निजी तौर पर ब्याज पर नकद रकम देना और फिर उसका चार गुना वसूल करना, गांव कस्बों से लेकर प्रदेश की राजधानी में
शोषण का यह कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है।
म ध्यप्रदेश के भोपाल में एक व्यक्ति ने सूदखोरों से परेशान होकर रेलवे ट्रैक पर कूद कर आत्म हत्या कर ली। यह एक सामान्य सी खबर हो सकती है लेकिन इसके पीछे सूदखोरी का दुष्चक्र दिखाई दे रहा है। भोपाल जैसे शहरों में जो हालात हैं वह बेहद भयानक हैं। सूदखोरी ने हजारों लोखों परिवारों का जीन दुस्वार कर दिया है। आजादी से पहले सूदखोरी की प्रथा को प्रेमचंद ने भारतीयों के लिए नरक निरूपित किया था। इसमें गिरने के बाद शायद ही कोई एक दो पीढ़ी तक उबर पाता हो। आज पीढ़ी नहीं लेकिन राज्य के गली कूचों में फैले सूदखोरों द्वारा इनता शोषण किया जा रहा है कि लोगों का पूरा जीवन नरक बन जाता है। गलियों में, झुग्गियों में पलने वाले सूदखोरों ने एक समानांतर पैसे को ब्याज पर देने और उगाहने की क्रूर व्यवस्था बना रखी है। इस व्यवस्था में केवल शराबी, सट्टेबाज और आलसी ही नहीं हैं। बल्कि वे लोग अधिक हैं जो रोज कमाते खाते हैं। निम्न मध्यमवर्ग की बस्ती की हर गली में एक हजार दो हजार पांच हजार दस हजार देने वाले लोग मिल जाएंगे। इनका ब्याज सौ रुपए पर बीस तीस या चालीस रूपए प्रति माह होता है। कई दफा तो सीधा दोगुना भी। इस वेआवाज शोषण के दुष्चक्र में उन लोगों की तादाद अधिक है जो गांव से आकर बसे हैं। मजदूरी और मामूली नौकरी से अपना जीवन बसर करते हैं। रोज का धंधा करने वाले, रेहड़ी, ठेला आदि पर कारोबार करने वाले लोगा अक्सर दो चार हजार रुपए इसी तरह ब्याज पर रुपया लेकर अपना धंधा करते हैं। जब समय पर नहीं चुका पाते तो उनका ब्याज भी मूलधन में बदल जाता है और उनको एक साल में पांच हजार रुपए के बदले पच्चीस हजार भी चुकाना होते हैं। नहीं चुकाने पर धमकी, प्रताड़ना, जबरन वसूली, मारपीट के माध्यम से प्रताड़ित किया जाता है। जो लोग इस तरह सूदखोरी का शिकार होते हैं, वे गरीब और कमजोर तबकों के होते हैं और कई बार उनके परिवार को भी नहीं पता होता कि इतने ऊंचे ब्याज पर कर्ज लिया है।
इस मामले में प्रशासन और पुलिस की भूमिका बहुत कारगर नहीं है। सूदखोर अपने पैसे की दम पर धमकी और मारपीट को थाने तक पहुंचने ही नहीं देता है। ऐसे भी देखने में आया है कि पुलिस के सिपाही धन उगाही में सूदखोरों का सहयोग करते हैं। कई लोगों को पता नहीं रहता कि सूदखोरी भी एक अपराध है। सूदखोरी को उजागर करना, लोगों को इस मामले संवेदनशील बनाना जरूरी है। ब्याज सप्ताहिक 10 प्रतिशत है। याने प्रतिमाह 40 प्रतिशत और वार्शिक 480 प्रतिशत, जिसके तहत कर्ज में सिर्फ पैसा ही लगाया जाता है। जो सबसे खतरनाक है। इसके तहत कर्ज के बदले महाजन के पास जेवर, जमीन व मवेशी रखा जाता है। इसमें सबसे क्रूर बात यह है कि जेवर, जमीन व मवेशी की कीमत वास्तविक मूल्य से 400 फिसदी कम निर्धारित होती है तथा निर्धारित समय पर कर्ज वापस नहीं करने की स्थिति में जेवर, जमीन व मवेशी महाजन का हो जाता है। अधिकांश मामलों में कर्ज वापस नहीं होता है। इस तरह से समाज का एक बडा तबका कर्ज का जीवन जीता है और महाजन इसका लाभ उठाते ह तथा प्रशासन सिर्फ मूकदर्शक बना रहता है। सरकार ने कानून बनाकर सूदखोरी पर रोक लगा रखी है। उल्लंघन पर सजा का भी प्रावधान है। लेकिन पर्याप्त बैंकिंग सुविधाओं के अभाव में बहुत से लोग साहूकारों के चंगुल में फंस कर कर्ज के भंवर जाल में फंस रहे हैं। कई तो मौत को गले लगाने मजबूर हो रहे हैं।
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