हद है कि मौसम बीमा में नुकसान का आकलन तापमान और बारिश के आधार पर होता
है, फसल के नुकसान से नहीं। ओले के नुकसान को मौसम बीमा में शामिल नहीं
किया गया है। ऐसी विडंबनाएं किसानों को उनके जायज अधिकारों से वंचित करती
हैं।
तापमान में गिरावट आई, फिर बारिश और तेज हवाएं और कई जगह ओले भी गिरे। मौसम के इस अचानक बदलने से शहर का जनजीवन कुछ घंटों में बहाल हो जाता है लेकिन गांव का किसान तो पूरे साल के लिए मायूस हो जाता है। ये मौसम फसल पकने और घरों में पहुंचने का समय होता है। पानी और ओले कई किसानों की आंखों में आंसू भरी मायूसी उंडेÞल जाते हैं। किसान की फसलों पर एक आपदा हो तो वह उससे बच जाए लेकिन मौसम और उससे जुड़ी प्राकृतिक आपदाओं की लंबी सूची है जो किसानों का जीवन बदहाल बना देती हैं। रासायनिक महंगी खेती ने प्राकृतिक आपदाओं के नुकसान को और भयावह बना दिया है। कर्ज और घाटे के दुष्चक्र में प्रदेश के लाखों छोटे किसान हर साल बरबादी के दिन गुजारने पर मजबूर होते हैं। प्रदेश में ठंड और पाले की वजह से ठंड और पाले की वजह से पिछले मौसम में भी फसलों को नुकसान हुआ था। सरकार ने इन्हें प्राकृतिक आपदा की सूची में शामिल करने की केंद्र से मांग की थी। और दो दिन पहले बेमौसम बरसात और ओलों ने किसानों को फिर मायूसी का शिकार बनाया है। किसानों के लिए कोई सुरक्षा नहीं है। चाहे वह बीमा हो या अन्य राहत कार्य। नौकरी पेशा और दूसरे व्यवसायों से जुड़े लोगों के लिए कहीं न कहीं सुरक्षा मिलती है और उनको निरंतर लाभ भी प्राप्त होते हैं लेकिन क्या कारण है कि देश का उत्पादन कर्ता वर्ग, किसानों के लिए आर्थिक सुरक्षा और लाभ का कोई सफल और सुचारू तंत्र विकसित नहीं हुआ है। यह सही है कि किसानी में पेचीदगियां बहुत हैं लेकिन सरकार को ऐसी आपदाओं से राहत के लिए इंतजाम करना ही चाहिए। कहने को तो प्राकृतिक आपदाओं से निपटने और किसानों को राहत देने के लिए देश में राष्ट्रीय फसल बीमा योजना मौजूद है। इस योजना का उद्देश्य फसल नष्ट होने की स्थिति में क्षतिपूर्ति करना और किसान को मदद पहुंचाना है। लेकिन हकीकत में बीमा कंपनियों ने ऐसी शर्तें तय की हैं कि नुकसान-दावा मान्य होने पर, कंपनियों को मामूली भुगतान देना पड़े। मुआवजा भी तब मिलता है, जब तालुका या विकासखंड स्तर पर फसल बर्बाद हुई हो। इससे कम क्षेत्र होने पर, भरपाई नहीं की जाती। इतना सब कंपनियों के पक्ष में होने के बाद भी किसानों को फायदा नहीं मिलता है। यह मामला मध्यप्रदेश विधानसभा में उठा था। विधायकों ने सरकार से किसानों को बीमा कंपनियों से फसल बीमा योजना का फायदा दिलवाने की मांग की थी। यह क्षोभजनक बात है कि मौसम बीमा के प्रावधानों में ओलावृष्टि से होने वाले नुकसान पर किसानों को कोई क्षतिपूर्ति या क्लेम देने का प्रावधान नहीं होता। हद है कि मौसम बीमा में नुकसान का आकलन तापमान और बारिश के आधार पर होता है, फसल के नुकसान से नहीं। ओले के नुकसान को मौसम बीमा में शामिल नहीं किया गया है। ऐसी विडंबनाएं किसानों को उनके जायज अधिकारों से वंचित करती हैं। सरकार को किसानों के हितों पर केंद्रित योजनाओं को ही लागू करना चाहिए ताकि किसानी लाभ के साथ एक सुरक्षित पेशा बनी रहे।
