सचिन का संन्यास
इसमें कोई दो राय नहीं है कि सचिन महान क्रिकेटर हैं लेकिन उम्र की अपनी सीमा होती है। नए क्रिकेटरों की ऊर्जा के आगे सचिन का खेल फीका होता जाएगा।
स चिन तेंदुलकर ने मार्च में कहा था कि वह इस बात से सहमत नहीं हैं कि खिलाड़ी को करियर की ऊंचाई पर खेल से संन्यास लेना चाहिए, उनके अनुसार ऐसा करना खुदगर्जी है। मैं तब तक खेलना चाहता हूं जब तक देश के लिए खेलने का जज्बा बरकरार है। सचिन के ये विचार अपने आप में महत्वपूर्ण हैं लेकिन इस दुनिया में जो क्रिकेट हो रहा है वह सिर्फ जब्बे के साथ नहीं, जीत को भी सलाम करने वाला है। लेकिन आज सचिन का फार्म खराब चल रहा है तो सवाल भी उठ रहे हैं कि उनका औसत रन रेट दोनों टेस्ट मैचों में 10 से भी कम रहा है। सचिन तेंदुलकर ने टेस्ट मैचों में पिछली 27 पारियों में कोई शतक नहीं बनाया है। तुरत फुरत क्रिकेट की शौकीन युवा पीढ़ी सिर्फ जीत को देखना चाहती है। अधिकांश खेल प्रेमियों को खेल से कम, जीत से सरोकार होता है ताकि वह कुछ जश्न मना सकें। सचिन से बार बार निराशा मिलने से टीम इंडिया के प्रशंसक बेहद खीझ गए थे। अब सचिन की नाकामी चर्चा का विषय भी बन गई है और यहीं से उनका भविष्य संन्यास की राह पर जाने वाला हो सकता है। मंगलवार को इंग्लैंड दौरे के लिए दोनों टेस्ट के लिए टीम घोषित होना थीं लेकिन चयनकर्ताओं ने सिर्फ एक टीम की घोषणा की है। जब सचिन इस टेस्ट में खुद को साबित करेंगे तब उनके लिए अगले टेस्ट के रास्ते का फाटक खुलेगा। खबरें आई थीं कि सचिन ने चयन कर्ताओं से कोई बातचीत की है। हालांकि भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड (बीसीसीआई) ने दावा किया है कि टीम इंडिया के सीनियर बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर की खराब फॉर्म के चलते राष्ट्रीय चयनकर्ताओं से हुई किसी बातचीत के बारे में उसे कुछ नहीं पता है। लेकिन सचिन ने सार्वजनिक तौर से स्वीकार किया है कि उनका मेरा फॉर्म काफी खराब चल रहा है और वह टीम इंडिया के लिए उतना योगदान नहीं दे पा रहे हैं जितना कि उन्हें देना चाहिए। इंग्लैंड के लिए जो भी टीम चुनी जाती है, वह उन्हें स्वीकार होगी। इससे संभावना को बल मिलता है कि उन्होंने चयनकर्ताओं से कोई बात की होगी। यहां अपने खराब फॉर्म की बात भी उन्होंने स्वीकार कर ली है। सचिन ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 23 वर्ष पूरे कर लिए हैं लेकिन दो दिन पहले यहां इंग्लैंड के खिलाफ भारत को 10 विकेट से मिली करारी शिकस्त के बाद उनकी आलोचना अधिक हो रही है।
वैसे सचिन तेंदुलकर दुनिया के एकमात्र बल्लेबाज हैं, जिन्होंने 100 अंतरराष्ट्रीय शतक जड़े हैं और उनके नाम टेस्ट और वन-डे में सबसे ज्यादा रन बनाने तथा इन दोनों प्रारूपों में सबसे ज्यादा शतक बनाने के भी रिकॉर्ड दर्ज हैं, लेकिन उनकी खराब फॉर्म जनवरी में सिडनी टेस्ट से जारी है। वह पिछले चार घरेलू टेस्ट मैचों में पांच बार बोल्ड या पगबाधा आउट हुए हैं, जिसने विशेषज्ञों को यह कहने पर बाध्य कर दिया है कि उनके रिफ्लेक्सेस धीमे हो गए हैं, क्योंकि वह 40 वर्ष की उम्र की ओर बढ़ रहे हैं। इसके बाद भी सचिन का खेल सदियों तक याद रहेगा। शिखर को छूने के बाद ढलान भी आता है। सचिन को जल्दी अपनी उम्र के बंधन को स्वीकार कर लेना चाहिए।
