दो बातें
हम क्यों हैं इतने संवेदनहीन
हम और हमारा समाज धर्मप्राण होने का दावा करता है और सरकारें लोक कल्याणकारी जबकि संवेदनहीनता की हद ये है कि बच्चे और बूढ़े भूख या इलाज बिना जहां तहां मर जाते हैं।
स रकार के दावों से अलग है सरकारी योजनाओं के हितग्राहियों की कहानी। गरीब ग्रामीणों के लिए योजना का लाभ मिलने के यर्थाथ का यह एक उदाहरण है। मध्यप्रदेश में अधिकारी कर्मचारी ग्रामवासियों के प्रति संवेदनशील नहीं हैं। इसका प्रमाण है दतिया में जिलाधिकारी कार्यालय परिसर (कलेक्टेट) में 80 वर्षीय बुजुर्ग महिला का दम तोड़ देना। मामला जननी सुरक्षा योजना के तहत मिलने वाली प्रोत्साहन राशि से जुड़ा हुआ है, कुदरी गांव के मोहन लाल जाटव की पत्नी लक्ष्मी ने बीते दिनों प्रसव हुआ था। इस पर उसे हितग्राही बतौर 1400 रुपये का चेक प्रोत्साहन राशि के रूप में दिया गया। जब इस चेक का नगदीकरण बैंक में नहीं हुआ तो मोहन नवजात शिशु पत्नी और अपनी मां के साथ कलेक्टर की जनसुनवाई में जिला मुख्यालय दतिया पहुंचा। यहां मोहन लाल ने अपनी समस्या प्रशासनिक अधिकारियों कर्मचारियों को सुनाई। वहां मौजूद अधिकारियों ने नगदीकरण के निर्देश दिए, मोहन गांव लौटने की बजाय परिवार सहित कलेक्ट्रेट परिसर में ही डेरा डाले रहा। उसने ऐसा क्यों किया? क्या उसकी समस्या का समाधान नहीं हुआ था? दो दिन बाद उसकी मां ने कलेक्टेट परिसर स्थित पार्क में ही दम तोड़ दिया। यह जांच का विषय हो सकता है कि मृत्यू के कोई और कारण भी हों, लेकिन बड़ा प्रश्न है कि आखिर मानवीय समाज में एक व्यक्ति लावारिश की तरह क्यों मर जाता है।
यह एक प्रकार से कुंठित और गैर जिम्मेदार समाज का लक्षण है। सरकारें इसी समाज का हिस्सा हैं। अगर कोई अधिकारी मोहन लाल के परिवार पर एक संवेदना भरी नजर डाल देता तो शायद राम श्री की मौत इस तरह नहीं होती। आज हालत ये हैं कि वृद्धा की मौत पर जिले का कोई भी अधिकारी बात करने को तैयार नहीं है। वहीं क्षेत्रीय विधायक व प्रदेश सरकार के प्रवक्ता चिकित्सा मंत्री नरोत्तम मिश्रा से इस बावत जानकारी के लिए बात की गई तो उन्होंने घटना से अनभिज्ञता बताते हुए दतिया पहुंचकर ही वास्तविकता से अवगत कराने की बात कही। हमारा समाज और हमारी सरकारें अपने ही समाज, अपने ही देश के एक उपेक्षित हिस्से को मानवीय नजरों से नहीं देख पा रहीं। यह किसकी असफलता है? सरकार की समाज की या उस शहर की या उस परिवार की जो सरकार के प्रतिनिधि कलेक्टर के सामने अपनी समस्या लेकर ही क्यों पहुंचा? जिम्मेदारियों को टालने का अब एक लंबा सिलसिला चल सकता है। निश्चय ही चलेगा भी। विपक्षी दल और सरकार दोनों इस मुद्दे को वोट की राजनीति का चारा बनाएंगे। आरोप प्रत्यारोपों की राजनीति में संवदेनशीलता का मुद्दा गुम जाएगा। इस घटना के बाद फिर किसी दूसरे रूप में दूसरी तरह से कोई और घटना सामने आएगी। अब सरकार को विकास की बात करते हुए ये भी कहना चाहिए कि उसके कर्मचारी देश और प्रदेश के नागरिकों के प्रति संवेदनशील होंगे। सबसे बड़ी बात ये है कि चाहे हम सरकार में हों या न हों, अपने आसपास के नागरिकोंं के प्रति इतना भी गैरजिम्मेदार न रहें कि किसी असहाय परिवार का सदस्य खुले आसमान में मर भी जाए।
सवालों की लपटों में