तापमान में गिरावट आई, फिर बारिश और तेज हवाएं और कई जगह ओले भी गिरे। मौसम के इस अचानक बदलने से शहर का जनजीवन कुछ घंटों में बहाल हो जाता है लेकिन गांव का किसान तो पूरे साल के लिए मायूस हो जाता है। ये मौसम फसल पकने और घरों में पहुंचने का समय होता है। पानी और ओले कई किसानों की आंखों में आंसू भरी मायूसी उंडेÞल जाते हैं। किसान की फसलों पर एक आपदा हो तो वह उससे बच जाए लेकिन मौसम और उससे जुड़ी प्राकृतिक आपदाओं की लंबी सूची है जो किसानों का जीवन बदहाल बना देती हैं। रासायनिक महंगी खेती ने प्राकृतिक आपदाओं के नुकसान को और भयावह बना दिया है। कर्ज और घाटे के दुष्चक्र में प्रदेश के लाखों छोटे किसान हर साल बरबादी के दिन गुजारने पर मजबूर होते हैं। प्रदेश में ठंड और पाले की वजह से ठंड और पाले की वजह से पिछले मौसम में भी फसलों को नुकसान हुआ था। सरकार ने इन्हें प्राकृतिक आपदा की सूची में शामिल करने की केंद्र से मांग की थी। और दो दिन पहले बेमौसम बरसात और ओलों ने किसानों को फिर मायूसी का शिकार बनाया है। किसानों के लिए कोई सुरक्षा नहीं है। चाहे वह बीमा हो या अन्य राहत कार्य। नौकरी पेशा और दूसरे व्यवसायों से जुड़े लोगों के लिए कहीं न कहीं सुरक्षा मिलती है और उनको निरंतर लाभ भी प्राप्त होते हैं लेकिन क्या कारण है कि देश का उत्पादन कर्ता वर्ग, किसानों के लिए आर्थिक सुरक्षा और लाभ का कोई सफल और सुचारू तंत्र विकसित नहीं हुआ है। यह सही है कि किसानी में पेचीदगियां बहुत हैं लेकिन सरकार को ऐसी आपदाओं से राहत के लिए इंतजाम करना ही चाहिए। कहने को तो प्राकृतिक आपदाओं से निपटने और किसानों को राहत देने के लिए देश में राष्ट्रीय फसल बीमा योजना मौजूद है। इस योजना का उद्देश्य फसल नष्ट होने की स्थिति में क्षतिपूर्ति करना और किसान को मदद पहुंचाना है। लेकिन हकीकत में बीमा कंपनियों ने ऐसी शर्तें तय की हैं कि नुकसान-दावा मान्य होने पर, कंपनियों को मामूली भुगतान देना पड़े। मुआवजा भी तब मिलता है, जब तालुका या विकासखंड स्तर पर फसल बर्बाद हुई हो। इससे कम क्षेत्र होने पर, भरपाई नहीं की जाती। इतना सब कंपनियों के पक्ष में होने के बाद भी किसानों को फायदा नहीं मिलता है। यह मामला मध्यप्रदेश विधानसभा में उठा था। विधायकों ने सरकार से किसानों को बीमा कंपनियों से फसल बीमा योजना का फायदा दिलवाने की मांग की थी। यह क्षोभजनक बात है कि मौसम बीमा के प्रावधानों में ओलावृष्टि से होने वाले नुकसान पर किसानों को कोई क्षतिपूर्ति या क्लेम देने का प्रावधान नहीं होता। हद है कि मौसम बीमा में नुकसान का आकलन तापमान और बारिश के आधार पर होता है, फसल के नुकसान से नहीं। ओले के नुकसान को मौसम बीमा में शामिल नहीं किया गया है। ऐसी विडंबनाएं किसानों को उनके जायज अधिकारों से वंचित करती हैं। सरकार को किसानों के हितों पर केंद्रित योजनाओं को ही लागू करना चाहिए ताकि किसानी लाभ के साथ एक सुरक्षित पेशा बनी रहे।
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