देश में प्रारंभिक मानसून की बेरुखी के बाद देश के कई हिस्सों में लगातार हो रही बारिश की वजह से बाढ़ के हालात बन गए हैं। पूर्वी उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के कई इलाकों में जमकर बारिश हो रही है। अकेले मध्यप्रदेश में ८त्न घंटे से हो रही भारी वर्षा के कारण ८ हजार परिवार (लगभग ६ञ् हजार लोग) आए हैं। प्रकृति अपना काम करती है। पहले भी ऐसी बाढ़ें आती रही हैं। लेकिन मानवीय प्रबंधन की सीमाओं के कारण हालात दयनीय हो जाते हैं। पानी प्रकृति का प्रवाह है वह अपनी गति और नीति से बहता है। आज मध्यप्रदेश ही नहीं पूरा देश जल असंतुलन का शिकार है। ऐसी स्थितियों में बाढ़ प्रबंधन की भूमिका महत्वपूण हो जाती है।
नर्मदा व तवा नदी के खतरे के ऊपर बहने से आसपास के करीब ५ञ्ञ् गांव बाढ़ से घिरे हैं। यहां के हालातों को सम्हालने के लिए सेना की मदद लेना पड़ी है। मध्यप्रदेश में भारी बारिश के चलते कुछ जिलों में दो दिनों की छुट्टी का एलान कर दिया गया है. कई दिनों की बारिश से कुछ फायदे तो हुए हैं लेकिन नुकसान भी कम नहीं हुआ है। लेकिन दूसरी तरफ देश के कुछ हिस्सों में सूखे जैसी स्थिति है। राजस्थान में ७७ में से ६त्न जिलों में बारिश नहीं होने के कारण लोगों को पानी की चिंता सता रही है। केवल छह जिलों में सिर्फ बुवाई लायक ही बारिश हुई है। राज्य सरकार ने अभी पाच जिलों को ही सूखाग्रस्त घोषित किया है। वहां ६त्न जिलों में अस्सी प्रतिशत तक कम बारिश हुई है।
दूसरी तरफ कुछ राज्यों में बाढ़ ने भारी तबाही मचाई है। उत्तर प्रदेश में उफनाई नदियों ने बाढ़ नियंत्रण उपायों की पोल खोल दी है। घाघरा, रामगंगा, वरुणा, शारदा, सरयू, राप्ती, जैसी नदियों का जलस्तर बढ़ा हुआ है। गंगा व यमुना का जलस्तर भी खतरे के निशान की ओर बढ़ रहा है। प्रदेश में बाढ़ प्रभावित ७त्र जिलों में स्थिति सबसे ज्यादा गंभीर है। बहराइच में उत्तरी तटबंध पर पानी का दबाव बढ़ने से कई जगह से रिसाव की सूचना है। बाढ़ पीड़ितों को सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाने और भोजन आदि की व्यवस्था भी संतोषजनक नहीं है। ये शिकायतें प्रतिवर्ष हो सकती हैं लेकिन बाढ़ के लिए हम कितने तैयार होते हैं यह तभी पता चलता है जब बाढ़ आती है।
अगस्त ६ञ्ञ्८ में जो बाढ़ आई थी उस समय प्रधानमंत्री ने उस मौके पर बाढ़ प्रबंधन के लिए एक टास्क फोर्स बनाई थी। उसने दिसंबर ६ञ्ञ्९ में रिपोर्ट दी थी। उसमें बाढ़ प्रबंधन के लिए स्थाई और दूरगागी समाधान दिए गए थे। जहां तक बाढ़ के स्थाई प्रबंध का मसला है तो यह राष्ट्रीय मुद्दा है। मानसून से पहले देश में जगह-जगह बाढ़ से बचाव के प्रबंध अब एक अनिवार्यता हो चुकी है। जहां बांध बनाए जा सकते हैं वहां बांध बनाए जाना चाहिए। जहां जरूरी हो वहां ड्रेनेज का इंतजाम भी होना चाहिए। आने वाले वक्त में हमें देश के विकास और जीवन की सुविधाओं के विस्तारको भी ध्यान में रखना होगा। हमें यह ख्याल रखना होगा कि अतिवृष्टि कभी भी हो सकती है इसलिए हमें बाढ़ प्रबंधन नए प्रयास करते रहना होंगे।
1 टिप्पणी:
प्राभावशाली लेखन
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1. Twitter Follower Button के साथ Followers की संख्या दिखाना
2. दिल है हीरे की कनी, जिस्म गुलाबों वाला
3. तख़लीक़-ए-नज़र
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