पहले अंतर्राष्ट्रीय डिजिटल पुस्तकालय पर। दुनिया भर के इंटरनेट प्रयोक्ताओं के लिए इस पुस्तकालय का औपचारिक उदघाटन गत माह फ्रांस की राजधानी पेरिस में हुआ। विभिन्न देशों की सांस्कृतिक विरासत को इंटरनेट पर उपलब्ध कराने के अंतर्राष्ट्रीय साझे प्रयास का यह अच्छा उदाहरण है।
पाठक www.wdl.org पर जाकर दुनिया की तमाम दुर्लभ पुस्तकें पढ़ सकते हैं। यह 19 देशों के पुस्तकालयों के सहयोग से साकार हुआ है। अमेरिकी कांग्रेस के वाशिंगटन स्थित पुस्तकालय और मिश्र के एलेक्जेण्ड्रिया पुस्तकालय ने मिलकर इसे विकसित किया है, और इसे यूनेस्को के पेरिस कार्यालय से लांच किया गया है। हालांकि यह ऐसा पहला अंतर्राष्ट्रीय प्रयास नहीं है। इंटरनेट सर्च इंजिन गूगल ने 2004 में ऐसा ही प्रोजेक्ट शुरू किया था। इसके अलावा यूरोपीय संघ ने नवंबर, 2008 में अपना डिजिटल पुस्तकालय शुरू किया था।
यूनेस्को के इस नये पुस्तकालय के जरिये उपयोगकर्ताओं को विश्व की सात भाषाओं में दुर्लभ पुस्तकें, मानचित्र, पाण्डुलिपियां और वीडियो मिल सकते है, और दूसरी भाषाओं में भी जानकारी उपलब्ध है। यूनेस्को के संचार और सूचना महानिदेशक अब्दुल वहीद खान कहते हैं कि इससे विश्व के देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ाने में मदद मिलेग.
बुधवार, मई 06, 2009
मंगलवार, मई 05, 2009
मेरी भाषा का गुलदस्ता
मेरी भाषा का क्या गुलदस्ता बनाओगे
मेरी भाषा के दुरूह लफ्ज कहां ले जाओगे
हरफों के बिना भाषा का मुगल गार्डन
गमलों में रोप रोप के कितना सजाओगे
रोज-रोज जो रख दिए जाते हैं बाहर
उन लफ्जों को और कितना सताओगे
माना कि कबीर ने कहा था कभी नीर
इस नीर को नदी से और कितना दूर हटाओगे
इस वक्त हर स्कूल हरा है टेम्स के पानी से
अर्थ नहीं समझते बच्चों से, आशा लगाओगे
जरा सोच के देखो-मजबूरी के नाम पर जानी
गंगा जमुना का पानी कब तक सुखाओगे
रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति,
मेरी भाषा के दुरूह लफ्ज कहां ले जाओगे
हरफों के बिना भाषा का मुगल गार्डन
गमलों में रोप रोप के कितना सजाओगे
रोज-रोज जो रख दिए जाते हैं बाहर
उन लफ्जों को और कितना सताओगे
माना कि कबीर ने कहा था कभी नीर
इस नीर को नदी से और कितना दूर हटाओगे
इस वक्त हर स्कूल हरा है टेम्स के पानी से
अर्थ नहीं समझते बच्चों से, आशा लगाओगे
जरा सोच के देखो-मजबूरी के नाम पर जानी
गंगा जमुना का पानी कब तक सुखाओगे
रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति,
सोमवार, मई 04, 2009
रविवार, मई 03, 2009
अमेरिका के अलावा मुसलमान होना