गुरुवार, नवंबर 29, 2012
बुधवार, नवंबर 28, 2012
रिहाई की राजनीति
अपराध को नियंत्रित करना और समाप्त करना शासन की प्राथमिकता होती है। लेकिन कई फैसले जब शासन लेता है तो उसके राजनीतिक प्रभावों को नकारा नहीं जा सकता।
मध्यप्रदेश सरकार ने तीन साल से कम साजा पाने वाले अपराधियों को रिहा करने का निर्णय लिया है। गृह मंत्रालय ने जिलों के लिए इस आशय का परिपत्र जारी कर दिया है। सरकार के इस फैसले का स्वागत किया जा सकता है, बशर्ते कि इसका दुरुपयोग न हो। हर ऐसे फैसले के साथ कुछ आशंकाएं जुड़ी होती हैं। सरकार जिन लोगों को विमुक्त करेगी जो सामान्य धाराओं के तहत जेल में हैं। जैसे आदिवासियों को 49 लीटर शराब जप्ती के प्रकरण हैं इससे कई आदिवासी रिहा होंगे क्योंकि आदिवासी समाज में शराब सामान्य पेय है जिसे वे सदियों से बनाते और पीते आ रहे हैं, उन पर नागर समाज के फैसलों को थोपना उचित की श्रेणी में नहीं कहा जा सकता। यहां सबसे बड़ी बात यह होगी जब सरकार रिहा किए गए अपराधियों में यह भाव पैदा करे कि वे पुन: अपराध के लिए नहीं छोड़े गए हैं। उन्हें मेहनती जीवन जीने के लिए रिहा किया गया है। चाहे तो सरकार इसके लिए उनको सामान्य प्रशिक्षण दिलवा सकती है। सामान्य: अपराध मनोविज्ञान और सामाजिक मान्यता है कि कोई भी व्यक्ति जन्म से अपराधी नहीं होता बल्कि कई बार हालात और कई बार अनजाने में लोग अपराध की राह पर चले जाते हैं। लेकिन यहां मामला दूसरा है। सामान्यतौर पर ये अपराध के गंभीर मामले नहीं हैं। अपराध की परिभाषा भिन्न-भिन्न रूपों में की गई है, जैसे- समाज द्वारा निर्धारित आचरण का उल्लंघन या उसकी अवहेलना अपराध है या किसी व्यक्ति की क्रिया या क्रिया में त्रुटि है, जिसके लिए दोषी को कानून द्वारा निर्धारित दंड दिया जाता है। अपराध करना एक सामाजिक समस्या है। इस पर कानूनी नियंत्रण तब होता है जब वह हो जाता है लेकिन पहले अपराध का जन्म मन-मष्तिस्क में होता है।
जाने-अनजाने में अपराध करने वालों से नफरत करने के बजाए उनकी मूल समस्या का अध्ययन करके उसके समाधान का प्रयास किया जाना चाहिए और सही मार्गदर्शन से इस तरह के लोग आसानी से मुख्य धारा में शामिल होते रहे हैं। अपराध की परिभाषाओं के अनुसार किसी व्यवस्था के बनाए नियमों का उल्लंघन कर यदि कोई रात में बिना बत्ती जलाए मोटर साइकिल पर नगर की सड़क पर चले अथवा बिना पर्याप्त कारण के ट्रेन की जंजीर खींचकर गाड़ी खड़ी कर दे, तो वह भी उसी प्रकार दोषी माना जाएगा, जिस तरह किसी की हत्या करने पर। किंतु साधारण अर्थ में लोग दंडाभियोग को हत्या, डकैती आदि गंभीर अपराधों के पर्याय के रूप में ही लेते