सोमवार, फ़रवरी 11, 2013

आज का दर्शक बहुत जागरुक हो चुका है।

पीपुल्स लाइव फिल्म सिटी में चल रही फिल्म सिंह साहब दि ग्रेट की शूटिंग में फिल्म इंडस्ट्री के जानेमाने कलाकार अपने किरदार को अंजाम दे रहे हैं। जब तक फिल्म की शूटिंग चलेगी तब तक आई एम भोपाल आपको फिल्म के कलाकारों से बातचीत प्रस्तुत करता रहेगा। फिल्म में वे एक विलेन के रूप में अपना किरदार निभा रहे हैं। इंडस्ट्रीज में अपने अभिनय की पहचान बना चुके अमित बहल से रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति की बातचीत।

आप कई सालों से फिल्म एवं टीवी इंडस्ट्रीज में सक्रिय हैं। पिछले दस सालों में क्या चेंज आया है?

आज का दर्शक बहुत जागरुक हो चुका है। वह पब्लिसिटी और रियलिटी दोनों में फर्क करना जान चुका है। पहले एक हीरो की दम पर फिल्म चल जाती थी। लेकिन आज यह संभव नहीं है। आज का दर्शक इंटरनेट, टीवी, न्यूजपेपर्स और मैगजींस से सब जान लेता है। अगर कोई चीज से उसे नहीं पचती है तो वह तत्काल रिएक्ट करता है।
आज फिल्मों में मुंबई से बाहर निकल रही हैं। फिल्म में कई तरीके सफलता के लिए आजमाए जाते हैं, सफलता के मूलतत्व क्या हैं?
आर्थिक आधार पर फिल्म की सफलता को तीन चीजों से आंका जाता है, कितने दिन चली, कितने लोगों ने देखा, इकनोमिकली बेस्ड जो सफलता है वह ये है। आज कल सौ करोड़ के क्लब का हाइफ भी बना है। दूसरी तरफ हमारे पास सत्यजीत रे, विमल राय आदि हैं जिनकी फिल्में कभी इकनोमिकली सफल नहीं रहीं। आज हमारे पास इम्तियाज अली जैसे फिल्मकार भी हैं जो सफलता को नए अर्थ दे रहे हैं। जो भी हम करें उसमें ईमानदारी होना बहुत जरूरी है। ये काम की सफलता का सबसे बड़ा आधार है।
आप नाटकों से आए हैं इब्राहिम अल्का के साथ काम किया है आज के हिन्दी नाटकों के बारे में  क्या कहना चाहेंगे? क्या आज भी आप नाटक करते हैं?
नाटकों में मराठी का अपना नाटक था, बंगला का अपना संस्कार है लेकिन हिंदी का कोई माईबाप नहीं था। आज हिंदी नाटक नए अंदाज में सामने आ रहे हंै। नए नए प्ले राईटर आ रहे हैं। अनुवाद बहुत हो रहा है। इससे भी अच्छे नाटक हिंदी में आ रहे हैं। दायरा फैला है। रतन थियम का थियेटर भोपाल में हुआ ही था। राजीव वर्मा, संजय मेहता, ब व कारंत, आलोक चटर्जी आदि यहां हैं। इनसे हिंदी नाटकों को पहचान मिल रही हैं।

आज फिल्में भोपाल में बन रही हैं, लखनऊ और दिल्ली में शूट हो रही हैं? ये चैंज कैसे आया?

यह एक प्रकार का डिसेंट्रलाइजेशन है। यह जरूरी होता है। आज देश के कई बड़े शहरों में प्रोडक्शन की सुविधाएं उपलब्ध हैं। पहले ये सब नहीं होने से बाहर शूटिंग की जाती थी। किसी समय वैनिटी वैन को मुंबई से ही लाया जाता था लेकिन आज वह कई जगह मिल उपलब्ध हो रही है।
इससे एक फायदा ये हु आ है कि हम अपने ही देश को नए नजरिये से देख रहे हैं। छत्तीसगढ़ की शूटिंग के दौरान देखकर आश्चर्य होता था, हम इस मामले में बहुत रिच हैं। आज 100 साल भी लगातार फिल्में बनें तो शूटिंग की कमी नहीं होगी।

1 टिप्पणी:

नवराही ने कहा…

अच्‍छी बातचीत।