11 सितम्बर को अमेरिका के ट्विन टावर्स पर हमले के बाद रोज तालिबान और अलकायदा के खिलाफ खबरें आने लगी थीं. गली मोहल्ले मंे युवा भारत के लड़के गुटखे चबाते, सिगरेटें धोंकते, क्रिकेट की बातों अपनी देश भक्ति को मजबूत करते और पाकिस्तान को गाली दिए बिना उनकी दो रोटियां पचना मुस्किल होतीं. जब ट्विन टावर पर विमान टकराए तो भारत की गलियों के ऐसे हजारों लाखों नवयुवकोे के लिए लादेन दुनिया का सबसे बड़ा आतंकवादी हो गया. और तालिबान दुनिया का सबसे बड़ा दकियानूस संगठन. लोग न्यूज चैनलों से ऐसे चिपक गए थे जैसे ये चैनल समाचारों की सच्चाई के दूत थे. लोग रोज अनाप सनाप समाचारों को सुनते और अपने दोस्तों के घर जाकर, गली में , चाय की होटलो, गुमठियों में, यहां तक कि लोगों को धार्मिक पूजा पाठ और बाथरूम करते हुए भी लादेन तालिबान की ऐसी तैसी करते हुए खुश होते. अमेरिका के बम गिराने पर सब के सब खुशी मनाते. अक्सर सब बात करते समय यह जरूर देखते कि कहीं मुसलमान तो हमारे पास नहीं बैठे. इसके बाद ही जोरदार लादेन की लानत होती. जिसकी दुकान मुसलमान के बगल में होती या काम्पटीशन होता तो वह कहता अच्छा दुच रहे हैं. एसेइ अकल ठिकाने आएगी . यहां तो कोई भी कुछ भी बोल रहा है. यहां के मुसलमानों की कोई गारंटी नहीं कि कब वे देश से गद्दारी कर दें. सारे चैनलों की न्यूजें भारत में आकर हर मुसलमान के खिलाफ हो गई थीं . अमेरिका के सैनिक अफगानिस्तान में जमा हो चुके थे. धीरे धीरे अमेरिका अफगानिस्तान के हर कोने में फैल गय. पाकिस्तान में सैनिक उतर रहे थे. विरोध हो रहा था. अखवार जी न्यूज आज तक दूरदर्षन और बीबीसी में अफगानिस्तान और अमेरिका के बारे में बताया जा रहा था . अखबारों में विष्लेषण छप रहे थे. आतंकवादियों की पहचान बताई जा रही थी . टीवी पर न्यूज चैनल अपनी विशलेषणों को इस्लाम और ईसाइयत के संघर्ष में बदल कर बता रहे थे. घरों में छोटे छोटे अमेरिका और अफगानिस्तान बन गए थे. सब लोग इतने खुश हो रहे थे जैसे अमेरिका आतंकवाद के खिलाफ भारत का काम कर रहा हो. अदिति खीझती कि ऐसा कुछ नहीं है लेकिन पापा अपने दोस्त से कह रहे होते थे - जुमे की नमाज के बाद षहर के मुसलमानों ने कोई मीटिंग की है....यद कल जुलूस भी निकलेगा . पापा के चेहरे पर अखबारी घबराहट छाई रहती और वे अपना विष्लेषण सुनाते रहते कि हर मुसलमान अषांति पसंद और झगड़ा करने वाला और आतंकवादियों को अपना मौन सर्पोट देने वाला होता चला जा रहा है .
अदिति इससे उबती थी. उसे शामिल करके कोई इस तरह की बात नहीं करता था. कभी कभी वह बोल पड़ती तो उसका भाई कहता.
-तुमको कुछ समझ नहीं आएगा. इस पर अदिति बोल उठती
-यार तुम लोग क्यों यह नहीं सोच रहे कि ये न्यूज देने वाले अमेरिका के सरकारी किराए के लोग हैं. ये असलियत नहीं दे सकते हमें. सही बात करने के लिए हमें असलियत चाहिए. जैसी न्यूज हमारी सरकार देती है वैसी ही सरकार वो है. अमेरिकी सरकार को अपनी करतूतें छुपाना है. वह बहुत ही प्लांड तरीके से सब कुछ हमारे सामने पेश करती है. जैसे कि उसे अपने कितने सैनिक मरे और कितने घायल बताना है . कितने नागरिकों को मरे बताना है और कितने घायल.
