पाकिस्तान और भारत दो ऐसे देश हैं जिनके पास आपसी समझ की
कमी है। पाकिस्तान के पास ये कुछ ज्यादा ही है। लगभग सभी मामलों में दोनों देशों के शासकों का रवैया जनता से मजाक का रहा है।
पा किस्तान की जेल में बंद भारतीय कैदी सरबजीत सिंह को रिहा किए जाने की खबरों के कुछ ही मिनिट बाद भारत में सरबजीत के परिजन जश्न मनाने लगे। विदेश मंत्री एस एम कृष्णा ने भी पाकिस्तान को बधाई प्रेषित कर दी। खास बात ये है कि विदेश मंत्री ने यह बधाई बिना आधिकारिक सूचना या आदेश प्राप्त किए दी थी। होना ये चाहिए था कि जब तक सरबजीत भारतीय सीमा में न आ जाता तब तक जश्न से दूर ही रहना था। मीडिया भी उतावला होकर मौखिक सूचना पर सरबजीत की रिहाई का महिमामंडन करने लगा। सरबजीत रिहा होता तो यह खुशी का अवसर था लेकिन यह भारतीयों की भावुकतापूर्ण नासमझी थी जो देर रात गए दुख में बदल गई। पाकिस्तान सरकार का आदेश भारत सरकार या विदेश मंत्रालय तक नहीं आता तब तक इसे रिहाई नहीं कहा जाना था। इससे साबित होता है कि हम आज भी पड़ोसी को नहीं समझ सके हैं और उससे कोई सबक नहीं सीख रहे हैं। यह खबर हजार बार सच होती तब भी देश को, मीडिया को आधिकारिक आदेश का इंतजार तो करना ही चाहिए था।
इस घटनाक्रम के कुछ ही घंटे बाद पाकिस्तान ने सफाई दी कि उसने सरबजीत सिंह नहीं बल्कि एक अन्य भारतीय कैदी सुरजीत सिंह को रिहा करने के लिए कदम उठाए हैं। ‘जियो न्यूज’ पर आकर राष्ट्रपति के प्रवक्ता फरहतुल्लाह बाबर ने कहा कि मुझे लगता है कि इस सम्बंध में कुछ गलतफहमी हुई है। यह क्षमादान का मामला नहीं है और सरबजीत का भी नहीं है। खबर तत्काल भारतीय मीडिया पर भी आ गई। कहा जाने लगा कि पाकिस्तान पलट गया। बेशक पाकिस्तान पलटा होगा लेकिन हमें तो अपना विवेक नहीं खोना था। हम अच्छी तरह जानते हैं कि पाकिस्तान को मुल्ला, फौज और अमेरिका संचालित करते हैं। सरबजीत की रिहाई सेना को या मुल्ला लॉबी को पसंद नहीं आने की बात भी उठी थी। अतंत: छह घंटे बाद पाकिस्तान को पलटना पड़ा।
दूसरा पक्ष ये है कि अगर पाकिस्तान नहीं पलटा है तो यह भी आश्चर्य है कि विदेशी मामले में पाकिस्तान सरकार से इतनी लापरवाही कैसे हुई? सरकार को सुरजीत और सरबजीत के नाम को लेकर संदेह कैसे हुआ? दोनों की सजा अलग-अलग थी, फिर नाम को लेकर भ्रम कैसे हो गया? 6 घंटे के अंदर ऐसा क्या हुआ कि सरबजीत की जगह सुरजीत का नाम आ गया? अनुमान है कि सरकार दबाव में है लेकिन सरकार पर दबाव किसका है? पाकिस्तान में एक बड़ा तबका ऐसा है जो सरबजीत सिंह की रिहाई की खबर के बाद विरोध में सक्रिय हो गया था। पाकिस्तान की विपक्षी पार्टी मुस्लिम लीग नवाजÞ भी रिहाई के फैसले का विरोध कर रही थी। आखिर में वही हुआ जो नहीं होना था। सरकार को पलटना पड़ा। पाकिस्तान सरकार के दो बयानों से दोनों देशों में असमंजस की स्थिति बनी। इससे यह भी साबित होता है कि सरकारें दबाव समूहों के सामने कितनी लाचार हो सकती हैं।
एकरूप होगी न्यायिक सेवा
भारतीय न्याय व्यवस्था में यूपीएससी से जजों के चयन से प्रोफेशनजिज्म का विकास होगा और इससे कानूनी प्रक्रिया को अधिक तर्कसंगत और आम आदमी के प्रति जिम्मेदार बनाया जा सकेगा।
