शिकार क्यों कर्मचारी
विधानसभा में उठाए गए एक प्रश्न के उत्तर में जो जबाव मिला वह चौंकाने वाला है। सरकारी महकमों के आठ हजार से अधिक कर्मचारियों पर हमले किए गए।म ध्यप्रदेश में पिछले चार सालों में सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों के साथ मारपीट के करीब आठ हजार मामले सामने आए। मप्र सरकार ने यह बात विधानसभा में अपने एक लिखित उत्तर में स्वीकार की है। इस हिसाब से देखें तो प्रतिवर्ष दो हजार सरकारी कर्मचारियों अधिकारियों से मारपीट की गई। धक्कामुक्की की गई, एक तरह से उन्हें अपमानित किया गया। ये मामले 2008 से फरवरी 2012 तक के हैं। अगर हालिया महीनों केआंकड़ों पर नजर डालें तो मार्च 2012 से नवंबर 2012 तक 1405 शासकीय सेवकों के साथ मारपीट की गई। ये आंकड़े क्या कहते हैं? सवाल यह उठता है कि आखिर ये हिंसा क्यों की गई? कर्मचारियों अधिकारियों से मारपीट करने वाले कौन लोग हैं? इस स्थिति का निर्माण कैसे हुआ। किसकी हिम्मत है कि वह सरकारी कारिंदे पर हाथ उठाए। शासकीय कर्मचारियों के इन आंकड़ों में और भी कई सवाल छुपे हैं। इस मारपीट पर करीब एक हजार से अधिक घटनाओं पर पुलिस केस दर्ज किए गए हैं। सरकार मानती है कि इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने वाले असामाजिक तत्व और आपराधिक प्रवृत्ति के लोग शामिल रहे हैं। सवाल उठता है कि आखिर ये लोग जनसामान्य नहीं थे। इनका वर्ग असामाजिक और आपराधिक रहा है। अपराधी भी सरकारी कर्मचारियों से मारपीट तब करता है, जब उसे किसी प्रकार का संरक्षण हासिल होता है। यह तो नहीं कहा जा सकता कि सभी घटनाओं के पीछे कोई न कोई राजनीतिक ताकत रहती है लेकिन अधिकांश घटनाओं में राजनीतिक प्राश्रय प्राप्त लोग ही अधिक होते हैं।
सरकारी कर्मचारी किसी भी सरकार के प्रशासनिक स्तर पर एक स्थाई संरचना का हिस्सा होते हैं। उनका मनोबल और उनकी सामूहिक भावना सरकार के कामकाज पर दूरगामी प्रभाव डालती है। अक्सर सरकार के लिए अपने कर्मचारी और अपनी जनता एक तरह से दो आंखों की तरह की स्थिति का निर्माण करते हैं। दोनों ही महत्वपूर्ण और दोनों ही जरूरी हैं। अगर जनता के बीच कोई असामाजिक तत्व ऐसा करता है तो यह भी एक प्रकार की प्रशासनिक असफलता का हिस्सा है। प्रदेश में होने वाली कोई भी घटना प्रशासनिक जिम्मेदारी से मुक्त नहीं की जा सकती। सरकार को यह देखना होगा कि जनता के बीच सरकारी कारिंदों की कार्यप्रणाली और व्यवहार का स्तर क्या है? अगर सिर्फ ये आठ हजार के लगभग घटनाएं आपराधिक लोगों ने की हैं तो भी यह जाहिर होता है कि आखिर ऐसा सरकार कैसे होने देती रही? इनकी रोकथाम के पीछे हमें यह भी देखना होगा कि सरकारी कर्मचारियों से मारपीट करने वाले लोग सिर्फ मारपीट करने नहीं गए होंगे। वे किसी न किसी काम से इन कर्मचारियों अधिकारियों से मिले होंगे। ये मामले थाने में केस दर्ज करने के नहीं, जनता और सरकार के बीच उचित सामंजस्य के अधिक हैं। कहीं न कहीं सरकार और जनता के बीच उचित सामान्जस्य की कमी है। सरकार को कर्मचारियों अधिकारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ माहौल में सौहार्द और परिवेश को बदलने का है। यह मामला सरकार की कार्यप्रणाली के प्रदर्शन का हिस्सा भी है।