हैं। लेकिन सरकार के इस फैसले को सामान्य नहीं कहा जा सकता। इसमें सामाजिक कल्याण की भावना निहित है तो दूसरी तरफ यह चुनावों में मतदाताओं को रिझाने का उपक्रम भी माना जा सकता है। ये सारे निर्णय सरकार की राजनीतिक दूरदर्शिता का परिणाम हो सकते हैं। लेकिन उद्देश्य का पवित्र होना ही महत्वपूर्ण होता है। इससे सरकार में विश्वास कायम होगा और छोटे मोटे अपराधी भी एक सामान्य जीवन जीने की कोशिश करेंगे। लेकिन सरकार को रिहा किए जा लोगों से यह विश्वास हासिल करना होगा।
मंगलवार, नवंबर 06, 2012
ए आर रहमान: आवाज की रहमत से गूंजेगा भोपाल
अल्लाह रक्खा रहमान हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध संगीतकार हैं। ए. आर. रहमान ऐसे पहले भारतीय हैं जिन्हें ब्रिटिश भारतीय फिल्म स्लम डॉग मिलेनियर में उनके संगीत के लिए तीन आॅस्कर नामांकन हासिल हुआ है। इसी फिल्म के गीत जय हो.. के लिए सर्वश्रेष्ठ साउंडट्रैक कंपाइलेशन और सर्वश्रेष्ठ फिल्मी गीत की श्रेणी में दो ग्रैमी पुरस्कार मिले।
6 जनवरी 1967 को चैन्ने तमिलनाडु में जन्मे। जन्म के समय उनका नाम ए. एस. दिलीप कुमार था जिसे किशोरावस्था में बदलकर वे ए. आर. रहमान बने। सुरों के बादशाह रहमान ने हिंदी के अलावा अन्य भाषाओं की फिल्मों में भी संगीत दिया है। टाइम्स पत्रिका ने उन्हें मोजार्ट आॅफ मद्रास की उपाधि दी। रहमान गोल्डन ग्लोब अवॉर्ड से सम्मानित होने वाले वे पहले भारतीय हैं।
विरासत में संगीत
रहमान को संगीत अपने पिता से विरासत में मिला था। उनके पिता आर. के. शेखर मलयाली फिÞल्मों में संगीत देते थे। रहमान जब नौ साल के थे तब उनके पिता की मृत्यु हो गई थी और पैसों के लिए घरवालों को वाद्य यंत्रों को भी बेचना पड़ा। हालात इतने बिगड गए कि उनके परिवार को इस्लाम अपनाना पड़ा। मात्र 11 वर्ष की उम्र में अपने बचपन के मित्र शिवमणि के साथ रहमान बैंड रुटस के लिए की.बोर्ड (सिंथेसाइजर) बजाने का कार्य करते। बैंड ग्रुप में काम करते हुए ही उन्हें लंदन के ट्रिनिटी कॉलेज आॅफ म्यूजिक से स्कॉलरशिप भी मिली, जहां से उन्होंने पश्चिमी शास्त्रीय संगीत में डिग्री हासिल की।
तीन बच्चे
ए. आर. रहमान की पत्नी का नाम सायरा बानो है। उनके तीन बच्चे हैं. खदीजा, रहीम और अमन।
वंदे मातरम
1991 में रहमान ने अपना खुद का म्यूजिक रिकॉर्ड करना शुरु किया। 1992 में उन्हें फिल्म डायरेक्टर मणिरत्नम ने अपनी फिल्म रोजा में संगीत देने का न्यौता दिया। फिल्म म्यूजिकल हिट रही और पहली फिल्म से ही रहमान ने फिÞल्मफेयर पुरस्कार भी जीता। इस पुरस्कार के साथ शुरू हुआ रहमान की जीत का सिलसिला आज तक जारी है। रहमान के गानों की 200 करोड से भी अधिक रिकॉर्डिग बिक चुकी हैं। आज वे विश्व के टॉप टेन म्यूजिक कंपोजर्स में गिने जाते हैं। उन्होंने तहजीब, बॉम्बे, दिल से, रंगीला, ताल, जींस, पुकार, फिजाए लगान, मंगल पांडे, स्वदेश, रंग दे बसंती, जोधा-अकबर, जाने तू या जाने ना, युवराज, स्लम डॉग मिलेनियर, गजनी जैसी फिल्मों में संगीत दिया है। उन्होंने देश की आजादी की 50 वर्षगांठ पर 1997 में वंदे मातरम एलबम बनाया, जो जबर्दस्त सफल रहा।