2
एक घायल लड़के को अमेरिका की सेना बताती फिर रही है कि देखो इसके पैर और हाथ नहीं रहे फिर भी हम बचा रहे हैं. इसका इलाज कर रहे हैं. ये सरकारों का शो बिजनेश रहता है. वे एक को बता कर लाखों बीमार, भूख,े अपाहिज अनाथ, और मानसिक रूप से टूट गए नौजबान, बच्चों बूढ़ों और औरतों के बारे में क्यों कुछ खबर नहीं है. केबल राकेट मिसाइल और बमबारी का धुंआ ही क्यों दिखता है. घायल पागल बीमार परेशान अनाथ बच्चों को क्यों कोई कैमरा नहीं देख पाता ; ऐसा लगता है जैसे हम बच्चों के शरीर पर गिरते हुए बम में उसके मांस और त्वचा की चिंदी नहीं अमेरिका द्वार दिखाई जा रही फिल्म देख रहे हंै. अदिति सोलत और उसकी बहन के लिए सोचती , उनके मम्मी पापा के बारे में सोचती कि वे ऐसे नहीं हैं. क्या वह मुसलमान है इसलिए ऐसा शक है. लेकिन वह मार्डन है. नई लाइफ पसंद करने वाला लड़का है. उसने भैया से कहा था-मुझे इनमें कोई यकीन नहीं आता. भैया ने पूछा- क्या मतलब. इस पर सोलत ने कहा था- मतलब करके क्यों पूछ रहे हो. तुमको पता नहीं है कि मुझे ये कट्टरवाद और धार्मिक कर्मकांर्डों में यकीन नहीं. -अरे यार कुछ भी कह लो तुम हो तो मुसलमान. दोनों एक दूसरे की आंखों में देखने लगे. दोनों को एक दूसरे की आंखों मंे खाई दिखाई पड़ रही थी. दोनों की आंखों में अविष्वास का सन्नाटा पसरा हुआ था. उस दिन सोलत उदास होकर चला गया था. उसके जाने के बाद भैया के दोस्त विवेक ने कहा था-सारी दुनिया के मुसलमान एक सा सोचते हैं. हमारे यहां का मुसलमान जो सोच रहा है वही का वही दुनिया में कहीं भी रहने वाला मुसलमान सोचता है.
-अब यही ग्यारह सितम्बर ले लो. अपने षहर के कितने मुसलमानों ने आलोचना की कि ये हमला अच्छा नहीं . एक भी आलोचना करने वाला नहीं मिल सकता. कोई दूरदर्षिता नहीं दिखाते. अदिति दोनों की बातें सुन रही थी. उसे लग रहा था कि सोलत के रूप में उसने जो दोस्ती बनाई है वह उसे बचा भी पाएगी कि नहीं. अगर इनकी बातें सच मानूं तो सोलत मुझे इतना अच्छा क्यों लगता है. सच कुछ और है .क्यों ये धर्म के कारण यह सब सोचते चले जा रहे हैं. क्यों और ज्यादा नहीं देखते. सोचती हुई वह पापड़ सलाद और नमकीन की प्लेटें लेकर आ गई. उसने प्लेटें रखते हुए कहा- आप लोग भी कहां सच बोल रहे हो. जो उनके साथ हो रहा है वही आपके साथ हो तो आप क्या सोचेंगे ?
-क्या सोचेंगे. भैया ने दोहराया. इसका मतलब है तेरा झुकाव मुसलमानों की ओर है. वह चिल्लाने लगा हिंदुओं की लड़कियां मुसलमानों पर मरती हैं लेकिन मजाल क्या है कि मुसलमान की लड़की हिंदू से दिल लगा ले. तू इसीलिए समर्थन कर रही हैं. तू नहीं जानती है सच क्या है. और तुझे मालूम भी नहीं होगा कि सच क्या है क्योंकि तेरा अफेयर चल रहा है सोलत से इसलिए सच बदल गया है.
-हां बदल गया है. मुझे यही दिख रहा है.
-मुं मत चला अपना.
