शनिवार, मार्च 16, 2013
हमें पता होता तो...
सरकारी अस्पताल और सरकारी कर्मचारियों की मानसिकता जिसकी लाठी उसका काम वाली हो चुकी है। यह न प्रजातांत्रिक मूल्यों के अनुसार है और न उनकी सेवाओं के अनुरूप न्यायसंगत।
स्व तंत्र और जागरूक देश में अधिकांश सरकारी कर्मचारियों की मानसिकता का पता नीचे दिए वक्तव्य से चलता है। इछावर और सीहोर के जिला अस्पताल के कर्मचारियों ने शहीद की पत्नी का इलाज नहीं किया। जब यह बात अस्पताल के जिम्मेदार अधिकारी को पता चलती है तो वे कहते हैं कि अगर हमें किसी ने बता दिया होता कि शहीद की पत्नी हैं तो वे उसकी अलग से व्यवस्था कर देते। यह अलग से व्यवस्था का क्या अर्थ है? यही कि सरकारी अस्पताल देश के लोगों को उनकी हैसियत से अलग-अलग उपचार देते हैं। यही कि अगर किसी राजनीतिक या सामाजिक रूप से प्रभावशाली व्यक्ति का फोन पहुंचता है तो वे उस मरीज की देखभाल को प्राथमिकता देते हैं। जन सामान्य के रूप में कोई पहुंचता है तो उसके उपचार में तमाम लापरवाहियां करते हैं। यह मानसिकता दर्शाती है कि हमारे कर्मचारी खुद को जन सामान्य का सेवक नहीं मानते। आए दिन होने वाली ऐसे घटनाक्रम केवल सरकारी अस्पतालों में ही नहीं तमाम सरकारी महकमों में घटते हैं।
जब कोई समाज या देश वीआईपी की मानसिकता से ग्रस्त होता है तो उसे स्वस्थ समाज की संज्ञा नहीं दी जा सकती। इस देश में मुंह देखी, पहचान, पॉवर, प्रतिष्ठा और भाई भतीजावाद की मानसिकता इस कदर हावी है कि जो न्यायसंगत है वह घटता ही नहीं है। जनता की सेवा न करने की भावना सरकारी कर्मचारिकयों गहरे पैठ चुकी है। वे जनता के सेवक खुद का मानते ही नहीं हैं। अक्सर गांव के लोग बातचीत में सरकारी कर्मचारियों को कहते हैं, ये तो सरकारी दामाद हैं। जनता हर जगह इस रुखे व्यवहार से क्षुब्ध है। नगर पालिकाओं में विधवा, वृद्ध और बच्चों से सीधे मुंह बात नहीं करते। इस मामले में केंद्र राज्य सरकार के कर्मचारियों के हाल एक जैसे हैं। रेलवे और डाकघरों में जिस तरह का रुक्ष व्यवहार जनता के साथ किया जाता है, उसे वहीं जाकर देखा जा सकता है। पुलिस थानों की जन सामान्य में नकारात्मक छवि बनी हुई है। लोग बातचीत में कहते हैं कि पुलिस की वर्दी को देख कर सुरक्षा का अहसान नहीं जागता। लगता है कि कहीं किसी मामले में फंसा तो नहीं देंगे। यह डर न तो एक दिन में बनता है और न एक दिन में खत्म होता है। अच्छे व्यवहार का कौशल समाज के प्रति निरंतर सजगता और प्रशिक्षण से संभव होता है। हम आज तक अपने मानव संसाधन को जिम्मेदारी का भाव नहीं सिखा पाए। निश्चय ही इसमें सरकारों के राजनीतिक नेतृत्व की अदूरदर्शिता भी शामिल है। जो खुद शासन करने की मानसिकता से अभी भी ग्रस्त हैं। तब वे क्यों कर्मचारियों में स्वतंत्र और निष्पक्ष काम की जिम्मेदारी की भावना पनपने देंगे। सरकारी कर्मचारी अच्छे काम करने से पदोन्नत नहीं होते। यही कारण है कि हम सरकारी कर्मचारियों को जड़ता से मुक्त नहीं कर सके हैं। कर्मचारी सोचते हैं,अच्छी सेवा अधिक महत्वपूर्ण है, थोड़ी सी चापलूसी करना। आज इस विचार को तोड़ने की जरूरत है और शासन भी कर्मचारियों में सेवा की भावना स्थापित करने के उपयों को लागू करना चाहिए।
Ravindra Swapnil Prajapati
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