भारत बाला के निर्देशन में बना एलबम जन गण मन जिसमें भारतीय शास्त्रीय संगीत से जुडी कई नामी हस्तियों ने सहयोग दिया उनका एक और महत्वपूर्ण काम था। उन्होंने स्वयं कई विज्ञापनों के जिंगल लिखे और उनका संगीत तैयार किया। उन्होंने जाने-माने कोरियोग्राफर प्रुदेवा और शोना के साथ मिलकर तमिल सिनेमा के डांसरों का टुुप बनाया, जिसने माइकल जैक्सन के साथ मिलकर स्टेज कार्यक्रम दिए।
सम्मान और पुरस्कार
1. संगीत में अभूतपूर्व योगदान के लिए 1995 में मॉरीशस नेशनल अवॉर्डए मलेशियन अवॉर्ड।
2. फर्स्ट वेस्ट एंड प्रोडक्शन के लिए लारेंस आॅलीवर अवॉर्ड।
3. चार बार संगीत के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता।
5. 2000 में पद्मश्री से सम्मानित।
6. मध्यप्रदेश सरकार का लता मंगेशकर अवॉर्ड।
7. छ: बार तमिलनाडु स्टेट फिल्म अवॉर्ड विजेता।
8. 11 बार फिल्म फेयर और फिल्म फेयर साउथ अवॉर्ड विजेता।
9. विश्व संगीत में योगदान के लिए 2006 में स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी से सम्मानित।
10. 2009 में फि ल्म स्लम डॉग मिलेनियर के लिए गोल्डेन ग्लोब पुरस्कार।
11. ब्रिटिश भारतीय फिल्म स्लम डॉग मिलेनियर में उनके संगीत के लिए आॅस्कर पुरस्कार।
12. 2009 के लिये 2 ग्रैमी पुरस्कारए स्लम डॉग मिलेनियर के गीत जय हो... के लियेरू सर्वश्रेष्ठ साउंडट्रैक व सर्वश्रेष्ठ फिल्मी गीत के लिये।
यह सिलसिला अभी जारी है।
.........
उड़ान पर हैं तैयारियां
ए आर रहमान के पहले मंच पर प्रस्तुतियां के सिलसिले की तैयारियां जोरों पर हैं। कला अकादमी प्रांगण और संस्कृति परिषद में कृष्णायन की रिहर्सन प्रमुख कोरियोग्राफर मैत्रेयी और सहायक क्षमा मालवीय द्वारा की जा रही है। इस प्रस्तुति के लिए कलाकार एक एक स्टेप्स पर काम कर रहे हैं।
55 मिनट का कृष्णायन
इस रिहर्सल और प्रस्तुति अधिकांश भोपाल के कलाकार हैं, कुछ ही कलाकार मणिपुर से हैं। सभी अच्छा परफरमेंस कर रहे हैं। रिहर्सल में और उसके प्रबंध में कोई दिक्कत नहीं है। हमारे कलाकार कृष्णायन की प्रस्तुति करेंगे जो 55 मिनट की होगी।
मैत्रेयी, कष्णायन की प्रमुख कोरियोग्राफर
..............
रोमांचक रिहर्सल
हमारी सारी रिहर्सल कथक पर आधारित है। पहले भी हम इस तरह के कार्यक्रमों में प्रस्तुती दे चुके हैं। हर बार नया सीखते सिखाते हैं। हमारी कृष्णायन की तैयारी चल रही है। बच्चों को ऐसी प्रस्तुतियां बहुत रोमांच देती हैं। उनका उत्साह देखते बनता है।
क्षमा मालवीय, सहायक कोरियोग्राफर
.............
मैं बीस दिन से कृष्णायन की तैयारी कर रही हूं। यहां दो तरह से अच्छा लग रहा है, एक, हम नए स्टेप्स सीख रहे हैं। नए तरह के भाव और नए माहौल में नया सीखना होता है। मध्यप्रदेश स्थापना दिवस ऐतिहासिक है।
कीर्ति गोसाई, प्रतिभागी कलाकार कृष्णायन
...........
