेजिडी
कितने नजदीक
हो सकते
हैं।
चैप्लिन : उसमें मेरी रुचि नहीं थी। मैं समझता हूं कि वह एक अहसास है, व्यक्तिपरकता से जुड़ा। मुझे हमेशा से लगा है कि कमोबेश वह मेरी दूसरी प्रकृति की तरह है। ऐसा आसपास के वातावरण के कारण भी हो सकता है। मुझे नहीं लगता कि मानव जाति के बारे में संवेदना या अहसास की अनुपस्थिति में हास्य रचा जा सकता है।
मेरीमैन : क्या त्रासदियों से हम मुक्ति चाहते
हैं ?
चैप्लिन : नहीं, मेरी राय में जीवन और बहुत कुछ है। यदि ऐसा होता तो आत्महत्याओं की तादाद कहीं अधिक होती। लोग जीवन से मुक्ति चाहते। मैं सोचता हूं कि जीवन खूबसूरत है और उसे हर हालात में जीना चाहिए, विपत्ति में भी। मैं जीवन जीना चाहूंगा। उसका अनुभव लेना चाहूंगा। मेरी राय में हास्य व्यक्ति के होश-हवास को दुरुस्त करता है। अधिक त्रासदी झेलने से हम बहक सकते हैं। हालांकि, त्रासदियां जीवन का हिस्सा होती हैं, लेकिन हमारे अंदर उससे बचने के लिए एक उपकरण भी मौजूद है, उससे बचाने वाला एक डिफेंस। मैं सोचता हूं कि जीवन में त्रासदी बहुत जरूरी है। और हास्य हमें उससे बचने का रक्षाकवच प्रदान करता है। हास्य वैश्विक है जो मेरी राय में करुणा से प्राप्त किया जा सकता है।
मेरीमैन : क्या आपको लगता
है जीनियस
जैसा कुछ होता है ?
चैप्लिन : मुझे नहीं पता कि जीनियस क्या होता है। शायद ऐसा कोई व्यक्ति जिसमें एक प्रतिभा है, उसके बारे में वह बहुत संवेदनशील भी है और एक तकनीक पर वह पूर्ण सिद्धहस्त हो जाता है। प्रत्येक व्यक्ति किसी प्रतिभा से संपन्न होता है। औसत व्यक्ति को एक रोज के घिसे हुए कल्पनाशीलता रहित कार्य के बीच अंतर बनाना होता है और जीनियस को ऐसा नहीं करना पड़ता। वह कुछ अलग क
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