वरोध के चलते मास्टर प्लान भोपाल के लोगों के खिलाफ साजिश की तरह लगने लगा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि लोगों का विरोध इस साजिश को नाकाम कर देगा।
मा स्टर प्लान का सब ओर विरोध हो रहा है। यहां तक कि भारतीय किसान संघ भी विरोध में है। अगर कोई चीज़ जनता की पसंद पर न आए तो उसे पुनर्विचार के लिए स्वीकार करना चाहिए या उस पर आ रही प्रतिक्रियाओं को गौर से सुनना चाहिए। ये बातें राजनेताओं और उनसे जुड़े योजनाकारों के लिए एक साधारण सा घटनाक्रम है। जब यही घटनाक्रम किसी शहर के लिए लागू हो और चारों तरफ से विरोध के स्वर उठ खड़े हों तो मामला फिर एक परिवार या व्यक्ति का नहीं रह जाता। भोपाल का मास्टर प्लान इस समय शहर की सबसे विवादित योजना के रूप से सामने आ चुका है। यह उसके ही रचनाकारों की नींद हराम किए है। इस नींद में सबसे अधिक खलल भोपाल के जागरूक नागरिक डाल रहे हैं। यह खलल डाला भी जाना चाहिए। यह एक शहर के जीवन मरण का सवाल है। मास्टर प्लान सदियों तक छाप छोड़ने वाली घटना होती है। एक बार लागू होने पर इसके दुष्प्रभावों को कम नहीं किया जा सकता। इसलिए क्योंकि मास्टर प्लान किसी के आंगन में परिवर्तन करने वाली बात नहीं होती। यह शहर में एक व्यापक परिवर्तन लाने वाली योजना है। शहर का विकास तो इसमें समाहित है ही, इससे शहर की संस्कृति भी जुड़ी होती है और लाखों लोगों का जीवन भी।
लोग विरोध कर रहे हैं, लेकिन नेता फिर भी क्यों नहीं सुन रहे हैं। ऐसा लगता है जैसे वे सुनना नहीं चाह रहे। लोगों का विरोध एक स्थापित सत्ता के खिलाफ है। यह उस आथारिटी के खिलाफ है जिसने इसे प्लान किया है। मास्टर प्लान के लिए अब जिस तरह से अधिकार विहीन सुनवाई चल रही है उसमें किसी परिवर्तन की उम्मीद नहीं की जा सकती। लोगों को किसी भी अतिवादी कदम के खिलाफ पूरी ताकत ने उठना ही होगा। परिवर्तन के लिए अधिकारी विहीन सुनवाई और चारों ओर हो रहे विरोध के चलते मास्टर प्लान भोपाल के लोगों के खिलाफ साजिश की तरह लगने लगा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि लोगों का विरोध इस साजिश को नाकाम कर देगा।
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