मैं तीन साल से कथक सीख रही हूं। यहां ग्रुप परफारमेंस देना होता है, इसलिए कई नए तरह के स्टेप्स और भावों सीखने मिला है। रिहर्सल में कार्यक्रम जैसा सुकून मिल रहा है। मेरे लिए ये बहुत ही नए तरह का अनुभव है।
खुशबु थदानी, प्रतिभागी समूह कलाकार कृष्णायन
.......
मैंने नृत्य निधि मैम के निर्देशन में सीखा है। यहां इस रिहर्सल में बड़े लोगों का साथ मिला है तो अच्छा लग रहा है। उनके द्वारा सिखाई जा रही चीजें मेरे लिए बहुत ही अच्छी हैं।
अमृता सिंह, समूह कलाकार कृष्णाय प्रस्तुति
.........
दो दिन से लगातार इस प्रैक्टिस में हिस्सा ले रही हूं। मैं मैत्रेयी जी से बहुत कुछ सीख रही हूं। वे हमें नृत्य की बारीकियों से परिचित कराते हुए इस रिहर्सल के माध्यम से प्रस्तुति के लिए तैयार कर रही हैं।
पूनम परिहार, कृष्णायन में रुक्मणी की भूमिका में
..........................................
एआर रहमान कहते हैं
जानी-मानी लेखिका नसरीन मुन्नी कबीर ने ए आर रहमान के जीवन पर ‘एआर रहमान द स्पिरिट आफ म्यूजिक’ नाम की किताब लिखी है।
इस जीवनी में उनके विचार भी हैं।
रहमान कहते हैं, हर इंसान की जिÞंदगी में कभी-न-कभी रुकावट आती है जब लगता है कि दुनिया ख़त्म हो गई है। लेकिन मैं कहूंगा कि ऐसे वक्त में हिम्मत नहीं हारनी चाहिए क्योंकि अगर आप समाधान ढूंढेगे तो हर समस्या का समाधान है।
सूफÞी शैली इस्लाम का एक आध्यात्मिक अंग है जो आपार प्रेम और सर्वव्यापकता से जुड़ा है। मैं इससे बहुत प्रभावित हूं।
मैं हमेशा अपने दिमागÞ में ये बात रखता हूं कि अगर मैं अगला गाना नहीं बना पाया तो मैं ख़त्म हो जाऊंगा। ये चुनौती हमेशा मेरे सामने रहती है।
दो आॅस्कर पुरस्कार जीत चुके रहमान ने आॅस्कर समारोह में कहा था कि उनके पास प्यार और नफÞरत में से एक को चुनने का विकल्प था और उन्होंने प्यार को चुना।
भारत में संगीत के नाम पर सिफर्Þ फिÞल्मी संगीत ही लोकप्रिय है। वो विदेशों में चल रहे ब्रॉडवे, सिंफÞनी और आॅपेरा की तर्ज पर भी भारत में कुछ करना चाहते हैं। उनके हिसाब से कला की कोई सीमा नहीं होनी चाहिए।
रहमान के बारे में कौन क्या कहता है
एआर रहमान का संगीत धीमे जÞहर की तरह है. ये धीरे-धीरे असर करता है. और फिर परवान चढ़ जाता है. उसके बाद तो उनका संगीत धूम ही मचा देता है।
शान, मशहूर गायक
रहमान भारतीय फिÞल्म संगीत में ताजÞा हवा के झोंके की तरह हैं. उनकी वजह से अब दूसरे लोग भी लीक से हटकर कुछ नया करने का साहस कर पा रहे हैं.
