खजुराहो के शिल्प घरेलू जीवन के महत्वपूर्ण पहलूओं पर प्रकाश डालते हैं। लक्ष्मण मंदिर के अनेक शिल्पों में आराम से बैठे हुए दंपत्ति को वार्तालाप करते हुए अंकित किया गया है। संभवत: ये दंपत्ति परिवारिक समस्याओं का हल ढ़ूंढने का प्रयास कर रहे दिखाई देते हैं। लक्ष्मण मंदिर में एक युगल अंकित किया गया है। पति क्रू द्ध मुद्रा में हैं, जबकि पत्नी उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे प्रसन्न करने का प्रयास करती दिखाई गई हैं। चित्रगुप्त मंदिर में पत्नी को पति द्वारा फूलों का प्रेमोपहार देते हुए अंकित किया गया है। इसके अतिरिक्त कई दृश्यों में शोकपूर्ण अवसरों पर पति-पत्नी एक दूसरे का दुख बांटते हुए दिखाए गए हैं। कई पत्नियों को धीरज बंधाते हुए दिखाया गया है। कहीं- कहीं पतियों को आलिंगन करते हुए दर्शाया गया है। एक स्थान पर पति द्वारा हाथ जोड़कर माफी मांगते हुए दिखाया गया है।
कलाकृतियों में पत्नी को ताड़ना देते हुए पति को चित्रित किया गया है। लक्ष्मण मंदिर की प्रतिमा में ऐसे चित्रण दिखाई देते हैं। जब पति अपनी पत्नी को पीट रहा है, तो समीप ही एक दर्शक दुखी मन से पति- पत्नी के झगड़े को देखता हुआ चित्रित किया गया है। अनेक चित्रण में पतियों के कठोर एवं पाशविक आचरण का अंकन देखने को मिलता है, तथापि पत्नियों द्वारा पतियों के प्रति कठोर व्यवहार का एक भी दृश्य अंकित नहीं हैं। इससे प्रकट होता है कि खजुराहो काल में स्रियों की स्वतंत्रता सीमित थी एवं वह पति के संरक्षण की मोहताज थी।
खजुराहो के कुछ शिल्पांकनों से पुरुषों पर स्रियों के प्रभाव का भी चित्रण मिलता है। देवी जगदंबी के एक दृश्य में एक स्री- पुरुष के हाथ पर अपना हाथ रखकर उसे जल्दबाजी में कोई निर्णय लेने से रोकती दिखाई देती है। इसी प्रकार लक्ष्मण मंदिर में एक स्री युद्धक्षेत्र में जाते हुए व्यक्ति को रोकती दिखाई गई है। समाज में स्रियों को पर्याप्त स्वतंत्रता प्राप्त होने के बावजूद दुष्ट और चरित्रहीन व्यक्तियों से उनकी सुरक्षा सदैव पतियों को करनी पड़ती थी। गृहस्थाश्रम में पतियों की देखभाल के साथ- साथ पत्नियों को सुचारु रुप से गृहस्थी चलाना और बच्चों को लालन- पालन भी करना पड़ता था।
कलाकृतियों में पत्नी को ताड़ना देते हुए पति को चित्रित किया गया है। लक्ष्मण मंदिर की प्रतिमा में ऐसे चित्रण दिखाई देते हैं। जब पति अपनी पत्नी को पीट रहा है, तो समीप ही एक दर्शक दुखी मन से पति- पत्नी के झगड़े को देखता हुआ चित्रित किया गया है। अनेक चित्रण में पतियों के कठोर एवं पाशविक आचरण का अंकन देखने को मिलता है, तथापि पत्नियों द्वारा पतियों के प्रति कठोर व्यवहार का एक भी दृश्य अंकित नहीं हैं। इससे प्रकट होता है कि खजुराहो काल में स्रियों की स्वतंत्रता सीमित थी एवं वह पति के संरक्षण की मोहताज थी।
खजुराहो के कुछ शिल्पांकनों से पुरुषों पर स्रियों के प्रभाव का भी चित्रण मिलता है। देवी जगदंबी के एक दृश्य में एक स्री- पुरुष के हाथ पर अपना हाथ रखकर उसे जल्दबाजी में कोई निर्णय लेने से रोकती दिखाई देती है। इसी प्रकार लक्ष्मण मंदिर में एक स्री युद्धक्षेत्र में जाते हुए व्यक्ति को रोकती दिखाई गई है। समाज में स्रियों को पर्याप्त स्वतंत्रता प्राप्त होने के बावजूद दुष्ट और चरित्रहीन व्यक्तियों से उनकी सुरक्षा सदैव पतियों को करनी पड़ती थी। गृहस्थाश्रम में पतियों की देखभाल के साथ- साथ पत्नियों को सुचारु रुप से गृहस्थी चलाना और बच्चों को लालन- पालन भी करना पड़ता था।
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