भो पाल में आयोजित नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के कार्यक्रम में कानून और न्याय के विभिन्न पक्षों पर नई अवधारणाएं प्रस्तुत की गर्इं। इसमें जो महत्वपूर्ण विचार सामने आया वह था जजों को भी यूपीएससी के माध्यम से चयनित किया जाएगा। संघ लोक सेवा आयोग के चेयरमैन प्रो. डीपी अग्रवाल ने इस विचार से संबंधित अवधारणा के बारे में बताया है। इससे न्याय व्यवस्था में एकरूपता आएगी और इसमें फैले भ्रष्टाचार से भी मुक्ति मिलेगी। फिलहाल यह विचार अभी प्रक्रिया का हिस्सा है लेकिन आने वाले समय में इस विचार को मूर्त रूप दिया जाना है। नेशनल लॉ इंस्टीट्यूट यूनिवर्सिटी (एनएलआईयू) में आयोजित ओरिएंटेशन प्रोग्राम में इस नई अवधारणा और अन्य कानूनी व्यवस्थाओं पर विचार विमर्श किया गया था। इस अवधारणा से संविधान के अनुरुप न्याय को सब तक पहुंचाने के विचार को बल मिलेगा। वैसे भी भारत की न्याय प्रणाली सबसे पुरानी प्रणालियों में से एक है। संविधान की प्रस्तावना भारत को ‘संप्रभुता संपन्न प्रजातांत्रिक गणराज्य’ के रूप में पारिभाषित करती है, इसमें केंद्र और राज्यों में संसदीय स्वरूप वाली संघीय शासन प्रणाली, स्वतंत्र न्यायपालिका, संरक्षित मौलिक अधिकार और राज्य के नीति निर्देशक तत्व, जिन्हें लागू करने के लिए सरकारें कानूनन बाध्य नहीं, लेकिन प्रक्रिया में शामिल हैं और यह सब राष्ट्र के प्रशासन के आधारभूत तत्व हैं। यही वह पक्ष है जिससे सदैव कानून और न्याय की अवधारणा को बल मिलता रहेगा?
किसी भी न्याय प्रक्रिया को सार्वजनिक हितों के लिए उपयुक्त बनाने के लिए आवश्यक है कि उसकी एकरुपता और व्यापकता पर विचार किया जाता रहे। कानून के क्षेत्र में विद्यार्थियों को खुद पर विश्वास तथा विषय की गहरी समझ रखना जरूरी है। युवा वकीलों और जजों के रूप में आम लोगों को उनके कानूनी लाभ दिलाने और उनके अधिकार से अवगत कराने में सफल होंगे।
यह सच है कि न्याय की सार्थकता तभी सिद्ध होगी जब वह देश के अंतिम नागरिक को भी उतनी ही सहजता से उपलब्ध हो जितनी कि संसाधनों से संपन्न व्यक्ति के लिए हो सकता है। इस मार्फत अगर आज की विधायी प्रक्रिया की बात करें तो हमें बहुत ही निराशाजनक उत्तर मिलेगा? चाहे वह कानूनी व्याख्यायओं का मामला हो या फिर वर्तमान में जारी न्याय व्यवस्था की प्रतीक अदालतें। इसमें सबसे अधिक दिक्कत है प्रोफेशनल तरीके और नजरिए की कमी की। आज की पेचीदा कानूनी प्रक्रिया में मानवीय पक्ष को शामिल किया जाना भी जरूरी है। मशीनी और तर्क आधारित न्याय व्यवस्था में मनुष्य को न्याय का वास्तविक लाभ मिलना संभव नहीं हो सकता। कानून की जिम्मेदारी संभालने वाले और कानून के द्वारा न्याय प्रस्तुत करने वाले युवा ही हैं जो परिवर्तन को शीघ्रता से अपना सकते हैं। न्यायाधीशों के एकरूप चयन से न्यायिक सजगता आएगी। युवा जजों और वकीलों में कानून के गहरे अध्ययन के प्रवृत्ति को बल भी मिलेगा।
बोसोन बदलेगा तकनीक
बोसोन के जो गुणधर्म हैं अगर वे वैज्ञानिकों ने नियंत्रत करना सीख