प्रसून जोशी, गीतकार
उनके जैसे जीनियस के साथ काम करना एक अलग ही अनुभव होता है. उनके काम का स्टाइल ही अलग होता है जो उनके संगीत में सुनाई भी पड़ता है। जब मैंने फिÞल्म नायक में पहली बार उनके लिए गाना गाया तो मुझे बहुत ख़ुशी हुई चलो आखÞिर रहमान के साथ काम करने की तमन्ना पूरी हुई।
-सुनिधि चौहान, गायिका
रहमान पंडित रविशंकर, भीमसेन जोशी और किशोरी अमोनकर की तरह परंपरागत भारतीय संगीत की पहचान हैं। साथ ही वो दुनिया भर में आधुनिक भारतीय फिÞल्मी संगीत के भी प्रतिनिधि हैं।
जावेद अख्तर,गीतकार
संदर्भ से कटे नेताओं के बयान
संदर्भ से कटे बयानों के कारण नेताओं के बयान राजनीतिक विवादों को जन्म देते हैं। ये राजनीति से जुड़े लोगों को संवेदनशील तुलनाएं सोच समझ कर करना चाहिए ।
सं दर्भहीन शब्द और बयान कितने विस्फोटक हो सकते हैं इसके कई उदाहरण इतिहास में मिल जाएंगे। सबसे पहला ज्ञात उदारहण है जब कृष्ण ने महाभारत युद्ध में द्रोणाचार्य को परास्त करने के लिए भीम से कहलवाया था- हतो अस्वथामा। यानी अस्वथामा मर गया। यहां संदर्भ नहीं बताया था कि अस्वथामा पुरुष था या हाथी के रूप में मरा था। संदर्भहीन वाक्य को सुनकर द्रोण ने समझा उनका बेटा मारा गया है। वे यह खबर सुन कर अचेत हो गए और उन्हें परास्त कर दिया गया। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष नितिन गडकरी द्वारा भोपाल में दिए बयान को कुछ इस तरह ही राजनीति में स्वीकार किया गया है, खबर देने वालों ने और राजनीति में स्वीकार करने वालों ने भी कुछ इसी तरह स्वीकार किया है। भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने कहा कि स्वामी विवेकानंद और माफ़िया डॉन दाऊद इब्राहिम का आईक्यू एक जैसा था लेकिन दोनों की जिÞंदगी की दिशा अलग थी। गडकरी के संदर्भ थे कि एक का आई क्यू निगेटिव था और दूसरे का आई क्यू पॉजिटिव था। यह बयान संदर्भ के साथ देखा जाए तो बहुत अच्छा है लेकिन अगर इसे संदर्भ से काट दिया जाए तो यह तुलना खतरनाक हो सकती है। मीडिया में ये बयान संदर्भहीनता की स्थिति में उठा लिए गए। इससे यह बयान बाजी को राजनीतिक रंगत मिल गई। इस बयानबाजी से राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं। इस तरह संदर्भ सहित देखा जाए तो गडकरी का बयान उतना गलत नहीं था जितना शोर मचाया जा रहा है। अच्छे और बुरे दोनों व्यक्तियों का आईक्यू होता है,लेकिन दोनों में फर्क यहीं होता है कि एक अच्छे काम और दूसरा बुरे काम में अपना आईक्यू इस्तेमाल करता है। गडकरी का यह कहना भी गलत नहीं है कि मीडिया ने बयान को तोड़मड़ोर पेश किया,क्योंकि मीडिया ने आधे अधूरे बयान को पेश किया है। अब जब राजनीति है तो ऐसे बयानों को राजनीतिक रंग तो दिए ही जाएंगे। ऐसी संवेदनशील तुलना से नेताओं को उसी प्रकार बचा जाना चाहिए जैसे कि दूध का जला छांछ भी फूंक-फूंक कर पीता है। बिना इसके कोई नेता राजनीति की उठापटक से नहीं बचा सकता। भारतीय लोकतंत्र में हरेक दिन कोई न कोई नेता ऐसे बयानों से अनावश्यक विवादों को जन्म देता है। नरेन्द्र मोदी और शशि थरूर का मामला अभी ठंडा नहीं हुआ था कि नितिन गडकरी ने ताजा बयान देकर विवादों में हैं। पूर्व में भी नितिन गडकरी को कसाब और कांग्रेस वाले अपने बयान के कारण आलोचना का शिकार होना पड़ा था। कांग्रेस ने भाजपा अध्यक्ष के इस बयान की कड़ी आलोचना करते हुए उनसे सार्वजनिक माफी मांगने की मांग की है। हालांकि, नितिन गडकरी ने अपने बयान का खंडन करते हुए कहा है कि उन्होंने दाऊद और स्वामी विवेकानंद की कभी कोई तुलना नहीं की, न ही इसमें तुलना करने लायक कुछ है। लेकिन राजनीतिक लाभ हानि की प्रक्रिया में कई तरह के उतार-चढ़ाव आते हैं। नेताओं को अपने शब्द फूंक-फूंक कर ही बोलना चाहिए।