-नहीं चला रहीं. अदिति रोने लगी. नीलेष अदिति के रोने से विचलित हो गया. नीलेष ने आवाज दी - तुम यहां आओ यार. ऐसा अच्छा नहीं लगता है. भैया बाहर आ गया. अदिति आंसू पौछती जा रही थी और बरतन समेंटती जा रही थी. नीलेष उसके पास समझाने पहुंचा तो वह भड़क गई
-क्या आप मुझे बच्ची समझते हैं. आप वहीं बैठिए. नीलेष वापस चला गया. पीछे से भैया भी चला गया. दोनों के जाने के बाद अदिति कुछ देर बिस्तर पर लेटी रही. आहिस्ता से उसका हाथ फोन पर चला गया. नम्बर दबाने के बाद रिसिबर को कान पर रख लिया.
-हैलो
-हां, कल क्या हुआ मेरे आने के बाद.
-भैया ने मुझे डांटा.
- सोलत चुप रहा.
-अब मैं सोच रही हूं हमें ऐसी बातों के खिलाफ स्टेण्ड लेना चाहिए. वरना ये सब तो बढ़ता ही जाएगा. -हमें.... सोलत की धीमी आवाज अंधेरे में डूब गई.
-वैसे आपके पापा क्या स्टेण्ड ले रहे हैं.
-यहां सब मेड इन पाकिस्तान अफगानिस्तान चल रहा है. पाप से कुछ लोग कह रहे थे. घर बदल कर कुछ ठीक ठाक एरिया में ले लो. क्योंकि जुमे के दिन कुछ गदर हो गया था. बात बढ़ने वाली भी मगर ... फिर भी कुछ नहीं कह सकते. तरहा तरहा के कयास हैं. मैंने घर वालों से कहा ठीक तो हैं यहां.... अब देखो पापा क्या कहते हैं...
-तुमको विरोध करना चाहिए कि केवल डर के कारण मकान नहीं बदलंेगे . अपने पापा से कहो हमें अपनी सुरक्षा के लिए पुलिस में तो षिकायत करना ही चाहिए. दूसरे तरीकों से भी अपनी हिफाजत खुद करनी चाहिए. संघर्प करना जरूरी है. मेरा मन तो ऐसे लोगों के खिलाफ खुले आम जंग का ऐलान करने का होता है. तुम अपने लोगों से लड़ो मैं अपने लोगों से लड़ूंगी. जैसे मेरी तरपफ मेरा भाई है वैसे ही तुम्हारी तरफ भी तुम्हारे भाई भी होंगे. तब ही हम इन लोगों से जीत पाएंगे. तुमको मालूम हो सोलत कि हमारे लोग कहते हैं- हिन्दू का तो बच्चा चिल्लाता है धर्म के आधार पर भेदभाव मत करो लेकिन मुसलमानों में समझदार भी केवल मुंडी भर हिलाता है. तो मेरा कहना है सोलत कि अपन को जबान खोलना ही पड़ेगी. अदिति सोलत की आवाज सुनने के लिए हल्का सा रूकी. पर उसके कान में फोन का सन्नाटा ही पसरा रहा. कुछ सेकेंड बाद सोलत समझा और बोला -हां मैं करता हूं
-हां बिलकुल, तुमको षुरू ही कर देना चाहिए.
-हां यार.. सोलत बुदबुदाया.
-अच्छा रखें ......
-नहीं.... पहले पप्पी दो.
-लो... और अदिति ने अपने मोटे ओंठों को गुलाब की तरह गोल किया और पुप्प की आवाज रिसीवर पर छोड़ दी. सोलत ने भी वही आवाज छोड़ कर कहा-मेरा एक कहना था.
-क्या. और सोलत बोलने लगा.
यह सोलत का वही परिचित स्वर था जिसमें शादी के लिए उसकी पुरानी जिद के अलावा कुछ नहीं होता था. सोलत के आग्रह के बाद एक क्षण उत्तर देने के पहले वाली महत्वपूर्ण चुप फैल गई. अदिति ने रिसिवर की शांति तोड़ कर कहा- सोलत मैं आखरी बार कहना चाहूंगी कि शादी मेेरे जीवन का बाईप्रोडक्ट है. तुमको ये जिद नहीं करना चाहिए. तुम खुद देख रहे हो कि शादी से बड़ा काम हमारे सामने पड़ा है और तुम उसे कदम कदम पर फेस कर रहे हो. फिर भी ... टाउनहाल में एक मीटिंग है हो सके तो तुम वहां जरूर आना... सोलत को रिसिवर रखने के आवाज खडाक के अलावा बहुत देर तक कुछ भी सुनाई नहीं दिया.
रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति
अदिति इससे उबती थी. उसे शामिल करके कोई इस तरह की बात नहीं करता था. कभी कभी वह बोल पड़ती तो उसका भाई कहता.
-तुमको कुछ समझ नहीं आएगा. इस पर अदिति बोल उठती
-यार तुम लोग क्यों यह नहीं सोच रहे कि ये न्यूज देने वाले अमेरिका के सरकारी किराए के लोग हैं. ये असलियत नहीं दे सकते हमें. सही बात करने के लिए हमें असलियत चाहिए. जैसी न्यूज हमारी सरकार देती है वैसी ही सरकार वो है. अमेरिकी सरकार को अपनी करतूतें छुपाना है. वह बहुत ही प्लांड तरीके से सब कुछ हमारे सामने पेश करती है. जैसे कि उसे अपने कितने सैनिक मरे और कितने घायल बताना है . कितने नागरिकों को मरे बताना है और कितने घायल.
2
एक घायल लड़के को अमेरिका की सेना बताती फिर रही है कि देखो इसके पैर और हाथ नहीं रहे फिर भी हम बचा रहे हैं. इसका इलाज कर रहे हैं. ये सरकारों का शो बिजनेश रहता है. वे एक को बता कर लाखों बीमार, भूख,े अपाहिज अनाथ, और मानसिक रूप से टूट गए नौजबान, बच्चों बूढ़ों और औरतों के बारे में क्यों कुछ खबर नहीं है. केबल राकेट मिसाइल और बमबारी का धुंआ ही क्यों दिखता है. घायल पागल बीमार परेशान अनाथ बच्चों को क्यों कोई कैमरा नहीं देख पाता ; ऐसा लगता है जैसे हम बच्चों के शरीर पर गिरते हुए बम में उसके मांस और त्वचा की चिंदी नहीं अमेरिका द्वार दिखाई जा रही फिल्म देख रहे हंै. अदिति सोलत और उसकी बहन के लिए सोचती , उनके मम्मी पापा के बारे में सोचती कि वे ऐसे नहीं हैं. क्या वह मुसलमान है इसलिए ऐसा शक है. लेकिन वह मार्डन है. नई लाइफ पसंद करने वाला लड़का है. उसने भैया से कहा था-मुझे इनमें कोई यकीन नहीं आता. भैया ने पूछा- क्या मतलब. इस पर सोलत ने कहा था- मतलब करके क्यों पूछ रहे हो. तुमको पता नहीं है कि मुझे ये कट्टरवाद और धार्मिक कर्मकांर्डों में यकीन नहीं. -अरे यार कुछ भी कह लो तुम हो तो मुसलमान. दोनों एक दूसरे की आंखों में देखने लगे. दोनों को एक दूसरे की आंखों मंे खाई दिखाई पड़ रही थी. दोनों की आंखों में अविष्वास का सन्नाटा पसरा हुआ था. उस दिन सोलत उदास होकर चला गया था. उसके जाने के बाद भैया के दोस्त विवेक ने कहा था-सारी दुनिया के मुसलमान एक सा सोचते हैं. हमारे यहां का मुसलमान जो सोच रहा है वही का वही दुनिया में कहीं भी रहने वाला मुसलमान सोचता है.
-अब यही ग्यारह सितम्बर ले लो. अपने षहर के कितने मुसलमानों ने आलोचना की कि ये हमला अच्छा नहीं . एक भी आलोचना करने वाला नहीं मिल सकता. कोई दूरदर्षिता नहीं दिखाते. अदिति दोनों की बातें सुन रही थी. उसे लग रहा था कि सोलत के रूप में उसने जो दोस्ती बनाई है वह उसे बचा भी पाएगी कि नहीं. अगर इनकी बातें सच मानूं तो सोलत मुझे इतना अच्छा क्यों लगता है. सच कुछ और है .क्यों ये धर्म के कारण यह सब सोचते चले जा रहे हैं. क्यों और ज्यादा नहीं देखते. सोचती हुई वह पापड़ सलाद और नमकीन की प्लेटें लेकर आ गई. उसने प्लेटें रखते हुए कहा- आप लोग भी कहां सच बोल रहे हो. जो उनके साथ हो रहा है वही आपके साथ हो तो आप क्या सोचेंगे ?