लिया तो धरती पर मानव सभ्यता तकनीक के ऐसे दौर में चली जाएगी जिसकी हम आजतक कल्पना भी नहीं कर सके हैं।
हि ग्स बोसान मिल ही गया जिनेवा में भौतिक वैज्ञानिकों ने बुधवार 4 जुलाई 2012 को एक प्रेस कांफ्रेंस में दावा किया कि उन्हें प्रयोग के दौरान ये कण मिला है, जिसके गुणधर्म हिग्स बोसोन से मिलते हैं। अब असली सवाल है कि बोसोन को उसके अस्थिर गुणधर्म के कारण नियंत्रित करना मुश्किल है। बोसोन ऐसा आधारभूत कण है जो अपनी प्रकृति और रूप पल-पल बदलता है। अब वैज्ञानिक इस नए कण से संबंधित आंकड़ों के विश्लेषण में जुटे हैं। हालांकि इसके कई गुण हिग्स बोसोन सिद्धांत से मेल नहीं खाते हैं। फिर भी इसे ब्रह्मांड के जन्म के रहस्य खोलने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
बोसोन को 6000 वैज्ञानिकों की टीम ने 10 अरब डॉलर से ज्यादा खर्च करके जिस कण की खोज की है, वह संसार के बनने और चलने का आधार है। इस एक कण ने ब्रह्मांड के हजारों कण और पदार्थों को बांध रखा है, मगर आज तक ईश्वर की तरह किसी ने इसे देखा नहीं है। इसी कारण इस कण को गॉड पार्टिकल कहा जा रहा है। इस कण के दिखते ही सृष्टि के बनने और चलने की कहानी की ओर वैज्ञानिक कदम बढ़ा सकेंगे और जीवन और ब्रह्मांड की कई अनसुलझी गुत्थियां भी सुलझ जाएंगी।
गॉड पार्टिकल सामने आने तक वैज्ञानिक उपलब्धियों के हिसाब से 2011 बहुत महत्वपूर्ण साबित हुआ। पार्टिकल फिजिक्स, एस्ट्रोनॉमी और जीव-विज्ञान के क्षेत्र में नई खोजों ने हमें सबसे ज्यादा चौंकाया। वैज्ञानिकों द्वारा एक अन्य प्रयोग में यह भी साबित करने की कोशिश की कि न्यूट्रिनो कणों की रफ्तार प्रकाश से भी ज्यादा है। यह खोज अल्बर्ट आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत के एकदम विपरीत है, जो यह कहता है कि प्रकाश से ज्यादा तेज कुछ नहीं। अगर यह खोज पूरी तरह से स्थापित हो जाती है, तो हमें फिजिक्स की किताबें फिर से लिखनी पड़ेंगी।
कण का ‘बोसोन’ नाम भारतीय वैज्ञानिक सत्येंद्रनाथ बोस के नाम से ही लिया गया है। यह भारत के लिए गौरव की बात है। भारतीय वैज्ञानिक सत्येंद्रनाथ बोस का जन्म 1 जनवरी, 1894 को कलकत्ता में हुआ था। उन्होंने आंइस्टीन के साथ मिलकर एक फार्मूला पेश किया था, जिससे खास तरह के कणों का गुण पता चलता है। ऐसे कण बोसोन कहलाते हैं। ब्रह्मांड की हर वस्तु तारा, ग्रह, उपग्रह व जीव जगत पदार्थ या मैटर से बना है। मैटर का निर्माण अणु-परमाणु से हुआ है। जबकि मास या द्रव्यमान वह भौतिक गुण है, जिनसे इन कणों को ठोस रूप मिलता है। अगर द्रव्यमान नहीं है तो कण रोशनी की रफ्तार से भगेगा, दूसरे कणों के साथ मिलकर संघनित होने की संभावना भी नहीं बनती। यही द्रव्यमान जब ग्रेविटी से गुजरता है तो भार कहा जाता है। लेकिन भार द्रव्यमान नहीं होता, क्योंकि ग्रेविटी कम या ज्यादा होने पर भार बदल जाता है। वहीं द्रव्यमान एक जैसा रहता है। बोसोन इसी गुण का प्रतिनिधित्व करता है। यही गुण मानव सभ्यता के वैज्ञानिक विकास के नए आयाम प्रस्तुत करेगा।
by
Ravindra Swapnil Prajapati
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें