भा रत अगर अपनी जनसंख्या पर पार नहीं पा लेता, तो वह एक भीड़ भरे देश से अधिक और कुछ नहीं हो सकता। भारत की जनसंख्या दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचती रही है। भारत ही नहीं, बल्कि एशिया के अधिकांश देशों की जनसंख्या विकसित देशों के लिए एक बाजार रही है या एक अभिशाप। आज विकसित देशों का नेतृत्व जानता है कि भारत अपनी जनसंख्या के साथ एक संभावनाओं वाला युवा देश है, लेकिन ये संभावनाएं कहां हैं? और किनके लिए हैं- उनके या हमारे लिए? क्या सिर्फ देश के कुछ हजारों-लाखों युवा विदेशों में जाकर सॉफ्टवेयर इंजीनियर हो जाएं और डालर कमाकर भेजें, तो इसे संभावनाएं कहेंगे। नहीं, इसे देश की वास्तविकता नहीं बनाया जा सकता है। ये संभावनाएं तो निहित हो सकती हैं हमारे गांवों में, कृषि और ऐसी योजनाओं में जिसमें हर हाथ को काम का वादा निहित हो। व्यापकता से देखें तो आज देश को दोनों की आवश्यकता है। जनसंख्या की दृष्टि से भारत के संसाधनों का कोई अनुपात नहीं बनता। संसाधनों की भारी कमी है। आबादी का एक बड़ा हिस्सा गंदी बस्तियों में रहता है। उसे दो वक्त का भरपेट पोषक खाना नहीं मिल पाता और हम आज भी अपने देश के एक बड़े वर्ग को स्वच्छ पेयजल तक उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं। शहरों तक में एक बड़े वर्ग को स्वच्छ पेयजल नहीं मिलता, तो गांवोें की तो बात ही छोड़ दें। दुनिया में सबसे ज्यादा हमारी नदियां प्रदूषित हो रही है। शहरों के विकास के साथ अमानक गंदगी से भरी बस्तियों का साम्राज्य खड़ा हो रहा है। यानी हम एक ऐसी जनसंख्या को गिन रहे हैं जहां अभी सुविधाएं का विकास की प्रारंभिक अवस्था में है और कई मामलों में तो उतना भी नहीं है। जनगणना के महाकार्य को 25 लाख जनगणना अधिकारी 45 दिनों में अंजाम देंगे। देश की विभिन्न भाषाओं में 64 करोड़ फार्म में यह जानकारी एकत्रित होगी। एक विशालकाय डाटाबेस बनेगा, जिसके आधार पर करीब पिछले दस साल तक योजनाओं को बेकअप मिलेगा। देश विदेश के लोग, संस्थाएं कंपनियां इनका सदुपयोग-दुरुपयोग करती रहेंगी। कुछ ही दिनों बाद हम भारत बारे में कुछ और जानेंगे ।
इंदोंर विकास प्राधिकरण आखिर क्या चाहता था
आई डीए (इंदौर डेवलपमेंट अथॉरिटी) ने प्लाटों के मामलों में जो कुछ किया है, वह एक भूल का परिणाम नहीं हो सकता। एक बड़ी संस्था की कार्यप्रणाली के तहत भी यह गले उतरने वाली बात नहीं है। जब तक कि इसमें गोलमाल करने की मंशा से जिम्मेदार लोगों की सहमति न शामिल हो। इस घटनाक्रम के बाद जिस प्रकार के बयान आईडीए के अध्यक्ष और जवाहर नगर हाउसिंग ने दिए हैं, वे किसी आश्चर्य से कम नहीं हैं। प्लाटों के साइज कम हो रहे हैं और अध्यक्ष को पता नहीं है। इस तरह जवाहर नगर हाउसिंग सोसायटी के अध्यक्ष ने कहा कि पता नहीं चल रहा कि आईडीए में यह धांधली किसने की है। दरअसल जिसे अध्यक्ष धांधली बता रहे हैं, वह अपराध है। धांधली शब्द का प्रयोग उसके अपराध बोध को कम करके भ्रष्टाचार के स्ट्रोक को कम करता है। यह एक गंभीर किस्म का अपराध है और जिम्मेदारों पर अदालती मुकदमे चलना ही चाहिए।
जिस तरह का गेम खेला गया है, उसमें कोई उच्चस्तरीय मास्टर माइंड अवश्य ही होगा। उसका दुस्साहस आयोजन में देखा जा सकता है। जमीन का यह खेल मुख्यमंत्री के हाथों प्लॉट वितरण तक ही रहता तब तक तो ठीक था, कोर्ट के आदेश के बाद भी आईडीए ने प्लॉटों के साइजों को तय आठ सौ वर्ग फीट से घटा कर छह सौ वर्ग फीट कर दिया। यह हद से गुजरने वाली बात है। जिन छोटे-छोटे प्लाटों के लिए लोगों ने अपनी कमाई समर्पित की थी वे किस तरह से यह जो कुछ हो रहा है वह इंसान की राजनीति और कार्यप्रणाली है। जमीन के आसपास ही घूम रही है। क्या जमीन इंसान के पावर गेम का हिस्सा है? क्या यह सिर्फ हथियाने से हासिल होती है? देश के नागरिक जिस तरह से भ्रष्ट आचरण, धांधली और गोलमाल में लिप्त हो रहे हैं उससे लगता है कि कहीं न कहीं हर पक्ष शामिल हो जाता है।
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