संदर्भ से कटे बयानों के कारण नेताओं के बयान राजनीतिक विवादों को जन्म देते हैं। ये राजनीति से जुड़े लोगों को संवेदनशील तुलनाएं सोच समझ कर करना चाहिए ।
सं दर्भहीन शब्द और बयान कितने विस्फोटक हो सकते हैं इसके कई उदाहरण इतिहास में मिल जाएंगे। सबसे पहला ज्ञात उदारहण है जब कृष्ण ने महाभारत युद्ध में द्रोणाचार्य को परास्त करने के लिए भीम से कहलवाया था- हतो अस्वथामा। यानी अस्वथामा मर गया। यहां संदर्भ नहीं बताया था कि अस्वथामा पुरुष था या हाथी के रूप में मरा था। संदर्भहीन वाक्य को सुनकर द्रोण ने समझा उनका बेटा मारा गया है। वे यह खबर सुन कर अचेत हो गए और उन्हें परास्त कर दिया गया। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष नितिन गडकरी द्वारा भोपाल में दिए बयान को कुछ इस तरह ही राजनीति में स्वीकार किया गया है, खबर देने वालों ने और राजनीति में स्वीकार करने वालों ने भी कुछ इसी तरह स्वीकार किया है। भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने कहा कि स्वामी विवेकानंद और माफ़िया डॉन दाऊद इब्राहिम का आईक्यू एक जैसा था लेकिन दोनों की जिÞंदगी की दिशा अलग थी। गडकरी के संदर्भ थे कि एक का आई क्यू निगेटिव था और दूसरे का आई क्यू पॉजिटिव था। यह बयान संदर्भ के साथ देखा जाए तो बहुत अच्छा है लेकिन अगर इसे संदर्भ से काट दिया जाए तो यह तुलना खतरनाक हो सकती है। मीडिया में ये बयान संदर्भहीनता की स्थिति में उठा लिए गए। इससे यह बयान बाजी को राजनीतिक रंगत मिल गई। इस बयानबाजी से राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं। इस तरह संदर्भ सहित देखा जाए तो गडकरी का बयान उतना गलत नहीं था जितना शोर मचाया जा रहा है। अच्छे और बुरे दोनों व्यक्तियों का आईक्यू होता है,लेकिन दोनों में फर्क यहीं होता है कि एक अच्छे काम और दूसरा बुरे काम में अपना आईक्यू इस्तेमाल करता है। गडकरी का यह कहना भी गलत नहीं है कि मीडिया ने बयान को तोड़मड़ोर पेश किया,क्योंकि मीडिया ने आधे अधूरे बयान को पेश किया है। अब जब राजनीति है तो ऐसे बयानों को राजनीतिक रंग तो दिए ही जाएंगे। ऐसी संवेदनशील तुलना से नेताओं को उसी प्रकार बचा जाना चाहिए जैसे कि दूध का जला छांछ भी फूंक-फूंक कर पीता है। बिना इसके कोई नेता राजनीति की उठापटक से नहीं बचा सकता। भारतीय लोकतंत्र में हरेक दिन कोई न कोई नेता ऐसे बयानों से अनावश्यक विवादों को जन्म देता है। नरेन्द्र मोदी और शशि थरूर का मामला अभी ठंडा नहीं हुआ था कि नितिन गडकरी ने ताजा बयान देकर विवादों में हैं। पूर्व में भी नितिन गडकरी को कसाब और कांग्रेस वाले अपने बयान के कारण आलोचना का शिकार होना पड़ा था। कांग्रेस ने भाजपा अध्यक्ष के इस बयान की कड़ी आलोचना करते हुए उनसे सार्वजनिक माफी मांगने की मांग की है। हालांकि, नितिन गडकरी ने अपने बयान का खंडन करते हुए कहा है कि उन्होंने दाऊद और स्वामी विवेकानंद की कभी कोई तुलना नहीं की, न ही इसमें तुलना करने लायक कुछ है। लेकिन राजनीतिक लाभ हानि की प्रक्रिया में कई तरह के उतार-चढ़ाव आते हैं। नेताओं को अपने शब्द फूंक-फूंक कर ही बोलना चाहिए।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)