दोस्तो ये कवितायेँ मेरे जीवन का पूरा सच नहीं है ........जो सच है वो न जाने किस शक्ल में
सामने आ रहा है .
सामने आ रहा है .
अक्सर उदासियों से भरे एक रिश्ते कि शक्ल है इन कविताओं में
आप पढ़ लें ये भी क्या कम है 1
मैंने प्यार किया बादल की तरह
तुमने चांद की तरह मुस्कुराया
मैं नदी में उतर कर पानी बन गया
तुम उसमें हिलती हुई चांदनी हुईं
हमने फिर खूब प्यार किया
तुम उजली रात थीं और मैं एक पुल
उस रात शहर रोशनी से भरा था
और मै टिमटिमाता आसमान था
........
2
पिघल कर चांद का कोई हिस्सा
तुम्हारी गलियों में गिर गया है
अंधेरे का कोई फाहा
हमारी जिंदगियों मे मिल गया है
कैसे पार करें यादों के जंगल को
फासला सा राह में आ गया है
किसी से कुछ दिल चाहता नहीं
मैंने लफजों में बहुत रख दिया है
तुम बहुत दूर हो चुके हो
हमने अब ये मंजूर कर लिया है
रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति,
टॉप 12, क्रिसेंट स्कूल के सामने, हाईलाईफ कॉम्लेक्स, चर्च रोड, जहांगाीराबाद, भोपाल मध्यप्रदेष मो-9826782660