-क्या सोचेंगे. भैया ने दोहराया. इसका मतलब है तेरा झुकाव मुसलमानों की ओर है. वह चिल्लाने लगा हिंदुओं की लड़कियां मुसलमानों पर मरती हैं लेकिन मजाल क्या है कि मुसलमान की लड़की हिंदू से दिल लगा ले. तू इसीलिए समर्थन कर रही हैं. तू नहीं जानती है सच क्या है. और तुझे मालूम भी नहीं होगा कि सच क्या है क्योंकि तेरा अफेयर चल रहा है सोलत से इसलिए सच बदल गया है.
-हां बदल गया है. मुझे यही दिख रहा है.
-मुं मत चला अपना.
-नहीं चला रहीं. अदिति रोने लगी. नीलेष अदिति के रोने से विचलित हो गया. नीलेष ने आवाज दी - तुम यहां आओ यार. ऐसा अच्छा नहीं लगता है. भैया बाहर आ गया. अदिति आंसू पौछती जा रही थी और बरतन समेंटती जा रही थी. नीलेष उसके पास समझाने पहुंचा तो वह भड़क गई
-क्या आप मुझे बच्ची समझते हैं. आप वहीं बैठिए. नीलेष वापस चला गया. पीछे से भैया भी चला गया. दोनों के जाने के बाद अदिति कुछ देर बिस्तर पर लेटी रही. आहिस्ता से उसका हाथ फोन पर चला गया. नम्बर दबाने के बाद रिसिबर को कान पर रख लिया.
-हैलो
-हां, कल क्या हुआ मेरे आने के बाद.
-भैया ने मुझे डांटा.
- सोलत चुप रहा.
-अब मैं सोच रही हूं हमें ऐसी बातों के खिलाफ स्टेण्ड लेना चाहिए. वरना ये सब तो बढ़ता ही जाएगा. -हमें.... सोलत की धीमी आवाज अंधेरे में डूब गई.
-वैसे आपके पापा क्या स्टेण्ड ले रहे हैं.
-यहां सब मेड इन पाकिस्तान अफगानिस्तान चल रहा है. पाप से कुछ लोग कह रहे थे. घर बदल कर कुछ ठीक ठाक एरिया में ले लो. क्योंकि जुमे के दिन कुछ गदर हो गया था. बात बढ़ने वाली भी मगर ... फिर भी कुछ नहीं कह सकते. तरहा तरहा के कयास हैं. मैंने घर वालों से कहा ठीक तो हैं यहां.... अब देखो पापा क्या कहते हैं...
-तुमको विरोध करना चाहिए कि केवल डर के कारण मकान नहीं बदलंेगे . अपने पापा से कहो हमें अपनी सुरक्षा के लिए पुलिस में तो षिकायत करना ही चाहिए. दूसरे तरीकों से भी अपनी हिफाजत खुद करनी चाहिए. संघर्प करना जरूरी है. मेरा मन तो ऐसे लोगों के खिलाफ खुले आम जंग का ऐलान करने का होता है. तुम अपने लोगों से लड़ो मैं अपने लोगों से लड़ूंगी. जैसे मेरी तरपफ मेरा भाई है वैसे ही तुम्हारी तरफ भी तुम्हारे भाई भी होंगे. तब ही हम इन लोगों से जीत पाएंगे. तुमको मालूम हो सोलत कि हमारे लोग कहते हैं- हिन्दू का तो बच्चा चिल्लाता है धर्म के आधार पर भेदभाव मत करो लेकिन मुसलमानों में समझदार भी केवल मुंडी भर हिलाता है. तो मेरा कहना है सोलत कि अपन को जबान खोलना ही पड़ेगी. अदिति सोलत की आवाज सुनने के लिए हल्का सा रूकी. पर उसके कान में फोन का सन्नाटा ही पसरा रहा. कुछ सेकेंड बाद सोलत समझा और बोला -हां मैं करता हूं
-हां बिलकुल, तुमको षुरू ही कर देना चाहिए.
-हां यार.. सोलत बुदबुदाया.
-अच्छा रखें ......
-नहीं.... पहले पप्पी दो.
-लो... और अदिति ने अपने मोटे ओंठों को गुलाब की तरह गोल किया और पुप्प की आवाज रिसीवर पर छोड़ दी. सोलत ने भी वही आवाज छोड़ कर कहा-मेरा एक कहना था.
-क्या. और सोलत बोलने लगा.
यह सोलत का वही परिचित स्वर था जिसमें शादी के लिए उसकी पुरानी जिद के अलावा कुछ नहीं होता था. सोलत के आग्रह के बाद एक क्षण उत्तर देने के पहले वाली महत्वपूर्ण चुप फैल गई. अदिति ने रिसिवर की शांति तोड़ कर कहा- सोलत मैं आखरी बार कहना चाहूंगी कि शादी मेेरे जीवन का बाईप्रोडक्ट है. तुमको ये जिद नहीं करना चाहिए. तुम खुद देख रहे हो कि शादी से बड़ा काम हमारे सामने पड़ा है और तुम उसे कदम कदम पर फेस कर रहे हो. फिर भी ... टाउनहाल में एक मीटिंग है हो सके तो तुम वहां जरूर आना... सोलत को रिसिवर रखने के आवाज खडाक के अलावा बहुत देर तक कुछ भी सुनाई नहीं दिया.
रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति
शुक्रवार, मई 01, 2009
चीजों की बहती नदी
(यह कविता तब लिखी थी जब मेरा पेमेंट कम था और मै एक बड़े मॉल के सामने से गुजर रहा था । आशा है आप भी कुछ कविता के बारे मै कहेंगे। धन्यबाद सहित । )
बाजार ! मैं आक्रांत नहीं हूं इस शब्द से
मैं परेशान नहीं हूं कि इसमें सब कुछ मिलता है
शापिंग मालों को देख कर मेरे मन में कुछ नहीं आता
मेरे मन में नहीं चमकती चीजें विज्ञापन की तरह
मैं यूं ही देखता निकल जाता हूं सब कुछ
थोड़ा आगे निकल कर अजीब सा लगता है
प्लास्टिक और धातु दूसरे पदार्थों से बना सामान
चुम्बकीय तरीके से पीछे खिचुड़ता चला आ रहा है
मैं डरता हूं ऐसा क्या है मुझमें
पूरा बाजार पीछे क्यों आ रहा है
मैं अपनी पे पर हाथ रखता और परेशान होता
बाजार आंखों के सामने चीजों के जहाज की तरह बहता हुआ
खाली पाउच की तरह किनारे करता मुझे
मुझसे आगे निकलने के लिए चमकीली लहरें पैदा करता
सड़क चीजों की रंगीन नदी की तरह चमकती
मुझे इसकी चमक में चीजों का बाजार दिखता
जो मीलों लम्बे चीजों के बांध से जुड़ा है
मेरा मतलब यह बांध चीजों के महाद्वीपों से जुड़ा होगा
उसी समय मेरे मन में आता है -
इन समुद्रों और महाद्वीपों का पानी मेरे बच्चों के कपड़े सूखने
मुंह धोने और ठण्डे होते चावलों की भाप से बना हुआ होगा
सिंचाई का पानी और खेतों में फसलों के सूखने से
कारखानों और बसों में पसीना बनने और सूखने पर
उड़ी भाप से सभी बाजार जुड़े होंगे
मिनी बसों में चढ़ते उतरते मैंने
दुनिया के बाजारों का नेटवर्क खोज लिया
मैं खुश था कि एक रहस्य का पता लगा लिया है
कुछ ही देर में रहस्य माल की बाउंड्री की तरह दिखने लगा
एक रहस्य का खुलना दूसरे का जन्म देना हो गया
पागल और चकराए व्यक्ति की तरह सोचते हुए
मैं अपने स्टाप पर उतर रहा था
मैं गली के मुहाने पर आया
मुझे अपना घर दिखा और थोड़ा होश आया
पीछे चली आ रही चीजें आ ही गईं तो
मेरे एक कमरे और एक किचिन वाले घर का क्या होगा
सोचने लगा शायद एक दूसरे पर चढ़ जाएंगी
और मेरा घर चीजों के पहाड़ में खो रहा होगा
अब मैंने मुड़ कर देखना जरूरी समझा और जैसे ही देखा
चीजें हड़बड़ा कर होर्डिंग पर चली गईं कुछ दुकानों में जा भरीं
कुछ पोस्टरों और विज्ञापनों में चित्र बन गईं
कुछ को मैंने अखबारों में चिपकते और छुपते हुए देखा
कुछ पालीथीन बन कर मेरे ही पैरों में उड़ने लगीं .....
रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति
111, आर एम पी नगर ,
विदिशा (म.प्र.)
बाजार ! मैं आक्रांत नहीं हूं इस शब्द से
मैं परेशान नहीं हूं कि इसमें सब कुछ मिलता है
शापिंग मालों को देख कर मेरे मन में कुछ नहीं आता
मेरे मन में नहीं चमकती चीजें विज्ञापन की तरह
मैं यूं ही देखता निकल जाता हूं सब कुछ
थोड़ा आगे निकल कर अजीब सा लगता है
प्लास्टिक और धातु दूसरे पदार्थों से बना सामान
चुम्बकीय तरीके से पीछे खिचुड़ता चला आ रहा है
मैं डरता हूं ऐसा क्या है मुझमें
पूरा बाजार पीछे क्यों आ रहा है
मैं अपनी पे पर हाथ रखता और परेशान होता
बाजार आंखों के सामने चीजों के जहाज की तरह बहता हुआ
खाली पाउच की तरह किनारे करता मुझे
मुझसे आगे निकलने के लिए चमकीली लहरें पैदा करता
सड़क चीजों की रंगीन नदी की तरह चमकती
मुझे इसकी चमक में चीजों का बाजार दिखता
जो मीलों लम्बे चीजों के बांध से जुड़ा है
मेरा मतलब यह बांध चीजों के महाद्वीपों से जुड़ा होगा
उसी समय मेरे मन में आता है -
इन समुद्रों और महाद्वीपों का पानी मेरे बच्चों के कपड़े सूखने
मुंह धोने और ठण्डे होते चावलों की भाप से बना हुआ होगा
सिंचाई का पानी और खेतों में फसलों के सूखने से
कारखानों और बसों में पसीना बनने और सूखने पर
उड़ी भाप से सभी बाजार जुड़े होंगे
मिनी बसों में चढ़ते उतरते मैंने
दुनिया के बाजारों का नेटवर्क खोज लिया
मैं खुश था कि एक रहस्य का पता लगा लिया है
कुछ ही देर में रहस्य माल की बाउंड्री की तरह दिखने लगा
एक रहस्य का खुलना दूसरे का जन्म देना हो गया
पागल और चकराए व्यक्ति की तरह सोचते हुए
मैं अपने स्टाप पर उतर रहा था
मैं गली के मुहाने पर आया
मुझे अपना घर दिखा और थोड़ा होश आया
पीछे चली आ रही चीजें आ ही गईं तो
मेरे एक कमरे और एक किचिन वाले घर का क्या होगा
सोचने लगा शायद एक दूसरे पर चढ़ जाएंगी
और मेरा घर चीजों के पहाड़ में खो रहा होगा
अब मैंने मुड़ कर देखना जरूरी समझा और जैसे ही देखा
चीजें हड़बड़ा कर होर्डिंग पर चली गईं कुछ दुकानों में जा भरीं
कुछ पोस्टरों और विज्ञापनों में चित्र बन गईं
कुछ को मैंने अखबारों में चिपकते और छुपते हुए देखा
कुछ पालीथीन बन कर मेरे ही पैरों में उड़ने लगीं .....
रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति
111, आर एम पी नगर ,
विदिशा (म.प्र.)
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