मै एक दरवाजा हूँ , मुझमे से अभी अभी एक सूरत गुजरी है
मै जहाँ जहाँ हूँ गुजरता है कोई मुझ में से
गुजरती है कोई खुशबू, गुजरती है कोई सूरत
गुजरने से पहले कोई मेरे इस तरफ था
गुजरने के बाद वह उस तरफ दिख रहा है
मेरे दोनों तरफ है दुनिया
वही इस तरफ दिखता है वही उस तरफ है
दोपहर १२ . ४४
रविन्द्र स्वप्निल
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