केजरीवाल ने आरोप लगा दिए। वाड्रा और सलमान खुर्शीद को घेरे में लेकर राजनीति की हवा में तूफान ला दिया है। सवाल ये है कि बीजेपी चुप क्यों है। राजनीति में दो प्रवृत्तियां साफ दिख रही हैं।
अरविंद केजरीवाल का क्या किया जाए। अन्ना के बाद ये आ धमका है। ये राजनीतिक पार्टी भी बनाने जा रहा है। ऊपर से जनता के सामने एक सभ्य भारतीय लोकतंत्र में चलने वाले पार्टी शासन की शांति को ध्वस्त कर रहा है। पार्टी शासन का अनुशासन भी इसके कारण खराब हो रहा है। जो बातें जनता को नहीं बताई जातीं ये उनको बता रहा है।...केजरीवाल के आरोपों से परेशान-हलकान राजनीतिक व्यक्ति के दिमाग में यह सभी भी कहीं न कहीं चल रहा होगा। वाड्रा प्रकरण के बाद भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद पर केजरीवाल जोरदार हमले किए हैं। लेकिन इन सब आरोप-प्रत्यारोपों के बीच देश की मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा चुप क्यों है? यह सवाल भाजपा की अस्वभाविक चुप्पी में किसी पताका की तरह आसमान में फरफरा रहा है। इस फरफराहट में यह सवाल भी खड़ा हो रहा है कि अन्य कोई पार्टी भी तो नहीं बोलती है? खैर भारतीय जनता पार्टी का कोई भी वरिष्ठ नेता इस भ्रष्टाचार पर खुलकर कुछ नहीं बोल रहा है। उधर दिग्विजय सिंह ने ट्विटर पर लिखा है कि केजरीवाल की टीम 250 लोगों की है। सवाल ये है कि सच तो एक अकेला भी बोल सकता है। एक हजार चोर खड़े होकर कहें कि वे नेक हैं तो क्या उन्हें भारतीय लोकतंत्र में सच मान लिया जाएगा? संख्या के आधार पर सच्चाई की बात करना- लोकतंत्र को अंधा बनाना हो सकता है।
सलमान खुर्शीद के मुद्दे पर पूरा देश आंदोलित है। लोगों के आंख कान इस मामले को बहुत संजीदा होकर सुन रहे हैं। क्योंकि खुर्शीद जानता के सामने कांग्रेस के प्रवक्ता के रूप में आते रहे हैं। अब हर कोई सच्चाई जानना चाहता है। भाजपा का चुप रहना एक रणनीति के तहत भी हो सकता है। वह जानती है कि है। बीजेपी को डर है कि अरविंद केजरीवाल का अगला निशाना पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी हो सकते हैं। ऐसे में वह नहीं चाहती है कि किसी कांग्रेसी नेता के खिलाफ पार्टी नेता आक्रामक हों। कुछ लोग तो ये भी कहन ेसे नहीं चूक रहे कि कांग्रेस के बीच इस मसले पर समझौता भी हो गया है। अरविंद केजरीवाल द्वारा एक दूसरे के नेताओं खिलाफ मुद्दा उठाने पर दोनों पार्टियां चुप रहेंगी। भाजपा के कई नेताओं के एनजीओ और ट्रस्ट हैं। सुनाई तो ये भी दे रहा है कि इन ट्रस्टों और एनजीओं में भी खूब घोटाले हुए हैं। कहीं इनके खिलाफ भी कोई सबूत पेश कर दिया तब क्या होगा?
केजरीवाल पार्टीगत लोकतांत्रिक व्यवस्था के बीच अपना राग अलाप रहे हैं। यह राग जनता सुन भी रही है लेकिन क्या राजनीतिक व्यवस्थाओं के बीच पनप रहे लोभ लालच को इस तरह दूर किया जा सकता है। अरविंद की तैयारी अलग है और खुर्शीद की दिक्कत है कि वे पार्टी में हैं और मंत्री हैं। भ्रष्टाचार एक क्रमिक व्यवस्था सुधार की प्रक्रिया का हिस्सा भी कहीं न कहीं है। अचानक आरोप लगा कर, चौंकाने वाली राजनीति केजरीवाल कर रहे हैं, लेकिन उन्हें वह सकारात्मकता भी पैदा करना होगी जिससे जनता उन पर भरोसा कर सके।
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