विधानसभा में उठाए गए एक प्रश्न के उत्तर में जो जबाव मिला वह चौंकाने वाला है। सरकारी महकमों के आठ हजार से अधिक कर्मचारियों पर हमले किए गए।म ध्यप्रदेश में पिछले चार सालों में सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों के साथ मारपीट के करीब आठ हजार मामले सामने आए। मप्र सरकार ने यह बात विधानसभा में अपने एक लिखित उत्तर में स्वीकार की है। इस हिसाब से देखें तो प्रतिवर्ष दो हजार सरकारी कर्मचारियों अधिकारियों से मारपीट की गई। धक्कामुक्की की गई, एक तरह से उन्हें अपमानित किया गया। ये मामले 2008 से फरवरी 2012 तक के हैं। अगर हालिया महीनों केआंकड़ों पर नजर डालें तो मार्च 2012 से नवंबर 2012 तक 1405 शासकीय सेवकों के साथ मारपीट की गई। ये आंकड़े क्या कहते हैं? सवाल यह उठता है कि आखिर ये हिंसा क्यों की गई? कर्मचारियों अधिकारियों से मारपीट करने वाले कौन लोग हैं? इस स्थिति का निर्माण कैसे हुआ। किसकी हिम्मत है कि वह सरकारी कारिंदे पर हाथ उठाए। शासकीय कर्मचारियों के इन आंकड़ों में और भी कई सवाल छुपे हैं। इस मारपीट पर करीब एक हजार से अधिक घटनाओं पर पुलिस केस दर्ज किए गए हैं। सरकार मानती है कि इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने वाले असामाजिक तत्व और आपराधिक प्रवृत्ति के लोग शामिल रहे हैं। सवाल उठता है कि आखिर ये लोग जनसामान्य नहीं थे। इनका वर्ग असामाजिक और आपराधिक रहा है। अपराधी भी सरकारी कर्मचारियों से मारपीट तब करता है, जब उसे किसी प्रकार का संरक्षण हासिल होता है। यह तो नहीं कहा जा सकता कि सभी घटनाओं के पीछे कोई न कोई राजनीतिक ताकत रहती है लेकिन अधिकांश घटनाओं में राजनीतिक प्राश्रय प्राप्त लोग ही अधिक होते हैं।
सरकारी कर्मचारी किसी भी सरकार के प्रशासनिक स्तर पर एक स्थाई संरचना का हिस्सा होते हैं। उनका मनोबल और उनकी सामूहिक भावना सरकार के कामकाज पर दूरगामी प्रभाव डालती है। अक्सर सरकार के लिए अपने कर्मचारी और अपनी जनता एक तरह से दो आंखों की तरह की स्थिति का निर्माण करते हैं। दोनों ही महत्वपूर्ण और दोनों ही जरूरी हैं। अगर जनता के बीच कोई असामाजिक तत्व ऐसा करता है तो यह भी एक प्रकार की प्रशासनिक असफलता का हिस्सा है। प्रदेश में होने वाली कोई भी घटना प्रशासनिक जिम्मेदारी से मुक्त नहीं की जा सकती। सरकार को यह देखना होगा कि जनता के बीच सरकारी कारिंदों की कार्यप्रणाली और व्यवहार का स्तर क्या है? अगर सिर्फ ये आठ हजार के लगभग घटनाएं आपराधिक लोगों ने की हैं तो भी यह जाहिर होता है कि आखिर ऐसा सरकार कैसे होने देती रही? इनकी रोकथाम के पीछे हमें यह भी देखना होगा कि सरकारी कर्मचारियों से मारपीट करने वाले लोग सिर्फ मारपीट करने नहीं गए होंगे। वे किसी न किसी काम से इन कर्मचारियों अधिकारियों से मिले होंगे। ये मामले थाने में केस दर्ज करने के नहीं, जनता और सरकार के बीच उचित सामंजस्य के अधिक हैं। कहीं न कहीं सरकार और जनता के बीच उचित सामान्जस्य की कमी है। सरकार को कर्मचारियों अधिकारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ माहौल में सौहार्द और परिवेश को बदलने का है। यह मामला सरकार की कार्यप्रणाली के प्रदर्शन का हिस्सा भी है।
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