रविवार, अक्तूबर 27, 2013

  कैसे जानेंगे नेता गरीबी

गरीबी आर्थिक मजबूरी है और ऐसा दुष्चक्र है जो एक से दूसरी पीढ़ी तक चलता रहता है। क्या राहुल जानते हैं प्याज क्यों 100 रुपए किलो है। गरीबों के लिए सबसे मुफीद सब्जियां भी 60 रुपए किलो हैं।



म  ध्यप्रदेश के
देश की राजनैतिक व्यवस्था के लिए बने दल देश के लिए दलदल हो गए? शायद इसलिए कि देश की अल्पज्ञानी सामान्य जनता ने उनको परखने की कोई कसौटी निर्धारित नहीं की, नेतृत्व प्रतिभा हमारे विकास की प्राथमिकता में नहीं रहे। देश की 70 प्रतिशत जनता किसान है या खेती पर निर्भर है। नेतृत्व को उन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। खेती-किसानी का यह संकट बहुत गहरा और बुनियादी है। बड़ी तादाद में किसानों की आत्महत्याओं में भी यह दिखाई देता है। सरकारी आंकड़ों पर ही गौर करें, तो वर्ष 1995 से लेकर 2011 तक इस देश में लगभग दो लाख 71 हजार किसान खुदकुशी कर चुके हैं। यानी हर साल औसतन 16 हजार किसान आत्महत्या कर रहे हैं। रोज 44 किसान देश के किसी न किसी कोने में आत्महत्या करते हैं। विडंबना यह है कि खेती और किसानों के गहराते संकट के बावजूद उन आर्थिक नीतियों और विकास के उस मॉडल को लेकर कोई पुनर्विचार नहीं हो रहा है, जिनके कारण यह संकट पैदा हुआ है। बल्कि सरकार आंख मूंदकर उसी रास्ते पर आगे बढ़ने पर आमादा है।
गरीबी का अर्थ है समाज में अधिक बेरोजगारी होना। हम देश को विकसित और अंतरराष्ट्रीय नेतृत्व की ओर ले जा रहे हैं या गरीबी-गरीबी का जाप करने के लिए चुनाव लड़ते हैं? अपने समाज के यथार्थ से दूर पश्चिम प्रेरित नीतियों कि वजह से देश का यह आलम है कि देश के बेरोजगारों का एक बहुत बड़ा वर्ग लगभग निष्क्रिय हो गया है। गांवों में गरीबी पसरी है और हमारे नेता उसे देखने जा रहे हैं। क्या गरीबी देखने की चीज है। साठ साल से राजनेता यह देख रहे हैं लेकिन किसी के पास ऐसी दूरदर्शी योजना नहीं है जो गरीबों का वास्तविक भला कर सके। चुनावी मौसम में गरीबी देखना और दिन-रात देश के लिए सोचना दो अलग चीजें हैं। आज देश को दूरदशर््िाता से परिपूर्ण नीतियों की दरकार है।
सागर से लगभग चालीस किलोमीटर दूर राहतगढ़ में कांग्रेस की सत्ता परिवर्तन रैली को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि गांव के भोजन और पानी से उनका पेट खराब हो गया, लेकिन उन्हें अच्छा लगा।  नेताओं को पता होना चाहिए कि गांवों में क्या हो रहा है। कितनी गरीबी है। राहुल ने यह भी कहा कि मच्छरों ने उन्हें बेहद काटा, लेकिन गरीब के यहां रहकर उन्हें पता चला कि गांव के लोग किस तरह का जीवन जीते हैं और वास्तविक भारत यही है। अधिक से अधिक नेता इस तरह गांवों में जाएं और वहां के जीवन की वास्तविकता जानें। राहुले के ये विचार अपने आप में सही हैं लेकिन देश के नागरिकों की समस्याओं के समाधान के लिए पर्याप्त नहीं हैं। भारत की वास्तविकता को जानने के लिए चुनाव क्षेत्रों में ही नहीं, कहीं भी जाया जा सकता है। यह जानना भी जरूरी है कि कोई गरीब क्यों है? क्यों आज गांव पिछड़े हैं? देश का राजनीतिक नेतृत्व लोगों को रोजगार और उनकी आजीविका के साधनों को सुनिश्चित कर सका? क्यों हर चुनाव में बार-बार गरीबी की बात करनी होती है? क्या गरीबी से आगे की बात नहीं की जानी चाहिए?

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